जातीय बैलेंस, सियासी परिवारों पर दांव... मेयर चुनाव में खाता खोलने के लिए सपा की रणनीति को समझें 5 Points में

समाजवादी पार्टी इस बार नगर निगम के मेयर चुनाव में अलग रणनीति के साथ मैदान में उतरी है. सपा ने आठ मेयर कैंडिडेट के नामों का ऐलान कर दिया है, जिसमें जातीय और क्षेत्रीय कैंबिनेशन बनाने के साथ-साथ सीट के समीकरण का भी पूरा ख्याल रखा है. देखना है कि सपा की रणनीति कितनी कारगर होती है?

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सपा प्रमुख अखिलेश यादव सपा प्रमुख अखिलेश यादव

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली ,
  • 13 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 1:33 PM IST

उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिए हैं. सपा ने बुधवार रात आठ मेयर प्रत्याशियों के नाम का ऐलान कर दिया. सपा ने जिस तरह से कैंडिडेट उतारे हैं, उसके जरिए मेयर चुनाव में सिर्फ बीजेपी को तगड़ी फाइट देने की नहीं बल्कि जीत का परचम फहराने की भी रणनीति है. उम्मीदवारों के चयन में पार्टी ने जातीय समीकरण का लिहाज रखा है तो भारी-भरकम नेताओं के परिवार पर दांव लगाया है ताकि अपना मेयर बना सके. 

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सपा के 8 मेयर कैंडिडेट
यूपी की 17 नगर निगम की मेयर सीटों में से सपा ने आठ सीट पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं. लखनऊ से वंदना मिश्रा, गोरखपुर से काजल निषाद, मेरठ से सीमा प्रधान, शाहजहांपुर से अर्चना वर्मा, फिरोजाबाद से मशरूर फातिमा, अयोध्या से डॉ. आशीष पाण्डेय, झांसी से रघुवीर चौधरी और प्रयागराज से अजय श्रीवास्तव को मेयर का प्रत्याशी सपा ने बनाया है. इसके अलावा तिलहर नगर पालिका परिषद से अध्यक्ष पद पर लाल बाबू और कुंदरकी नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर शमीना खातून को प्रत्याशी घोषित किया है.

नगर निगम चुनाव में सपा की रणनीति को 5 प्वाइंट्स में समझें... 

1. नेताओं के परिवार पर दांव

  • सपा मेयर चुनाव में सपा ने अपने दिग्गज नेताओं के परिवार पर भरोसा जताया है. मेरठ से सपा ने सरधना विधायक अतुल प्रधान की पत्नी सीमा प्रधान को उतारा है, जो जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं. 
     
  • शाहजहांपुर से पूर्व मंत्री राममूर्ति वर्मा की बहू अर्चना वर्मा को टिकट दिया है, जो जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं और उनके पति राजेश वर्मा भी सपा से विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं. 
     
  • अयोध्या नगर निगम से सपा ने पूर्व मंत्री जयशंकर पांडेय के बेटे आशीष पांडेय पर भरोसा जताया है. इस तरह सपा अपने दिग्गज नेताओं के परिवार में टिकट देकर बड़ा दांव चला है. 

2. आठों सीट के कैंडिडेट का समीकरण 

  • सपा ने नगर निगम के जातीय समीकरण का ख्याल रखते हुए कैंडिडेट उतारे हैं. इस तरह सपा ने जिस सीट पर जो समुदाय निर्णायक भूमिका में है, उसी पर दांव खेला है. प्रयागराज से लेकर मेरठ और अयोध्या तक की मेयर सीट पर पैटर्न दिख रहा है. 
     
  • प्रयागराज में अजय श्रीवास्तव को प्रत्याशी बनाया है. प्रयागराज में कास्यथ मतदाता बड़ी संख्या में हैं. अजय कायस्थों के केपी ट्रेस्ट के उपाध्यक्ष भी रहे हैं. केपी श्रीवास्तव सपा से मेयर भी रहे हैं, जिसे देखते हुए सपा ने एक बार फिर कायस्थ दांव चला है. अजय श्रीवास्तव राष्ट्रीय महासचिव इंद्रजीत सरोज के साथ सपा में आए थे और उनके करीबियों में गिने जाते हैं. प्रयागराज बेल्ट में इंद्रजीत सरोज का अपना ग्राफ है. 
     
  • गोरखपुर में निषाद समुदाय अहम भूमिका में हैं. इसी बात का ख्याल रखते हुए सपा ने भोजपुरी अभिनेत्री काजल निषाद पर फिर भरोसा जताया है. काजल को सपा ने कैंपियरगंज विधानसभा सीट से टिकट दिया था और उन्हें बीजेपी के फतेहबहादुर सिंह के सामने करीब 80 हजार वोट हासिल किए थे. इस तरह निषाद समुदाय को साधने की एक बार कवायद की है. 
     
