नेतन्याहू सरकार, सख्त नीतियां, गाजा और... अमेरिकी समर्थन के बावजूद इजरायल के सामने विश्वसनीयता का संकट!

अंतरराष्ट्रीय कानून और युद्ध के नियमों का पालन करने वाले लोकतंत्र होने के अपने तमाम दावों के बावजूद इजरायल की वैश्विक प्रतिष्ठा तार-तार हो रही है. प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने गाजा पर पूर्ण सैन्य कब्जा करने की योजना तैयार की है. गाजा पट्टी में बढ़ते भुखमरी संकट और पश्चिमी तट पर इजरायल के दमनकारी उपायों के साथ विश्वसनीयता का संकट देश के सामने है. अमेरिकी समर्थन के बावजूद यहूदी राष्ट्र इस संकट का सामना कर रहा है, जिससे वह लंबे समय तक उबर नहीं पाएगा.

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इजरायल के सामने अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता का संकट. (Photo Screengrab) इजरायल के सामने अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता का संकट. (Photo Screengrab)

aajtak.in

  • पर्थ,
  • 10 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 3:20 PM IST

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने गाजा पर सैन्य कब्जे की योजना बनाई है, इसी के साथ देश की वैश्विक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंच रहा है. एक समय जब इजरायल को लोकतांत्रिक राज्य माना जाता था, जो अंतरराष्ट्रीय कानून और युद्ध के नियमों का पालन करता है, आज उसकी प्रतिष्ठा हिंसा, मानवीय त्रासदी और बढ़ती वैश्विक निंदा के बीच प्रभावित हो रही है.

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एजेंसी के अनुसार, नेतन्याहू की यह रणनीति हमास को पूरी तरह खत्म करने के लिए गाजा में व्यापक सैन्य अभियान चलाने की है. इसके साथ-साथ गाजा में जारी नाकेबंदी के कारण वहां भुखमरी की स्थिति है, जिससे आम नागरिकों का जीवन खतरे में है. वेस्ट बैंक में सुरक्षा कड़काई से भी तनाव बढ़ा है.

अमेरिका का समर्थन मिलने के बावजूद इजरायल ने अपने कई पारंपरिक अंतरराष्ट्रीय साझेदारों को खो दिया है और वह अब वैश्विक कूटनीति में कटघरे में है. इसका विश्वसनीयता संकट लंबी अवधि तक रह सकता है.

प्यू रिसर्च सेंटर के ताजा सर्वे से पता चलता है कि इजरायल की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंच रहा है. नीदरलैंड (78% नकारात्मक), जापान (79%), स्पेन (75%), ऑस्ट्रेलिया (74%), तुर्की (93%) और स्वीडन (75%) जैसे देशों में अधिकांश जनता के बीच इजरायल के प्रति नकारात्मक सोच बढ़ी है. यह इस बात का संकेत है कि दुनिया इजरायल की सैन्य कार्रवाई और गाजा के नागरिकों पर प्रभाव को लेकर गंभीर चिंता में है.

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इंटरनेशनल कोर्ट ने नेतन्याहू और पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलांट के खिलाफ युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराधों के आरोपों में गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं. मानवाधिकार संगठन और जेनोसाइड विशेषज्ञ भी इजरायल पर गाजा में नरसंहार करने का आरोप लगा चुके हैं.

देश के भीतर आलोचना

इजरायल के अंदर भी नेतन्याहू सरकार की कड़ी आलोचना हो रही है. पूर्व प्रधानमंत्री एहुड ओलमर्ट, एहुड बराक, साहित्यकार डेविड ग्रॉसमैन और धर्मगुरु रब्बी जोनाथन विटेनबर्ग और रब्बी डेल्फिन होर्विल्यूर जैसे अनेक प्रभावशाली व्यक्तियों ने सरकार की नीतियों की निंदा की है. इसके अलावा कई सेवानिवृत्त सुरक्षा अधिकारी भी अमेरिका से नेतन्याहू पर दबाव डालने की मांग कर रहे हैं, ताकि युद्ध रोका जा सके.

बदलते वैश्विक गठबंधन और कूटनीतिक अलगाव

हाल के हफ्तों में इजरायल के वैश्विक सहयोगियों के बीच बड़ा बदलाव देखा गया है. फ्रांस ने सितंबर में फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने की घोषणा की है, जबकि ब्रिटेन, कनाडा और जर्मनी भी इसी राह पर हैं. ऑस्ट्रेलिया ने भी फिलिस्तीन को मान्यता देने का इशारा किया है.

