उत्तर प्रदेश की सियासत में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का मुकाबला करने के लिए विपक्षी समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ने नया फॉर्मूला अपना लिया है. अखिलेश ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से आए दिग्गज नेताओं को अपनी टीम में सिर्फ जगह ही नहीं दी, बल्कि ये भी साफ कर दिया कि वे कांशीराम के फॉर्मूले 85-15 को लेकर आगे बढ़ेंगे. अखिलेश ने रविवार को सपा की 64 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी का ऐलान किया जिसमें एम-वाई (मुस्लिम-दलित) की बजाय 85-15 के फॉर्मूले पर फोकस कर बहुजन समाज (दलित-पिछड़ों) के जरिए नई सोशल इंजीनियरिंग को धार देने की रणनीति झलक रही है.
यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी छोड़कर सपा की सदस्यता लेते समय स्वामी प्रसाद मौर्य ने 85-15 का नारा दिया था लेकिन उस समय अखिलेश यादव सर्वसमाज को साधने की कोशिशों के कारण 85 बनाम 15 की रणनीति पर आगे नहीं बढ़ सके थे. लेकिन, अब 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कांशीराम के फॉर्मूले पर अखिलेश यादव ने अपने कदम आगे बढ़ा दिए हैं. इसी का नतीजा है कि सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अंबेडकरवादियों को खास तरजीह देकर अखिलेश यादव ने 85-15 को सपा संगठन में लागू कर दिया है.
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने रविवार शाम 64 सदस्यों के राष्ट्रीय संगठन पदाधिकारियों का ऐलान किया. एक उपाध्यक्ष, एक प्रमुख महासचिव के अलावा 15 महासचिव, 20 राष्ट्रीय सचिव, 24 कार्यसमिति के सदस्य बनाए गए हैं जबकि 4 विशेष आमंत्रित सदस्य हैं. सपा ने इस बार अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी का विस्तार किया है. 2017 में सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कुल 55 सदस्य थे जिसे बढ़ाकर अब 64 कर दिया गया है. सपा संगठन में 83 फीसदी दलित, ओबीसी और मुस्लिमों को जगह मिली है जबकि 17 फीसदी के करीब सवर्ण समुदाय से हैं.
सपा संगठन ने 33 फीसदी यादव-मुस्लिम
सपा की 64 सदस्यीय टीम में 11 यादव और 10 मुस्लिम हैं जो लगभग 33 फीसदी होते हैं. वहीं, सपा संगठन में 40 फीसदी से ज्यादा गैर-यादव ओबीसी चेहरे शामिल किए गए हैं जिसमें अखिलेश यादव ने अति पिछड़ी जातियों पर ज्यादा फोकस रखा है. पाल, निषाद, राजभर, मौर्य, कुशवाहा और कुर्मी बिरादरी को तवज्जो दी गई है. दलित समुदाय से छह और एक आदिवासी चेहरे को संगठन में जगह दी गई है. 11 चेहरे सवर्ण जाति से हैं इसमें चार ब्राह्मण और दो ठाकुर और एक भूमिहार समाज से हैं.
अखिलेश यादव ने अपने संगठन में जातीय आधार पर उसी फॉर्मूले के तहत प्रतिनिधित्व दिया है, जिस पर बसपा के संस्थापक कांशीराम चल रहे थे. इस तरह से ये अखिलेश यादव की नई सोशल इंजीनियरिंग है जिसमें उन्होंने अपने कोर वोटबैंक मुस्लिम और यादव के पुराने कॉम्बिनेशन से आगे बढ़ते हुए दलित, ओबीसी और अतिपिछड़ा को जोड़ने की कोशिश की है. इस तरह से सपा के नए संगठन के जरिए दलित, अतिपिछड़ा और एमवाई, तीनों को साधने की रणनीति साफ झलक रही है.
गैर यादव ओबीसी की गोलबंदी पर फोकस
सपा के राष्ट्रीय संगठन को देखें तो अखिलेश यादव की पूरी कोशिश गैर-यादव ओबीसी गोलबंदी पर फोकस है जिसके साथ दलितों को भी जोड़ा गया है. दलित बिरादरी में खासकर पासी समुदाय को ज्यादा तवज्जो दी गई है. सपा को लगता है कि दलितों के वर्ग में उनके साथ जुड़ने की ज्यादा संभावनाएं हैं. इसी उम्मीद में अखिलेश यादव ने दलितों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले पासी समुदाय से दो महासचिव बनाए हैं तो चार सचिव और सदस्य बनाए गए हैं.
पासी समुदाय से आने वाले अवधेश प्रसाद, इंद्रजीत सरोज सपा के महासचिव बने हैं. ये दोनों ही पासी समुदाय के नेता सेंट्रल यूपी से आते हैं. इसके अलावा जाटव समुदाय से रामजीलाल सुमन है, जो यूपी के ब्रज क्षेत्र से हैं. दलित नेता त्रिभुवन दत्त को राष्ट्रीय सचिव बनाया गया है, जो कांशीराम की राजनीतिक प्रयोगशाला से ही निकले हैं. संजय विद्यार्थी को भी सपा की नई टीम में जगह मिली है.
स्वामी प्रसाद ने दिया था 85 बनाम 15 का नारा
बता दें कि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 80 बनाम 20 का नारा देकर सपा को घेर रहे थे. जब स्वामी प्रसाद मौर्य ने बीजेपी छोड़कर सपा का दामन थामा था तब उन्होंने सीएम योगी के 80-20 वाले नेरेटिव के खिलाफ 85 बनाम 15 का नारा दिया था. इसके बाद से बीजेपी के किसी भी नेता ने पूरे चुनाव के दौरान 80-20 की बात नहीं कही थी लेकिन अखिलेश भी 85-15 पर आगे नहीं बढ़ सके थे. हालांकि, अखिलेश यादव ने सिर्फ 85-15 की बात ही नहीं की बल्कि अब अपने संगठन में जगह दी है. सपा संगठन से साफ जाहिर होता है कि अब अखिलेश यादव पूरी तरीके से 85-15 के फार्मूले पर आ चुके हैं.
कुमार अभिषेक