इजरायल और ईरान दोनों कर रहे जीतने का दावा, जानें- 12 दिन की जंग में किसको हुआ कितना नुकसान

इजरायल, ईरान के बीच 12 दिन चले युद्ध के बाद भले ही सीजफायर का ऐलान हुआ हो, लेकिन सभी पक्ष खुद को विजेता बता रहे हैं. सवाल उठता है कि अगर सभी जीत गए तो हारा कौन? इस युद्ध ने दिखा दिया कि मध्य पूर्व में शांति अस्थायी है और तनाव कभी भी दोबारा भड़क सकता है.

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12 दिनों बाद दोनो देशों में तबाही के निशान (फोटो: रॉयटर्स) 12 दिनों बाद दोनो देशों में तबाही के निशान (फोटो: रॉयटर्स)

आजतक ब्यूरो

  • नई दिल्ली,
  • 24 जून 2025,
  • अपडेटेड 11:00 PM IST

बहुत पहले से कहा जाता है कि युद्ध शुरु करना आसान है, रोकना या खत्म करना कठिन. इजरायल-अमेरिका और ईरान के बीच 12 दिन के युद्ध के बाद सीजफायर का ऐलान भी फायर भरा हुआ है. जहां सबने अपनी अपनी जीत का दावा कर दिया - तो सवाल है कि सब जीत गए तो हारा कौन? क्योंकि इजरायल कहता है कि उसने ईरान में अपना मकसद हासिल कर लिया है, ईरान का परमाणु कार्यक्रम खत्म कर दिया.

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इसी तरह ईरान भी दावा करता है कि उसने इजरायल और अमेरिका दोनों के सामने बिना झुके 12 दिन में युद्ध जीत लिया. ईरान तो कहता है कि इसने इजरायल को झुका दिया. वही ट्रंप हैं जो सीजफायर का मेडल खुद ही अपने गले में डालकर जीत का क्रेडिट खुद ले लेते हैं. इस दावे के साथ कि ईरान अब कभी न्यूक्लियर साइट दोबारा नहीं बना पाएगा, तो फिर खबरदार करता सवाल अगर इस जंग में सभी देश जीत गए तो हारा कौन?

इजराइल-ईरान जंग के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने मंगलवार सुबह सीजफायर का ऐलान किया. हालांकि यह कुछ घंटों में ही टूट गया. 12 दिन चली इस जंग में कौन जीता और कौन हारा. इसका फैसला तीनों देश अपने अपने हिसाब से कर रहे हैं. इजरायल कह रहा है कि उसके सारे मकसद पूरे हो गए. वहीं ईरान इजरायल के साथ 12 दिनों तक चले युद्ध में अपनी सेना की कार्रवाई की प्रशंसा कर रहा है. सवाल ये है कि अगर इस जंग में सभी देश जीत गए तो हारा कौन?

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इजरायल और ईरान के बीच सीजफायर के बावजूद दोनों देश एक दूसरे हमलावर हैं, लेकिन सवाल इस जंग के नतीजे को लेकर है. सवाल ये कि 3 किरदार 12 दिन की वॉर में कौन विजेता-किसकी हार? 12 दिन चली इस लड़ाई में पहली बार इजरायल और ईरान के बीच सीधी टक्कर हुई, जिसके आखिर में अमेरिका ने इजरायल के पक्ष में उतर कर ईरान के परमाणु ठिकानों को तबाह कर दिया.

सीजफायर के बाद अब तीनों ही देश जीत के दावे कर रहे हैं. इजरायल जहां ईरान को परमाणु बम बनाने से रोक कर खुश है. ईरान का दावा है कि इजरायल के साथ अमेरिका के उतरने के बावजूद न उसके परमाणु कार्यक्रम को नुकसान पहुंचा न ही खामेनेई सत्ता से हटे. वहीं डोनाल्ड ट्रंप एक और युद्ध रुकवाने का श्रेय लूटकर झूम रहे हैं, जबकि दोनों पक्षों को ही नहीं लगता कि ये सीजफायर ज्यादा दिन चलेगा.

कतर में जिस वक्त ईरान की मिसाइलें अमेरिकी सैन्य अड्डों पर बरस रही थीं तब तेहरान की सड़कों पर लोग नाच रहे थे इस बात से खुश दिखे कि उन्होंने एक ही लड़ाई में इजरायल और अमेरिका दोनों को निपटा दिया. इस मौके पर लोग गाड़ी लेकर तेहरान की सड़कों पर देश का झंडा फहराते हुए निकल पड़े. ईरान के सरकारी टीवी चैनलों पर भी बताया गया कि इजरायल को किस तरह से सबक सिखाया गया, तो ईरान के सरकारी टीवी चैनलों पर बताया जा रहा है कि किस तरह से ईरान की सेना ने इजरायल को झुका दिया. अमेरिका भी कुछ नहीं कर सका.