स्पेन और स्वीडन ने यूरोपीय संघ के इजरायल के साथ व्यापार समझौते को निलंबित करने की मांग की है, जबकि नीदरलैंड ने इजरायल को 'सुरक्षा खतरा' घोषित किया है. ये संकेत इजरायल के पारंपरिक पश्चिमी समर्थन में गिरावट की ओर इशारा करते हैं. इजरायल और अमेरिका इन कदमों को गलत बताते हैं, लेकिन अब इजरायल का एकमात्र बड़ा समर्थक अमेरिका ही बचा है.

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अमेरिका-इजरायल संबंध- समर्थन की चुनौतियां

इजरायल की सुरक्षा और समृद्धि अमेरिकी सैन्य सहायता पर निर्भर है. अरब-इजरायल युद्ध के बाद से जारी कब्जे और गाजा में सैन्य अभियान के लिए अमेरिका से अरबों डॉलर के हथियारों की जरूरत होती है. फिर भी अमेरिका में समर्थन कमजोर होता जा रहा है. मार्च के एक गैलप सर्वे के अनुसार, अमेरिका में अब आधे से कम लोग इजरायल के प्रति सहानुभूति रखते हैं. इस आलोचना में राजनीतिक दिग्गज जैसे स्टीव बैनन और कांग्रेस सदस्य मार्जोरी टेलर ग्रीन भी शामिल हैं. पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने भी गाजा की स्थिति पर नेतन्याहू के दावों पर सवाल उठाए हैं.

इजराइली जनता की बदलती सोच

इजरायल में कई लोग नेतन्याहू की कड़ी नीतियों से नाखुश हैं, खासकर जब वह हमास से बंधकों की रिहाई में सफल नहीं हो पाए हैं. चैनल 12 के सर्वे में 74% इजरायल युद्ध खत्म कर बंधकों को छुड़ाने के पक्ष में हैं, लेकिन, वे फिलिस्तीन के अलग स्टेट की संभावना को लेकर नेगेटिव थॉट रखते हैं.

एक स्टडी के मुताबिक, 82% यहूदी इजरायली गाजा से फिलिस्तीनियों को निकालने के फेवर में हैं. प्यू के 2025 के सर्वे में केवल 16% ने कहा कि वे फिलिस्तीनी राज्य के साथ शांतिपूर्ण सहअस्तित्व (peaceful coexistence) मानते हैं. यह नतीजा दर्शाता है कि इजरायल की राजनीति और जनता दोनों अब अधिक कट्टरपंथी हो गए हैं.

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यह भी पढ़ें: भूख से तड़पते बच्चे, मलबे में दबी लाशें... गाजा में 24 घंटे में 74 की मौत, नेतन्याहू बोले- दुश्मन को मिटाकर ही रुकेंगे!

इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने युद्ध अपराधों और मानवता के विरुद्ध अपराधों के आरोपों में नेतन्याहू और इजरायल के पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलेंट के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है. कई अंतरराष्ट्रीय कानून विशेषज्ञों, विद्वानों और मानवाधिकार समूहों ने भी इजरायल पर गाजा में नरसंहार करने का आरोप लगाया है.

इजरायल के लोगों ने भी देश के अंदर और बाहर नेतन्याहू सरकार के कार्यों की कड़ी आलोचना की है. इनमें पूर्व प्रधानमंत्री एहुद ओलमर्ट और एहुद बराक, इजरायल साहित्य के दिग्गज डेविड ग्रॉसमैन और मासोर्टी यहूदी धर्म के रब्बी जोनाथन विटेनबर्ग और रब्बी डेल्फ़िन होरविलुर शामिल हैं. इसके अलावा सैकड़ों सेवानिवृत्त इजराइली सुरक्षा अधिकारियों ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से नेतन्याहू पर युद्ध समाप्त करने के लिए दबाव डालने की अपील की है.

आगे क्या होगा?

नेतन्याहू ने गाजा में मानवीय मदद की मंजूरी तो दी है, लेकिन उनकी सैन्य नीति अडिग है. गाजा का सैन्य कब्जा, उसके लोगों का विस्थापन और वेस्ट बैंक का भी शामिल होना, दो-राज्य समाधान की संभावना को पूरी तरह समाप्त कर देगा.

इस संकट को टालने के लिए अमेरिका को वैश्विक समुदाय के साथ तालमेल बैठाना होगा, अन्यथा, इजरायल और अमेरिका के बीच दूरियां बढ़ेंगी और विश्व राजनीति और अधिक ध्रुवीकरण की ओर जाएगी. 

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इजरायल आज एक गंभीर मोड़ पर है. उसकी अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता प्रभावित हो रही है. नेतन्याहू की सरकार की सख्त नीतियों के कारण देश को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग होना पड़ रहा है. आगामी समय में अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के कदम बेहद अहम होंगे, जो मध्य पूर्व में शांति की दिशा तय करेंगे.

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