  • मेरठ में गुर्जर समुदाय अहम भूमिका में हैं, जिसे देखते हुए सपा ने गुर्जर समुदाय से आने वाली सीमा प्रधान पर दांव खेला है. अतुल प्रधान सपा के गुर्जर चेहरा है और राहुल के करीबी नेता हैं. वहीं, अयोध्या में ब्राह्मण मतदाता बड़ी संख्या में हैं, जिसे देखते हुए आशीष पांडेय पर दांव खेला है. 
     
  • फिरोजबाद में मुस्लिम मतदाता अच्छी खासी संख्या में हैं, जिसके चलते ही मशरूर फातिमा को उतारा है. मशरूर 2017 में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी से मेयर का चुनाव लड़ी थी और करीब 56 हजार वोट पाकर दूसरे नंबर पर रही. हाल ही में सपा में शामिल हुई थी और अब सपा उनके जरिए मुस्लिम-यादव समीकरण बनाने का दांव चला है. 
     
  • शाहजहांपुर नगर निगम पहली बार बनी है और यहां कुर्मी मतदाता अच्छी खासी संख्या में है. ऐसे में सपा ने कुर्मी समुदाय से आने वाली अर्चना वर्मा को उतारा है. सपा शाहजहांपुर में कुर्मी-मुस्लिम-यादव कैंबिनेशन के सहारे जीत दर्ज करना चाहती है. 
     
  • झांसी नगर निगम सीट सुरक्षित है और यहां पर दलितों की बड़ी संख्या में है. सपा ने झांसी से पार्टी के जिला उपाध्यक्ष रहे डॉ. रघुवीर चौधरी पर दांव खेला है, जो दलित समुदाय से आते हैं और अभी युवा हैं. सपा झांसी में दलित-मुस्लिम-यादव फॉर्मूला बनाने की रणनीति है.  
     
  • लखनऊ में ब्राह्मण वोटर सबसे अहम भूमिका में है, जिसे देखते हुए सपा ने वंदना मिश्र पर भरोसा जताया है. वंदना लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रमेश दीक्षित की पत्नी हैं. पेशे से पत्रकार वंदना मिश्रा सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जानी जाती हैं और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबिर्टीज यूपी की अध्यक्ष हैं. लखनऊ की बौद्धिक जमात के बीच मजबूत पकड़ रखती हैं, जिसे देखते हुए सपा ने उन्हें मैदान में उतारा है. 

3. सपा की नई सोशल इंजीनियरिंग 


सपा ने मेयर चुनाव के जरिए नई सोशल इंजीनियरिंग बनाने की कवायद की है. सपा ने मेयर चुनाव उम्मीदवारों की फेहरिश्त में ओबीसी और सवर्ण समुदाय पर खास भरोसा जताया है. पार्टी ने 8 मेयर प्रत्याशी उतारे हैं, जिसमें 4 ओबीसी, 2 ब्राह्मण, एक कायस्थ, तीन पिछड़े और मुस्लिम-दलित एक-एक हैं. सपा ने आठ में से पांच सीटों पर महिला मेयर कैंडिडेट उतारकर बड़ा दांव चला है. 

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सपा ने शहरी इलाके के जातीय समीकरण का ध्यान रखते हुए कैंडिडेट उतारे हैं. इसीलिए आधे टिकट सवर्णों को दिए हैं तो गैर-यादव ओबीसी को साधने के लिए किसी तरह की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. सपा निषाद, गुर्जर और कुर्मी समुदाय को मेयर टिकट देकर अपने समीकरण को दुरुस्त करने की कवायद की है. 

4. दलबदलू नेताओं को अहमियत 


सपा ने मेयर चुनाव में दूसरे दलों से आए नेताओं पर भी भरोसा जताया है. मशरूर फातिमा ओवैसी की एआईएमआईएम से सपा में आई हैं और उनके पति नौशाद अली बसपा के नेता रहे हैं. वहीं, प्रयागराज के अजय श्रीवास्तव इंद्रजीत सरोज के साथ बसपा से सपा में आए थे और उनके करीबियों में गिने जाते हैं. इन दोनों ही नेताओं की पकड़ अपने-अपने क्षेत्र में काफी मजबूत है, जिसे देखते हुए सपा ने उन्हें मेयर के चुनाव में उतारा है. 

5. एम-वाई से बाहर तलाश रही जमीन


सपा ने मेयर चुनाव में जिस तरह से कैंडिडेट उतारे हैं, उसमें यादव समुदाय से किसी को प्रत्याशी नहीं बनाया है. सपा ने सिर्फ एक ही मुस्लिम प्रत्याशी उतारा है जबकि मेरठ मेयर के लिए सपा विधायक रफीक अंसारी अपनी पत्नी के लिए टिकट मांग रहे थे, लेकिन पार्टी ने अतुल प्रधान की पत्नी पर भरोसा जताया. लखनऊ में भी कई मुस्लिम दावेदार थे. ऐसे में साफ है कि सपा अब अपने कोर वोटबैंक यादव-मुस्लिम से बाहर अपनी सियासी जमीन तलाश रही है, जिसके लिए सवर्ण-ओबीसी पर खास फोकस किया है. 

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