अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सीमा पर तनाव चरम पर पहुंच गया है. पाकिस्तान के काबुल, खोस्त, जलालाबाद और पक्तिका हमलों का जवाब देते हुए अफगानिस्तान ने पाकिस्तानी सीमा चौकियों पर ताबड़तोड़ हमले किए. शुरुआती रिपोर्ट्स के अनुसार, इस हमले में 12 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और कई घायल हुए हैं. साथ ही पाक के एक टैंक को कब्जे में ले लिया गया. ऐसा दिख आ रहा है कि आने-वाले दिनों में पाकिस्तान की मुसीबतें और बढ़ने वाली हैं.
पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आ रही खबरों से पता चल रहा है कि दोनों के बीच झड़पें कई मोर्चों पर फैली हुई हैं और दोनों जल्द शांत नहीं होने वाले हैं. दोनों देशों के बीच शुरू हुए संघर्ष को लेकर इंटरनेशनल समुदायों की भी चिंता बढ़ गई है. कतर, ईरान और सऊदी अरब ने दोनों मुल्कों से संयम बरतने का आह्वान किया है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस जंग में सऊदी अरब की भी एंट्री हो जाएगी. ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि हाल में ही पाक और सऊदी ने एक रणनीतिक रक्षा समझौता किया था. जिसके तहत अगर उनके मुल्क पर कोई देश हमला करता है तो दूसरे पर हमला माना जाएगा.
तो आइए पहले ये समझते हैं कि सऊदी अरब की रणनीतिक स्थिति क्या है.
सऊदी अरब जंग नहीं, आर्थिक विकास पर ज्यादा ध्यान देता है. उनकी विदेश नीति पिछले कुछ सालों से विजन 2030 के आर्थिक लक्ष्यों के इर्द-गिर्द फोक्सड है. सऊदी की प्रायोरिटी है कि वह क्षेत्रिय स्थिरता को बनाए रखा. ताकि दुनिया भर से वहां निवेश को आकर्षित कर सके. साथ ही तेल के अलावा अन्य सेक्टरों में अपने इकोनॉमिक डाइवरफिकेशन के प्लान को सफल बना सके.
इसके साथ ही सऊदी अरब ने हाल के सालों में 'शून्य समस्या' की विदेश नीति को अपनाया है. जिसके तहत वह क्षेत्रीय संघर्षों में सीधे तौर पर सैन्य हस्तक्षेप से बचने की कोशिश करता है. इसका उदाहरण है सीरिया और यमन से अपने सैनिकों को वापस बुलाना. ईरान के साथ भी सऊदी अरब अपने संबंधों को बेहतर करने की कोशिश में जुटा है.
हाल के दिनों में देखें तो सऊदी अरब ख़ुद को क्षेत्रीय मध्यस्थ के रूप में स्थापित करने में जुटा है. सीधे तौर पर संघर्ष में एंट्री करने से बचता है.
सऊदी अरब के अफगानिस्तान-पाकिस्तान संघर्ष में सैन्य हस्तक्षेप न करने के कारण
सऊदी अरब और पाकिस्तान दोनों मुल्क एक दूसरे करीबी हैं. लेकिन, सऊदी अरब के सैन्य हस्तक्षेप न करने के कई कारण हैं. जैसे - भौगोलिक और रणनीतिक दूरी, आर्थिक प्राथमिकताएं, यमन से सबक और ईरान के साथ तनाव कम करना. आइए अब इन्हें विस्तार से समझते हैं.
1. भौगोलिक और रणनीतिक दूरी
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच जो संघर्ष शुरू हुई उससे सीधे और तत्काल तौर पर सऊदी अरब को खतरा नहीं है. दोनों मुल्कों के बीच शुरू हुआ ये संघर्ष मुख्य तौर से द्विपक्षीय सीमा विवाद और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) से जुड़ा हुआ है. सऊदी की सुरक्षा चिंताएं इन चीजों से अलग है.
2. आर्थिक प्राथमिकताएं
सऊदी अरब का इन दिनों मुख्य तौर से ध्यान 'विजन 30' पर केंद्रित है. वह अपने इकोनॉमी को तेल के अलावा अन्य सेक्टरों पर लेकर जाने में जुटे हैं. ऐसे में किसी भी सैन्य संघर्ष में सीधे तौर पर शामिल होने से 'विजन 30' के मिशन के लिए हानिकारक होगा. सऊदी की प्राथमिकता संघर्ष में एंट्री करने पर नहीं. बल्कि विदेशी निवेश को आकर्षित करना और पर्यटन को बढ़ावा देना है.
3. यमन से सबक
सऊदी अरब के शीर्ष नेताओं को यमन में लंबा और महंगा सैन्य हस्तक्षेप करने से सबक मिला है. उन्हें जो परिणाम चाहिए था, वह मिला नहीं. इस अनुभव ने सऊदी के नेतृत्व को सीधे तौर पर किसी भी सैन्य हस्तक्षेप में सीधे तौर से शामिल होने से बचने की सीख दी है.
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4. ईरान के साथ तनाव कम करना
हाल के दिनों में सऊदी अरब ने ईरान के साथ तनाव कम किया है. साल 2023 में चीन की मध्यस्थता से हुए समझौता अभी भी प्रभावी है. ऐसे में सऊदी अगर नए संघर्ष में शामिल होता है तो इस नाज़ुक संतुलन को बिगाड़ सकता है.
रक्षा समझौते की वास्तविक व्याख्या
दुनिया भर के रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि 17 सितंबर 2025 को रियाद में पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच 'रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौता' महज़ राजनीतिक एकजुटता और रणनीतिक सहयोग का संकेत है. न कि बिना किसी शर्त संघर्ष में एंट्री. अफगानिस्तान-पाकिस्तान संघर्ष मुख्य तौर से सीमा विवाद, आतंकवाद विरोधी और द्विपक्षीय तनाव से जुड़ा हुआ है.
सऊदी अरब की संभावित भूमिका
सऊदी अरब इस संघर्ष में सीधे तौर पर तो एंट्री लेते हुए नज़र नहीं आ रहा है. लेकिन, राजनयिक मध्यस्थता में अपनी भूमिका ज़रूर निभा सकता है. सऊदी ने दोनों पक्षों सें संयम बरतने का आह्वान किया है.
सऊदी अरब पाकिस्तान को वार्ता का मंच, आर्थिक प्रोत्साहन और डी-एस्केलेशन के ज़रिए मदद कर सकता है. पाकिस्तान की आर्थिक अस्थिरता को देखते हुए सऊदी शांति बहाली के लिए आर्थिक बहाली का पैकेज भी जारी कर सकता है.
सीमित सैन्य सहायता
अगर आने वाले दिनों में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच हालात और बुरे हो जाते हैं तो सऊदी रक्षा उपकरण, वित्तीय सहायता और खुफिया सहयोग के ज़रिए मदद कर सकता है. ये स्पष्ट नहीं है कि सऊदी मदद करेगा या नहीं.
लिटमस टेस्ट: रक्षा समझौते की वास्तविक परीक्षा
सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच जो डील हुई उसकी तुलना NATO मॉडल से की गई थी. NATO के आर्टिकल 5 के तहत - अगर संगठन में शामिल एक मुल्क पर हमला होता है तो सभी देशों पर हमला माना जाएगा. हालांकि, सऊदी-पाक के बीच हुआ समझौता 'कैवेट क्लॉज़' है. इस समझौते में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि किस प्रकार के आक्रमण को 'पारस्परिक रक्षा' का कारण माना जाएगा.
अनुराग कश्यप