ईरान पर एक हफ्ते तक बम-मिसाइलें गिराने वाली थी अमेरिकी फौज, लेकिन ट्रंप ने बीच में रुकवा दी जंग!

अमेरिकी सेंट्रल कमांड के प्रमुख आर्मी जनरल एरिक कुरिल्ला ईरान के खिलाफ 'ऑल-इन' वॉर चाहते थे. ये युद्ध अगर जनरल एरिक कुरिल्ला के प्लान के तहत हुआ होता तो कई हफ्तों तक चल सकता था. लेकिन यू्एस आर्मी का ये प्लान ट्रंप की विदेश नीति से टकरा रहा था. इसके बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल किया.

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21 जून को अमेरिका ने ईरान पर हमला किया था. (File Photo: Pexels) 21 जून को अमेरिका ने ईरान पर हमला किया था. (File Photo: Pexels)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 18 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 11:15 AM IST

अमेरिकी सेना ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नष्ट करने के लिए एक व्यापक और लंबी अवधि का मिलिट्री एक्शन तैयार किया था. अगर ऐसा होता तो ईरान के न्यूक्लियर साइट नतांज, फोर्दो, इस्फहान पर अमेरिकी हमले सिंगल नाइट के लिए सीमित नहीं होते, बल्कि ये हफ्तों तक चल सकता था. लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस योजना को अस्वीकार कर दिया.

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अमेरिकी न्यूज एजेंसी एनबीसी ने एक रिपोर्ट में इन तथ्यों का जिक्र किया है. इसमें कहा गया है कि अमेरिकी सेंट्रल कमांड (CENTCOM) के प्रमुख जनरल एरिक कुरिला ने ईरान के 6 परमाणु स्थलों को बार-बार निशाना बनाने की योजना तैयार की थी. इस योजना में कई हफ्तों तक सैन्य कार्रवाई शामिल थी जो कि  "ऑपरेशन मिडनाइट हैमर" से पैमाने में कहीं ज्यादा बड़ा था. 

क्या था अमेरिका का लॉन्ग प्लान?

इस योजना का उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह से नेस्तानाबूद करना था. इसमें ईरान की मिसाइल डिफेंस सिस्टम और बैलिस्टिक मिसाइल क्षमताओं को निशाना बनाना शामिल था. हालांकि इस कार्रवाई से ईरान में बड़े पैमाने पर हताहत होने की आशंका थी. 

इसके अलावा अमेरिका को यह भी आशंका थी कि इन हमलों के जवाब में ईरान इराक और सीरिया में अमेरिकी ठिकानों पर हमला कर सकता था. 

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ट्रंप ने इस योजना को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष को जन्म दे सकती थी जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता को खतरा हो सकता था. ट्रंप ने अपनी विदेश नीति में अमेरिका को विदेशी संघर्षों से निकालने पर फोकस किया है न कि इन संघर्षों में गहराई से उतरने पर. इस योजना की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा, "हम अपने विकल्पों पर पूरी तरह से विचार करने को तैयार थे, लेकिन राष्ट्रपति ऐसा नहीं चाहते थे."

मिसाइल डिफेंस और बैलेस्टिक सिस्टम को खत्म करने का इरादा

यह योजना जो बाइडेन के प्रशासन के कार्यकाल अंत में तैयार की गई थी. अमेरिकी सेंट्रल कमांड के प्रमुख आर्मी जनरल एरिक कुरिल्ला ने ईरान पर "पूरी तरह से" हमला करने की योजना बनाई थी. अमेरिका ईरान के परमाणु क्षमता को पूरी तरह से नष्ट करना चाहता था. इसके लिए ईरान के 6 परमाणु ठिकानों पर अमेरिका बार बार हमला करने वाला था. 

लेकिन इसका मतलब था कि ईरान की वायु रक्षा और बैलिस्टिक मिसाइल क्षमताओं पर और अधिक हमला होगा और इसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में ईरानी हताहत हो सकते थे. 

इन आशंकाओं पर विचार करते हुए ट्रंप ने इस प्लान को वीटो कर दिया. क्योंकि इसके लिए "लगातार संघर्ष की आवश्यकता होती."

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एनबीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि ईरान में जिन तीन परमाणु संवर्धन स्थलों पर हमला किया गया था उनमें से केवल एक ही लगभग नष्ट हुआ था. अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि फोर्डो पर हमला महत्वपूर्ण था और यहां पर एनरिचमेंट फैसिलिटी के काम को 2 साल तक पीछे धकेला जा सकता था. हालांकि बमबारी से नतांज़ और इस्फ़हान को ज़्यादा नुकसान नहीं हुआ. 

बता दें कि हाल के ईरान-इजरायल युद्ध के दौरान अमेरिका ने 21 जून को ईरान के तीन परमाणु केंद्रों - फोर्डो, नटांज़ और इस्फहान - पर हमला किया था."ऑपरेशन मिडनाइट हैमर" के नाम से शुरू हुई इस सैन्य कार्रवाई में बी-2 स्पिरिट स्टील्थ बॉम्बर्स द्वारा 30,000 पाउंड के बंकर बस्टर बम न्यूक्लियर साइट पर गिराए गए थे. ट्रंप ने कहा कि ये हमले एक 'शानदार' सैन्य सफलता थी और इसने ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है.
 

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