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ईरान की सरकार जीत के दावे कर रही है, जबकि उसने 12 दिनों में अपने टॉप 14 परमाणु वैज्ञानिक खो दिए ईरान के 20 से ज्यादा सैन्य कमांडर मारे गए, जिसमें ईरान की सेना के वरिष्ठ कमांडर मेजर जनरल अली शदमनी शामिल हैं टाइम मैगजीन के मुताबिक इजराइल ने सिर्फ 4 दिनों में ईरान की हवाई सीमा पर कब्जा कर लिया. कहा गया कि 15 जून के बाद ही खामेनेई बंकर में छिप गए. यही नहीं उन्होंने अपने ऊपर मंडराते खतरे को देखते हुए अपने उत्तराधिकारियों के नाम पहली बार बताए.

कुल मिलाकर ईरान को बहुत बड़ा नुकसान हुआ, लेकिन ईरान की सरकार के लिए इजरायल और अमेरिका को लेकर लोगों की नफरत काम आ गई, जिसे भुनाने के लिए जमकर धार्मिक कार्ड खेला गया. ईरान की तरह इस जंग में इजरायल भी जीत का दावा कर रहा है. हांलाकि दुनिया ने पहली बार इजरायल में आयरन डोम को थकते देखा.

पिछले 12 दिनों में इजरायल के लाखों लोगों को बंकर की शरण लेनी पड़ी. इसके बावजूद नेतन्याहू का हीरो की तरह इजरायल में स्वागत हो रहा है. उनकी तरफ से जीत को लेकर कहा जा रहा है कि इजरायल के खिलाफ युद्ध के मकसद पूरे हुए परमाणु-बैलिस्टिक मिसाइल का खतरा दूर हुआ.

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हालांकि एक्सपर्ट और स्वतंत्र एजेंसियों की तरफ से इसकी पुष्टि बाकी है कि ईरान का पूरा परमाणु कार्यक्रम तबाह हो गया है. फोर्डो, नतांज और इस्फहान में परमाणु सुविधाओं को कितना नुकसान पहुंचाया है, ये साफ नहीं है. विशेषज्ञों का मानना है कि इन सुविधाओं को सिर्फ बाहरी नुकसान हुआ है, क्योंकि कोई रेडिएशन हमलों के बाद नहीं हुआ. इसके अलावा इजरायल ईरान में सत्ता परिवर्तन के अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया, जबकि अमेरिका ने उसका पूरा साथ दिया.

तो इजरायल ने सारी ताकत लगाने के बावजूद वो खामेनेई की सत्ता को हिला नहीं पाया. फिर भी इजरायल की तरफ से इस लड़ाई को जीत बताया जा रहा है. नेतन्याहू की तरफ से इजरायल की कार्रवाई को सही बताने के लिए ऐसे वीडियो शेयर किए जा रहे हैं, जिसमें पूरा पश्चिमी एशिया उन्हें बधाई दे रहा है.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी एक और सीजफायर का श्रेय लेकर खुश हैं. हांलाकि, उनका नोबेल पुरस्कार पर दावा इस बात पर निर्भर करेगा कि ईरान और इजरायल सीजफायर बरकरार रखें, वरना ट्रंप के माथे पर पश्चिम एशिया की सबसे भीषण और खतरनाक युद्ध शुरू करवाने का कलंक लगना तय है. हर कोई जीत का दावा कर रहा है लेकिन 12 दिन के युद्ध के बाद अमेरिका, इजरायल और ईरान के किसको क्या हासिल हुआ ये बात थोड़ा विस्तार से समझते हैं.

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अमेरिका अपनी जीत इसलिए बता रहा है कि क्योंकि उसे लगता है कि उसने ईरान को परमाणु बम बनाने से लंबे समय के लिए रोक दिया गया है. युद्धविराम करवाकर डोनाल्ड ट्रंप ने नोबेल पुरस्कार पर अपना दावा मजबूत किया. पश्चिम एशिया में शांति लाने में अहम भूमिका निभाई. पश्चिम एशिया में अमेरिकी दखल और उसकी भूमिका, प्रभाव और मजबूत हुआ, जहां तक इजरायल की बात है तो - उसने ईरान के कई प्रमुख सैन्य, परमाणु और मिसाइल ठिकानों को नष्ट करने में कामयाबी पाई, जिससे ईरान की सैन्य क्षमता बेहद कमजोर हुई. इजराइल ने ईरान पर 4 दिन में हवाई सीमा पर कब्जा किया और ईरान के एयर डिफेंस सिस्टम को भी नुकसान पहुंचाया. ईरान की पूरी टॉप मिलिट्री लीडरशिप ख़त्म कर दी.

