उत्तर प्रदेश को बीजेपी का नया अध्यक्ष आखिरकार मिल गया है. मोदी सरकार में मंत्री पंकज चौधरी ने यूपी बीजेपी अध्यक्ष पद के लिए शनिवार को अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उनके प्रस्तावक बने. यूपी बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए सिर्फ एक ही नामांकन हुआ है. रविवार को पंकज चौधरी के नाम का औपचारिक रूप से ऐलान कर दिया जाएगा.
केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी पूर्वांचल के गोरखपुर से आते हैं. ओबीसी वर्ग से आने वाले पंकज चौधरी सात बार के सांसद हैं और ओबीसी में यादव के बाद दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले कुर्मी समुदाय से आते हैं. बीजेपी ने ओबीसी समाज से प्रदेश अध्यक्ष बनाकर संगठन की कमान ओबीसी और सरकार की कमान अगड़ी जाति के हाथ में देकर सामाजिक समीकरण साधने और संतुलन बैठाने का प्रयास किया है.
यूपी के नवनिर्वाचित बीजेपी अध्यक्ष की अगुवाई में ही 2027 का विधानसभा चुनाव होना है. ऐसे में बीजेपी संगठन की कमान संभालने के साथ ही केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी को सियासी और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना होगा.
सरकार के साथ संगठन का तालमेल
यूपी बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर अब संगठन की जिम्मेदारी पंकज चौधरी के हाथों में होगी. ऐसे में सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल बनाए रखने की चुनौती होगी. सीएम योगी की कार्यशैली को लेकर बीजेपी के कई नेता और सहयोगी दल भी अंदरखाने अपनी नाराजगी जाहिर करते रहे हैं. यह सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आती, लेकिन वे समय-समय पर अपनी शिकायत केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंचाते रहते हैं.
2024 के चुनाव के बाद संगठन और सरकार के बीच कथित खींचतान की बात खुलकर सामने आई थी. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का 'संगठन सरकार से ऊपर' वाला बयान ने सियासी हवा दे दी थी. ऐसे में नए अध्यक्ष के तौर पर पंकज चौधरी को बीजेपी संगठन को प्रदेश से लेकर ब्लॉक और बूथ स्तर तक मजबूत करने के साथ कार्यकर्ताओं को अहमियत देने की चुनौती होगी.
सीएम योगी सत्ता की बागडोर संभाल रहे हैं तो पंकज चौधरी के हाथों में संगठन की कमान होगी. योगी और चौधरी के सियासी रिश्ते जगजाहिर हैं. पंकज चौधरी के सामने पहले संगठनात्मक रूप से खुद को साबित करने ही नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली के साथ बेहतर तालमेल भी स्थापित करके चलने की चुनौती होगी. वह सीएम योगी की प्रशासनिक शैली के पूरक की तरह कार्य करें, न कि उसके समानांतर कोई नया शक्ति केंद्र बनें. सरकार और संगठन को एक-दूसरे के साथ मिलकर समानांतर चलना होगा ताकि कार्यकर्ताओं का हौसला बना रहे.
खुद को साबित करने की होगी चुनौती
उत्तर प्रदेश की सियासत में बीजेपी का दोबारा से राजनीतिक उभार 2014 के लोकसभा चुनाव से हुआ है, जिसके बाद से पार्टी की कमान केशव प्रसाद मौर्य, महेंद्रनाथ पांडेय, स्वतंत्र देव सिंह और भूपेंद्र चौधरी जैसे दिग्गज संभाल चुके हैं. इन सभी नेताओं ने खुद को स्थापित किया. केशव मौर्य के नेतृत्व में बीजेपी 15 साल के सत्ता का वनवास 2017 में खत्म करने में कामयाब रही थी. महेंद्रनाथ पांडेय की अगुवाई में बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा जैसे मजबूत गठबंधन को बेअसर किया.
स्वतंत्र देव सिंह की अगुवाई में बीजेपी 2022 में सत्ता दोहराने में सफल रही, जो यूपी के तीन दशक के इतिहास में नहीं हो सका था. ऐसे में बीजेपी के नए अध्यक्ष के रूप में पंकज चौधरी के सामने भी एक बड़ा सियासी टास्क होगा. इतना ही नहीं, उन्हें केशव और स्वतंत्र देव सिंह जैसे नेताओं के बीच अपनी सियासी ताकत साबित करनी होगी. केंद्रीय मंत्री और सांसद के तौर पर जरूर लंबा अनुभव है, लेकिन संगठन के रूप में खुद को स्थापित करने का चैलेंज होगा. यह चुनौती पंकज चौधरी के लिए सिर्फ पार्टी में ही नहीं, बल्कि सहयोगी दलों के बीच भी होगी.
2024 की हार का कैसे करेंगे हिसाब?
