पूरी दुनिया ईरान के परमाणु हथियार कार्यक्रम से चिंतित है जबकि असली खतरा
इस्लामिक दुनिया के इकलौते परमाणुशक्ति संपन्न देश पाकिस्तान से है.
पाकिस्तान दुनिया के 8 परमाणुशक्ति संपन्न देशों में से एक है और शायद एक
ऐसा देश भी है जो दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा पैदा करता है. यह बात किसी से छिपी
हुई नहीं है कि पाकिस्तान आतंकी समूहों को अपनी जमीन पर सुरक्षित पनाह
देता है जो भारत, अफगानिस्तान, ईरान
और चीन हर तरफ हमले करते रहते हैं.
पाकिस्तान दावा करता रहा है कि इसका परमाणु हथियार कार्यक्रम पूरी तरह से
सुरक्षित है. हालांकि ज्यादातर विश्लेषकों को इस पर बिल्कुल यकीन नहीं है. तालिबान और अन्य
आतंकी समूह पाकिस्तान के कथित सुरक्षित सैन्य बेस तक पहुंचने में कामयाब
रहे हैं. इससे भी चिंता की बात ये है कि भविष्य में पाकिस्तानी सेना किसी तीसरी खतरनाक पार्टी या फिर सऊदी अरब
जैसे स्थिर देश को परमाणु सामग्री सौंप सकती है जिससे मध्य पूर्व में भी
हथियारों की दौड़ शुरू हो सकती है.
पाकिस्तान के पास क्यों हैं परमाणु हथियार?
पहली बार में ये अजीब लग सकता है कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं,
क्योंकि पाकिस्तान के चीन और यूएस के साथ अच्छे रिश्ते हैं और ये दोनों ही
देश पाकिस्तान की बर्बादी कभी नहीं चाहेंगे. भारत भी पाकिस्तान
में स्थिरता और शांति ही चाहता है. लेकिन इन सबके बावजूद पाकिस्तान का
पूरा परमाणु कार्यक्रम केवल और केवल भारत को ध्यान में रखते हुए बनाया गया
है.
पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार केवल इसलिए नहीं हैं कि भारत के पास हैं
बल्कि वह भौगोलिक आकार, आबादी और अर्थव्यवस्था में बहुत आगे पड़ोसी से अपने
पिछड़ेपन को पाटना चाहता है.
परमाणु हथियार संपन्न होने की वजह से पाकिस्तान इस बात को लेकर भी आश्वस्त
हो गया है कि 1971 की तरह अब उसे जिल्लत नहीं झेलनी पड़ेगी. 1971 के दो
मोर्चे के युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को हराकर पूर्वी
पाकिस्तान को अलग कर बांग्लादेश को जन्म दिया. अब भारतीय
सेना पाकिस्तान के इलाके में 1971 की तरह घुसती है तो पाकिस्तान अपनी
सेना की कमजोरी को छिपाने के लिए परमाणु हथियारों का ही सहारा लेगा.
पाकिस्तान अपने परमाणु हथियार संपन्न होने का इस्तेमाल भारत को परेशान करने में लगाता है. परमाणु हथियार होने से पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों के हमले के जवाब में भारतीय सेना की पाकिस्तान में किसी बड़ी स्ट्राइक के खिलाफ भी सुरक्षा प्रदान करता है. इससे पाकिस्तान को भारत में आतंकवादी हमले कराने का मौका मिल जाता है.
पाकिस्तान का परमाणु हथियार कार्यक्रम डॉ. अब्दुल कादिर खान के नेतृत्व में 1976 में शुरू हुआ. अब्दुल कादिर खान को पाकिस्तान न्यूक्लियर प्रोग्राम का पिता भी कहा जाता है. अब्दुल ऐम्सटरडैम में फिजिक्स डायनैमिक्स रिसर्च लैबोरेटरी में 1972-75 के बीच काम कर चुके थे जहां पर उन्होंने यूरेनियम को लेकर कई अहम जानकारियां जुटा ली थीं. इसके बाद अब्दुल कुछ गोपनीय दस्तावेज लेकर नीदरलैंड छोड़कर पाकिस्तान आ गए. पाकिस्तान लौटते ही खान लैब ने यूरेनियम संवर्धन प्लांट विकसित किया. 1983 में खान पर चोरी का आरोप लगा. इसके बाद खान का नाम उत्तर कोरिया, ईरान, ईराक और लीबिया को न्यूक्लियर डिजाइन्स और सामग्री की बिक्री से भी जुड़ा.
कैथोलिक यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री लेकर खान ने एम्सटरडैम में
फिजिक्स डायनैमिक्स रिसर्च लैबोरेटरी (FDO) में काम करना शुरू किया था. यह डच
फर्म की एक शाखा थी जो पश्चिमी यूरोप की URENCO के साथ काम करती थी.
