यूपी में अब वसीयत का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी नहीं... इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश

उत्तर प्रदेश में वसीयत का रजिस्ट्रेशन कराना अब जरूरी नहीं है. एक ताजा फैसला में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई वसीयत रजिस्टर्ड नहीं है तो उसे अवैध नहीं माना जाएगा. इसी के साथ कोर्ट ने उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम की धारा 169 की उपधारा 3 रद्द कर दी.

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इलाहाबाद HC का आदेश. इलाहाबाद HC का आदेश.

aajtak.in

  • प्रयागराज,
  • 12 मई 2024,
  • अपडेटेड 8:21 AM IST

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि उत्तर प्रदेश में वसीयत का रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं है. बता दें कि राज्य सरकार ने 23 अगस्त 2004 से वसीयत का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया था. अब कोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में वसीयत को पंजीकृत करने की आवश्यकता नहीं है और उत्तर प्रदेश संशोधन अधिनियम 2004 के पहले या बाद में पंजीकरण न होने पर वसीयत रद्द नहीं होगी.

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एजेंसी के अनुसार, न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम की धारा 169(3) उस सीमा तक शून्य होगी, जिसमें वसीयत के पंजीकरण का प्रावधान है. हाई कोर्ट ने साफ कर दिया कि अगर कोई वसीयत रजिस्टर्ड नहीं है तो उसे अवैध नहीं माना जाएगा.

यह भी पढ़ें: यूपी मदरसा एक्ट को रद्द करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को SC में चुनौती, कहा-HC के पास रद्द करने का अधिकार नहीं

खंडपीठ ने प्रमिला तिवारी द्वारा दायर याचिका पर मुख्य न्यायाधीश द्वारा भेजे गए रेफरेंस को निस्तारित करते हुए यह फैसला सुनाया है. हाई कोर्ट ने माना कि उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम, 1950 की धारा 169(3) भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 के विपरीत है. कोर्ट ने पंजीकरण अनिवार्य करने संबंधी 2004 का संशोधन कानून शून्य करार दिया है. उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम की धारा 169 की उपधारा 3 रद्द कर दी.

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तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने 23 अगस्त 2004 से वसीयत का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया था. शोभनाथ मामले में हाई कोर्ट ने कहा था कि कानून लागू होने के बाद वसीयत का पंजीकरण जरूरी है, लेकिन जहान सिंह मामले में कहा गया कि वसीयत मृत्यु के बाद प्रभावी हो जाती है और इसलिए इसे पेश करने के समय पंजीकृत किया जाना चाहिए. दो विपरीत विचारों पर स्पष्टीकरण के लिए मुख्य न्यायाधीश ने खंडपीठ को रेफरेंस भेजा था.

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