बीजेपी को 2024 में सबसे ज्यादा झटका यूपी में लगा था, जहां पर उसकी सीटें सबसे ज्यादा घट गईं थीं. यूपी की कुल 80 लोकसभा सीटों में से बीजेपी सिर्फ 33 सीट ही जीत सकी थी, 2019 की तुलना में उसे 31 सीटों का सीधा नुकसान हुआ था. इसका नतीजा था कि नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होने के लिए सहयोगी दलों की बैसाखी का सहारा लेना पड़ा. इसके चलते ही यूपी में बीजेपी के अंदरखाने सियासी टकराव शुरू हो गए थे.
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का सियासी ताना-बाना बिखर गया था. सपा ने ओबीसी और दलित समाज के बड़े वर्ग को अपने पक्ष में कर लिया था और यूपी में 37 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया था. अब बीजेपी प्रदेश संगठन की कमान संभालने के साथ ही पंकज चौधरी को 2024 का हिसाब बराबर करने के लिए फ्रंटफुट पर उतरना होगा और पार्टी के खिसके हुए जनाधार को दोबारा से लाना होगा, जिसमें दलित और ओबीसी वोट शामिल हैं. उन्हें बीजेपी को चार चुनावों (2014 और 2019 लोक सभा तथा 2017 और 2022 विधानसभा) में जीत के अपने रिकॉर्ड को कायम रखना है तो एक बार फिर से सामाजिक समीकरणों को साधने की चुनौती है.
सपा के PDA चक्रव्यूह को तोड़ने का चैलेंज
सपा प्रमुख अखिलेश यादव का पूरा फोकस पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) के समीकरण पर है. सपा का दावा है कि यूपी में पीडीए की आबादी 85 से 90 फीसदी है. इसी फॉर्मूले से अखिलेश ने 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा को यूपी में सबसे बड़ी पार्टी बनाने में कामयाबी हासिल की और बीजेपी को गहरा झटका दिया था. सपा ने इसी समीकरण के सहारे अयोध्या सीट पर भी बीजेपी को मात देने में सफल रही. बीजेपी ने जिस समीकरण को 2014 में बनाया था, वह 2024 में बिखर गया है.
अखिलेश यादव 2027 में भी पीडीए फॉर्मूले के सहारे बीजेपी से सत्ता छीनने की कवायद में हैं. इसी के चलते बीजेपी ने संगठन की बागडोर पंकज चौधरी को सौंपी है, जो ओबीसी की कुर्मी जाति से आते हैं. बीजेपी से 2024 में सबसे ज्यादा कुर्मी वोटर ही छिटके हैं और पार्टी को पूर्वांचल में ही सबसे अधिक नुकसान हुआ था. यही वजह है कि बीजेपी ने इन्हीं दोनों समीकरणों को ध्यान में रखते हुए पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपने का फैसला किया.
बीजेपी की कोशिश पूर्वांचल में अपनी सियासी ताकत बढ़ाने और गैर-यादव ओबीसी वोटों को एकजुट करने की है. पंकज चौधरी के सामने गैर-यादव ओबीसी वोटों को दोबारा से जोड़ने और सपा के पीडीए को काउंटर करने की स्ट्रैटेजी बनाने की चुनौती है. पंकज चौधरी जिस समाज से आते हैं, वह पूर्वांचल से लेकर बुंदेलखंड और रुहेलखंड तक फैले हुए हैं.
2027 में सत्ता की हैट्रिक लगाने की चुनौती
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर संभालने के बाद पंकज चौधरी की पहली अग्निपरीक्षा 2026 के पंचायत चुनाव और उसके बाद 2027 के विधानसभा चुनाव में होनी है. बीजेपी को जिस तरह से 2024 में झटका लगा है, उससे 2027 के लिए सियासी चुनौती पार्टी के सामने खड़ी हो गई है. इस तरह से पंकज चौधरी के सामने सिर्फ संगठन को धार देने और सामाजिक समीकरण को मजबूत करने का ही नहीं, बल्कि 2027 में सत्ता की हैट्रिक लगाने की भी चुनौती है. ऐसे में टिकट वितरण से लेकर सियासी नैरेटिव बनाने तक की जिम्मेदारी होगी. इसके अलावा संगठन को पूरी तरह से जमीन पर एक्टिव करना होगा.
सपा ने जिस तरह 2024 में सीटें जीती हैं, उसके बाद बीजेपी के लिए 2027 की सियासी राह काफी मुश्किलों भरी है. पंकज चौधरी को आगामी चुनाव के लिए पार्टी नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं में जोश भरने और 2027 में हैट्रिक की लड़ाई के लिए खुद को बेहतर ढंग से तैयार करना होगा. 10 साल की सत्ता के खिलाफ उभरने वाली एंटी-इनकंबेंसी को तोड़ने और सियासी माहौल को बीजेपी मय बनाए रखने की चुनौती होगी. इतना ही नहीं, विधायकों के खिलाफ जनता की नाराजगी को तोड़ने का भी चैलेंज होगा. देखना होगा कि पंकज चौधरी कैसे इन सारी चुनौतियों से पार पाते हैं?
कुबूल अहमद