अफगानिस्तान मसले पर मॉस्को फॉर्मेट में बुलाई रूस की मीटिंग में तालिबान और भारत के बीच बातचीत हुई. अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार में डिप्टी पीएम अब्दुल सलाम हनफी के नेतृत्व वाले तालिबानी प्रतिनिधिमंडल से भारत के प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार को मुलाकात की.
भारतीय विदेश मंत्रालय के पाकिस्तान-अफगानिस्तान-ईरान डिविजन के संयुक्त सचिव जेपी सिंह की अध्यक्षता वाले प्रतिनिधिमंडल ने रूस के निमंत्रण पर इस बैठक में हिस्सा लिया और तालिबान के नेताओं से बात की. तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने एक बयान जारी कर इस बारे में बताया. हालांकि, भारत सरकार की ओर से अभी तक इस मीटिंग को लेकर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है.
तालिबान के साथ भारत की पहली औपचारिक बैठक 31 अगस्त को दोहा में हुई थी. हालांकि, तालिबान की अंतरिम कैबिनेट के ऐलान के बाद दोनों के बीच ये पहली मुलाकात थी. अफगानिस्तान के टोलो न्यूज ने मुजाहिद के हवाले से बताया कि भारत ने इस बैठक में अफगानिस्तान को मानवीय सहायता देने की इच्छा जाहिर की.
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भारत पहले भी अफगानिस्तान में इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ मानवीय सहायता भी देता रहा है. मुजाहिद ने कहा कि बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने राजनयिक और आर्थिक संबंधों में सुधार की जरूरत पर भी जोर दिया.
मॉस्को फॉर्मेट की बैठक के दौरान अब्दुल सलाम हनफी अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अफगानिस्तान की अंतरिम तालिबान सरकार को मान्यता देने का आह्वान भी किया. इसके साथ ही उन्होंने अमेरिका से अफगानिस्तान के रिजर्व को देने की भी अपील की जो लगभग 9.4 अरब डॉलर है.
साल 2017 से शुरू हुए मॉस्को फॉर्मेट को अफगानिस्तान के मुद्दे को लेकर बनाया गया था. बुधवार को मॉस्को फॉर्मेट की तीसरी बैठक हुई. इस बैठक में रूस के अलावा भारत, चीन, पाकिस्तान, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गीस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान ने हिस्सा लिया. इस बैठक के बाद एक साझा बयान जारी किया गया, जिसमें बताया गया कि इसमें शामिल देशों ने अफगानिस्तान के नेतृत्व से पड़ोसी देशों के साथ उदार और मैत्रीपूर्ण नीतियां अपनाने का आह्वान किया. साथ ही महिलाओं और बच्चों के अधिकारों का सम्मान करने की बात भी कही.
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इस बैठक में शामिल देशों ने अफगानिस्तान में चल रहे आतंकवादी संगठनों की गतिविधियों पर भी चिंता जताई और उससे अपनी जमीन का इस्तेमाल पड़ोसी देशों के खिलाफ नहीं करने देने के वादे की ओर भी ध्यान दिलाया. इसके अलावा देशों ने अफगानिस्तान में बिगड़ती आर्थिक और मानवीय स्थिति पर भी चिंता जताई और इसे लेकर संयुक्त राष्ट्र से जल्द से जल्द इंटरनेशनल डोनर कॉन्फ्रेंस बुलाने की मांग का प्रस्ताव भी रखा.
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के दो हफ्ते पहले ही तालिबान ने 15 अगस्त को काबुल पर कब्जा कर लिया था. अगस्त में तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान मसले पर मॉस्को फॉर्मेट की ये पहली बैठक थी.
गीता मोहन