लेकिन ईरान ये नहीं मानता, वो भी अपनी जीत के दावे कर रहा है उसे लगता है कि वो इजरायल में बड़ी संख्या में मिसाइल और ड्रोन हमले करने में कामयाब हुआ, जिससे इजराइल को भारी नुकसान हुआ. ईरान को लगता है कि वो ये भी साबित करने में कामयाब रहा कि पूरे पश्चिम एशिया में अकेला ऐसा मुल्क है जो अमेरिका और इजराइल को चुनौती दे सकता है. इसके अलावा अमेरिका और इसराइल की तरफ से पूरी ताकत लगाने के बावजूद दोनों देश ईरान में सत्ता परिवर्तन करने में नाकाम रहे.

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इन सारे दावों के बीच सीजफायर का दावा धुआं-धुआं होता दिख रहा है, क्योंकि बड़ी खबर बता दें कि उत्तरी इरान के बाबोलसर में एयर डिफेंस सिस्टम अब से कुछ देर पहले एक्टिव हुआ है, क्योंकि ईरान के बाबोलसर में धमाके की आवाज सुनी गई है. इरान की न्यूज एजेंसी की तरफ से आई इस खबर का मतलब क्या ये है कि सीजफायर के दावे के बावजूद अभी लड़ाई पूरी तरह शांत नहीं हुई है. ट्रंप के दावे को क्या इजरायल ने फिर खारिज कर दिया है?

सीजफायर के एलान के बावजूद इजरायल के बेर्शेबा की इस हालत को देखिए कैमरा जितना करीब जाता है. तबाही का मंजर नजर आता है. इतनी तबाही तब है जब सीजफायर का दावा दोनों देशों के बीच में हुआ. क्या यही वजह है कि इजरायल के लोगों को भी लगता है कि भले सीजफायर का दावा हुआ हो लेकिन भविष्य में ये युद्ध रह रहकर भड़क सकता है. इजरायल के भीतर जहां ईरान ने मिसाइल मंगलवार को भी फायर की. वहां कई लोगों की जान गई. इमारत से लोगों को किसी तरह बाहर निकाला गया.

इसी तरह इजरायल ने दावा किया कि उसके फाइटर जेट ने पश्चिमी ईरान में मिसाइल लांचरों पर हमला किया. उन जगह पर जहां कुछ ही पल पहले वो मिसाइल से इजरायल पर हमला करने वाले थे. दोनों तरफ से होती इसी लड़ाई को लेकर भरोसा नहीं किया जा रहा है कि ये लड़ाई आगे नहीं भड़केगी.

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सवाल उठता है कि आखिर जनता तक को क्यों नहीं लगता कि खामेनई-नेतन्याहू के बीच जिस सीजफायर की बात ट्रंप कर रहे हैं, उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता? क्या इसकी वजह नेतन्याहू हैं, जिन पर ईरान भरोसा नहीं करता? असल में इजरायल कहने को कह सकता है कि इसने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अमेरिका की मदद से खत्म कर दिया, लेकिन सच ये भी है कि ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल के पूरे जखीरे और खामेनेई की सत्ता को इजरायल खत्म नहीं कर पाया है.

तो फिर कैसे माना जाए कि अब सीजफायर हो गया है? लेकिन क्या इजरायल मानेगा? क्योंकि ट्रंप ने मंगलवार शाम को जब फिर इजरायल से कहा कि अपना कोई भी बम अब ईरान पर मत गिराना. अपने पायलट वापस लेकर आओ. दावा है कि इजरायली एयरफोर्स ने तेहरान में रडार सिस्टम पर हमला कर दिया. इसीलिए भले 12 दिन बाद अब मिसाइल, ड्रोन के वार की रफ्तार कम हो जाए लेकिन इस बात की गारंटी कोई नहीं ले सकता कि आगे इस मध्य पूर्व में युद्ध की आहट नहीं रहेगी.

तो इस वक्त पश्चिम एशिया की हालत देखी जाए वो क्या कुछ इस तरह दिखती है? जो इजरायल अब तक खुलकर लगातार लेबनान, यमन, गाजा में रॉकेट, ड्रोन, मिसाइल से लड़़ता रहे, उसे अब ईरान के साथ भी इसी तरह लड़ना होगा. यानी पश्चिम एशिया का ये क्षेत्र हमेशा ऐसी जंग की आग में जलता दिखेगा, जहां हर बार अमेरिकी दखल की जरूरत पड़ती रहेगी. हर बार ये आशंका बनी रहेगी कि क्या कोई तीसरा देश एंट्री करेगा तो युद्ध महायुद्ध में बदल सकता है.

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