पाकिस्तान ने अपने यहां रह रहे अफगानिस्तानी शरणार्थियों को 31 दिसंबर तक देश से चले जाने का फरमान सुनाया है. तकरीबन 17 लाख अफगानी पाकिस्तान में रह रहे थे और पिछले दो महीनों में लगभग 4 लाख अफगान शरणार्थी अफगानिस्तान निर्वासित किए गए हैं. बलूचिस्तान प्रांत के सूचना मंत्री जान अचकजई ने यह जानकारी दी. उधर खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की सरकार ने भी अपने यहां रह रहे हजारों अफगानी लोगों को उनके देश भेजने के लिए एक बड़ा अभियान शुरू करने का फैसला लिया है.
समाचार एजेंसी पीटीआई ने ऐसे ही कुछ अफगान शरणार्थियों से बातचीत की है. हाजी मुबारक शिनवारी 1982 में अपने पांच बेटों और दो भाइयों के साथ पाकिस्तान आए थे. उन्होंने कड़ी मेहनत से कपड़े, ट्रांसपोर्ट और लोन प्रोवाइडर सर्विस का व्यवसाय खड़ा किया. वह अब कराची के बाहरी इलाके अल-आसिफ स्क्वायर में कई संपत्तियों के मालिक हैं. शिनवारी ने कहा, 'हम इतने सालों से यहां बिना दस्तावेजों के रह रहे हैं और स्थानीय लोगों की मदद से अपना कारोबार स्थापित किया है.'
अल-आसिफ स्क्वायर अफगान शरणार्थियों का सबसे बड़ा केंद्र
हाजी मुबारक शिनवारी अकेले नहीं हैं. कराची शहर के उत्तर में बमुश्किल कुछ किलोमीटर की दूरी पर अल-आसिफ स्क्वायर है, जो अपनी विशाल अफगान आबादी के लिए जाना जाता है. पास ही अफगानी मजदूरों और छोटे व्यवसाय मालिकों की दो बड़ी बस्तियां हैं. अल-आसिफ स्क्वायर और इन बस्तियों का दौरा करने से यह आभास होता है कि आप मिनी काबुल में हैं, जहां अफगानी लोग अपनी कई दुकानों और विभिन्न रेस्तरांओं में अफगानी व्यंजन पेश करते हैं.
हजारों अफगानी, मुख्य रूप से वे जो 1978 में सोवियत संघ के आक्रमण के बाद शरणार्थी के रूप में पाकिस्तान आए थे, उन्होंने दशकों से यहां के सभी प्रमुख शहरों में व्यापार और काम किया है. सिंध प्रांत में कराची और बलूचिस्तान प्रांत में क्वेटा शहर उनके प्रमुख केंद्र हैं. कराची में अफगान वाणिज्य दूतावास के कानूनी सलाहकार सादिक उल्लाह काकर ने बताया कि पाकिस्तान में अधिकांश अफगान शरणार्थी निम्न मध्यम वर्ग के हैं.
सभी अफगानों को 31 दिसंबर तक PAK छोड़ने का अल्टीमेटम
पाकिस्तान सरकार ने जिन अफगानों के पास वैध दस्तावेज नहीं हैं उन्हें वापस भेजने के लिए 31 अक्टूबर की समय सीमा तय की थी. इस डेडलाइन के दो सप्ताह बाद, लाखों लोग पहले ही विस्थापित हो चुके हैं और अब, वैध कागजात वाले लोगों को भी 31 दिसंबर के बाद वापस भेजने की योजना बनाई गई है. स्थिति गंभीर है और अफगान शरणार्थियों के चेहरों पर अनिश्चितता स्पष्ट दिखती है. पाकिस्तान सरकार इस बात पर अड़ी हुई है कि उसे अपने देश की रक्षा करने की जरूरत है. उसका दावा है कि इनमें से कई अफगान आपराधिक और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हैं.
पाकिस्तान ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और अन्य आतंकवादी समूहों को आतंकवादी हमलों को अंजाम देने के लिए अफगान धरती का उपयोग करने से रोकने में सहयोग नहीं करने का भी आरोप लगाया है. इस फैसले से हाजी मुबारक जैसे सैकड़ों अफगानियों को नुकसान हुआ है. कई वर्षों से पाकिस्तान में रहने वाले हजारों अफगानों को अपने व्यवसाय और संपत्ति छोड़कर वापस जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
पाकिस्तान ने नकदी और संपत्ति के हस्तांतरण पर लगाया प्रतिबंध
पाकिस्तान सरकार ने अफगानिस्तान (पाकिस्तान से) में नकदी और संपत्ति के हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगा दिया है. केवल शरणार्थियों को प्रति व्यक्ति 50,000 रुपये नकद अपने साथ ले जाने की अनुमति है. अधिकांश अफगान जो वापस आ गए हैं या अपने वतन लौटने की तैयारी कर रहे हैं, उन्हें दशकों से बनाए गए अपने व्यवसायों और घरों को छोड़ना पड़ रहा है. मुद्दा इतना गंभीर हो गया है कि अफगानिस्तान के कार्यवाहक वाणिज्य मंत्री हाजी नूरुद्दीन अजीजी ने इस पर चर्चा करने के लिए पिछले सप्ताह इस्लामाबाद में पाकिस्तान के विदेश मंत्री जलील अब्बास जिलानी से मुलाकात की.
