कश्मीर के मुद्दे पर आए दिन भारत से दो टूक सुनने के बाद भी पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आता है. ऐसा ही एक घटनाक्रम कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में हुआ. यहां सीआईसीए शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें भारत पाकिस्तान सहित कई देशों ने हिस्सा लिया. इस सम्मेलन में भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कश्मीर का राग अलापा. इसका बदला लेते हुए भारत की विदेश और संस्कृति राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी से उन्हें फटकार सुनने को मिल गई.
मीनाक्षी लेखी ने कहा कि पाकिस्तान के पास जम्मू-कश्मीर पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है. पाक वैश्विक आतंकवाद का केंद्र बन चुका है. पाक को आतंकवाद के अपने बुनियादी ढांचे को बंद कर देना चाहिए. हम पाकिस्तान सहित अपने पड़ोसियों के साथ सामान्य संबंध चाहते हैं.
आगे मीनाक्षी लेखी ने पाकिस्तान को वैश्विक समुदाय को व्याख्यान देने के बजाय अपने घर को व्यवस्थित करने की सलाह दी. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान एक ऐसा देश जहां धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों को व्यवस्थित रूप से सताया जाता है.
राज्यसभा के उपाध्यक्ष हरिवंश ने भी पाकिस्तान पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण प्रचार किया है.
बता दें कि इससे पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो और जर्मनी की विदेश मंत्री एनालीना बेयरबॉक की बर्लिन में संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कश्मीर मामले पर दिए गए बयान पर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई थी. बाद में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने भारत की आपत्ति को 'गैरजरूरी' करार दिया था.
दरअसल, प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जर्मनी की विदेश मंत्री एनालीना बेयरबॉक ने कहा था कि कश्मीर की हालत को लेकर जर्मनी की भी भूमिका और जिम्मेदारी है. विदेश मंत्री ने आगे कहा कि हम कश्मीर मामले में शांतिपूर्ण समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र की बातचीत का समर्थन करते हैं.
जर्मनी की विदेश मंत्री के बयान के बाद भारत की ओर से प्रतिक्रिया दी गई. भारतीय विदेश विभाग के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने पाकिस्तान का नाम लिए बगैर कहा कि वैश्विक समुदाय की अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद और खासतौर पर सीमावाद आतंकवाद को खत्म करने की जिम्मेदारी है.
बागची ने आगे कहा कि यूएन सिक्योरिटी काउंसिल और एफएटीएफ (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) अभी तक 26/11 अटैक में शामिल पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों के खिलाफ जांच कर रहे हैं. बागची ने आगे कहा कि जब देश अपने फायदे या उदासीनता के चलते इन खतरों को नहीं समझते हैं तो वह शांति को बढ़ावा नहीं देते बल्कि उसे नजरअंदाज कर रहे होते हैं.
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