पश्चिमी यूरोपीय देश अपने नाभिकीय रिएक्टरों के
लिए यूएस के परमाणु ईंधन पर निर्भर नहीं होना चाहते थे इसीलिए ग्रेट ब्रिटेन,
जर्मनी और नीदरलैंड्स ने मिलकर 1970 में संवर्धित यूरेनियम की आपूर्ति के
लिए यूरेनको (URENCO) बनाया था. इसी ईंधन का इस्तेमाल हिरोशिमा बम बनाने
में किया गया था.
1983 की यूएस स्टेट डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि चीन ने भी पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में मदद की है और परमाणु बम के लिए पूरा ब्लूप्रिंट भी पाकिस्तान को दिया. 1984 तक पाकिस्तान हथियारों के स्तर तक यूरेनियम संवर्धन में सक्षम हो चुका था. हालांकि, 80 के दशक के आखिरी वर्षों में काम तेजी से आगे बढ़ा था और इसकी वजहें थीं- भारत या इजरायल की स्ट्राइक का डर और अमेरिका का बढ़ता दबाव. इस दौरान पाकिस्तान ने अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम की दिशा में काम करना जारी रखा. 1998 में पाकिस्तान ने आखिरकार पहला परमाणु परीक्षण किया. यह परीक्षण इसी साल किए गए भारतीय परमाणु परीक्षण के जवाब में था.
अभी कितना है मजबूत-
पाकिस्तान के पास वर्तमान में 130-140 परमाणु बम हैं जो भारत और इजरायल
दोनों से ज्यादा हैं. पाकिस्तान फिलहाल तीन मोर्चे पर परमाणु हमला करने में
सक्षम नहीं है लेकिन यह स्थिति जल्द ही बदल सकती है. पाकिस्तान ने चीन से 8
डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के लिए डील की
है जो परमाणु मिसाइलों को ले जाने में सक्षम हैं. 2023 तक इन पनडुब्बियों
की डिलीवरी होने की खबरें हैं.
वर्तमान में, पाकिस्तान जमीन और हवा से परमाणु हमले करने में सक्षम है. 2750 किमी. रेंज वाली शाहीन-3 के विकास के साथ पाकिस्तान भारत के किसी भी हिस्से में हमला करने में सक्षम हो गया है और इसकी जद में इजरायल भी है. पाकिस्तान के F-16 लड़ाकू विमान भी परमाणु बम गिराने में सक्षम हैं और मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों को निशाना बना सकते हैं. अब पाकिस्तान टैक्टिकल और युद्ध के परमाणु हथियार बनाने में लगा हुआ है. पाकिस्तान की Nasr मिसाइल की रेंज 60 किमी की है.
पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम ना केवल दक्षिण एशिया में ही अस्थिरता की
वजह बन सकता है बल्कि मध्य-पूर्व एशिया में भी खतरनाक स्थिति पैदा कर सकता
है. इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि सऊदी अरब पाकिस्तान से गुपचुप
चरीके से परमाणु हथियार लेने की कोशिश ना करे. द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक,
सऊदी अरब जरूरत पड़ने पर परमाणु हमले में पाकिस्तान की त्वरित मदद की
अपेक्षा रखता है. हाल ही में सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने
पाकिस्तान की अरबों डॉलर की आर्थिक मदद की है.
क्या होगा भविष्य?
दक्षिण एशिया में परमाणु हमले की दुश्मनी एक खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है
क्योंकि पाकिस्तान भी परमाणु हथियार संपन्न देश बन चुका है. न्यू यॉर्क
टाइम्स के मुताबिक, परमाणु हमले के मामले में पाकिस्तान सबसे बड़ी चिंता
है. कमजोर सरकार और कुख्यात एजेंसियों की वजह से
पाकिस्तान परमाणु अप्रसार के लिए ईरान से ज्यादा बड़ा खतरा है. इस बारे
में कोई आश्वस्त नहीं है कि पाकिस्तान परमाणु सामग्री आतंकी समूहों को
उपलब्ध नहीं कराएगा. कम से कम ईरान जो भी करता है, उस पर उसका पूरा
नियंत्रण है.
पाकिस्तान के परमाणु हथियारों का जखीरा लगातार बढ़ रहा है और एक दशक के
भीतर तीन गुना हो सकता है. लेकिन इन सबके बावजूद पाकिस्तान एक गरीब देश है
और धार्मिक अतिवाद और अस्थिरता से घिरा हुआ है. ये स्थितियां पाकिस्तान को
ज्यादा खतरनाक देश बना देती हैं क्योंकि किसी
भी वक्त उसके परमाणु हथियारों का दुरुपयोग हो सकता है. इसके अलावा, ये
चीजें पाकिस्तान को व्यापार और विकास पर आधारित सामान्य देश के तौर पर
उभरने से भी रोकेंगी और भारत का डर दिखाते हुए ज्यादातर आबादी का ध्यान
सरकार की नाकामी से भटकाने की कोशिश की जाती रहेंगी.