उन अफगानों को भी पाकिस्तान में अपने नाम पर व्यापार करने की अनुमति नहीं है, जिनके पास पीओआर (निवास का प्रमाण) कार्ड या एसीसी (अफगान नागरिक कार्ड) है. इन दोनों कार्डों का उद्देश्य केवल धारकों को आधिकारिक तौर पर शरणार्थी के रूप में मान्यता देना और उन्हें पाकिस्तान के स्वास्थ्य सेवा और आर्थिक क्षेत्रों में आंशिक अधिकार प्रदान करना है. मुबारक ने कहा कि उन्हें अब पाकिस्तानी ग्राहकों से लाखों का कर्ज वसूलने में भी दिक्कत हो रही है क्योंकि वे उनकी नाजुक स्थिति से वाकिफ हैं. उन्होंने कहा, 'वे सभी वादा करते हैं कि वे जल्द ही ऋण चुका देंगे लेकिन अब स्थिति अलग है. वे इसे लेकर चिंतित नहीं हैं.'
अफगान शरणार्थियों की स्थिति 1947 के भारत विभाजन त्रासदी जैसी
क्वेटा में दो किराने की दुकानें चलाने वाले रहमत खानजादा ने फोन पर पीटीआई को बताया कि उन्हें डर है कि उनकी सारी बचत अब बर्बाद हो रही है. उन्होंने कहा, 'यह 1947 के भारत विभाजन वाली स्थिति है. तब बड़े शहरों में कई लोगों ने उन हिंदुओं, पारसियों या यहां तक कि मुसलमानों की संपत्तियों और व्यवसायों को जब्त कर लिया था, जिन्होंने भारत जाने का फैसला किया था.' कई अफगानों को अपनी संपत्तियों को कम दरों पर बेचने के लिए मजबूर किया जा रहा है.
अहमद, जो 30 वर्षों से क्वेटा में रह रहे हैं और जूते के व्यवसाय से जुड़े हैं, ने बताया कि पिछले महीने उन्होंने अपना 15 लाख रुपये मूल्य का अधिकांश स्टॉक लगभग आधी कीमत पर बेच दिया. अजमतुल्ला नियाजी, जो कराची के क्लिफ्टन इलाके में रहते हैं और एक मॉल में कपड़ों की दुकानों के मालिक हैं, ने कहा कि कई संपन्न अफगान अब या तो पाकिस्तान में रहने के लिए रिश्वत देने की कोशिश कर रहे हैं या अवैध चैनलों का उपयोग करके अपना पैसा दूसरे देशों में अपने रिश्तेदार या अपनी मातृभूमि भेज रहे हैं.
पाकिस्तान में रहते हैं 17 लाख अफगान शरणार्थी, 2 लाख वापस लौटे
उन्होंने कहा, 'लेकिन सभी अफगान समृद्ध नहीं हैं और ऐसे चैनलों का उपयोग करने में सक्षम नहीं हैं.' सोहराब गोथ में एक बस्ती के प्रमुख हाजी दाऊद खान का मानना है कि पाकिस्तान सरकार को कम से कम शरणार्थियों को कुछ टैक्स लेकर अपनी संपत्ति हस्तांतरित करने की अनुमति देनी चाहिए. कई अफगान शरणार्थी अपनी ज्यादातर कमाई नकदी में बचाते थे या यदि वे कोई व्यवसाय चलाते थे, तो उनके कई ग्राहक उनसे मौखिक समझौतों के आधार पर ऋण लेते थे. इसका एक उदाहरण शरीफुल्ला जान हैं, जो अवैध अफगान शरणार्थी हैं. उनका कुल 52 लाख रुपये बकाया है, जो उन्होंने पाकिस्तानियों को लोन के रूप में दिए हैं. लेकिन अब उनका पैसा वापस नहीं मिल पा रहा है.
पाकिस्तान ने कहा है कि उसने दशकों से लगभग 17 लाख अवैध अफगान शरणार्थियों की मेजबानी की है, लेकिन अब उनका समय समाप्त हो गया है और उन्हें अपने वतन लौटना होगा. अफगान शरणार्थियों के मुख्य आयुक्त अब्बास खान स्पष्ट करते हैं कि पाकिस्तान सरकार की नीति बहुत स्पष्ट है. सभी अवैध आप्रवासियों को जल्द से जल्द देश छोड़ना होगा. चूंकि पाकिस्तान में वे अवैध रूप से रह रहे हैं, इसलिए उनके पास अपने व्यवसायों, संपत्तियों को बचाने के लिए लीगल कवर नहीं है.
aajtak.in