लोकसभा चुनाव करीब हैं और समाजवादी पार्टी (सपा) ने यूपी की सभी 80 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को हराने का लक्ष्य रखा है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव इसके लिए संगठन के पेच कसने और नाराज नेताओं की नाराजगी दूर करने की कवायद में जुटे हैं तो वहीं नेताओं के पार्टी छोड़ने का सिलसिला भी शुरू हो गया है. मऊ की घोसी विधानसभा सीट से सपा के टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए दारा सिंह चौहान ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. वे बीजेपी में शामिल होंगे.
दारा सिंह चौहान ने सपा से किनारा क्यों किया, इसे लेकर अभी कोई जानकारी सामने नहीं आई है. दूसरी तरफ एनडीए में फिर से लौट चुके ओमप्रकाश राजभर ने दावा किया है कि सपा के कई विधायक उनके और बीजेपी के संपर्क में हैं. इन दावों के बीच सपा प्रमुख अखिलेश यादव एक्टिव मोड में आ गए हैं. अखिलेश ने शिवपाल यादव के करीबियों को संगठन में जगह देकर संतुष्ट करने की कोशिश की है तो वहीं आजम खान के साथ लखनऊ के एक बाग में पहुंचकर उनके साथ तल्खी दूर करने की भी.
समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता आजम खान को रामपुर की एक अदालत ने हेट स्पीच केस में दोषी करार दिया था. साल 2019 के इस केस में आजम को दो साल की सजा सुनाई गई है. कोर्ट का फैसला आने से पहले यूपी की राजधानी लखनऊ में आम के बाग से एक तस्वीर आई थी. अखिलेश यादव, आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम के साथ लखनऊ के ही कलीमुल्ला खान के मलिहाबाद इलाके में स्थित आम के बाग पहुंचे थे. अखिलेश और आजम ने आम का स्वाद चखा. इसे दोनों नेताओं के बीच की तल्खी कम करने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है.
सपा का बिखरा कुनबा जोड़ रहे अखिलेश
चुनावी साल में अखिलेश यादव एक्टिव मोड में हैं. आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम के साथ आम के बगीचे से आई तस्वीरें हों या शिवपाल यादव के समर्थकों को संगठन में जगह देना. ताजा कदम ये बताते हैं कि अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी कुनबे को एकजुट कर चुनाव मैदान में उतरना चाहते हैं. गौरतलब है कि अखिलेश यादव ने बीजेपी को यूपी की 80 सीटों पर हराने का लक्ष्य रखा है. आजम खान ने हाल ही में अखिलेश के जन्मदिन पर कलम से केक काटा था.
मुस्लिम वोट पर अखिलेश की नजर
अखिलेश और आजम की आम पर चर्चा को मुस्लिम वोट की राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. ऐसे समय में जब लोकसभा चुनाव करीब हैं, बीजेपी से लेकर बसपा तक की नजर मुस्लिम वोट पर है. सपा आजम खान जैसे कद्दावर मुस्लिम नेता की नाराजगी मोल लेना नहीं चाहती. मुस्लिम मतदाताओं की बहुलता वाली रामपुर और आजमगढ़ सीट उपचुनाव में सपा गंवा चुकी है. ऐसे में पार्टी की कोशिश अपने कोर वोटर को साधे रखने की है. यादव के साथ ही मुस्लिम भी सपा के कोर वोटर रहे हैं. अखिलेश यादव नहीं चाहते कि सपा के बड़े मुस्लिम चेहरे, 10 बार विधायक रहे आजम की नाराजगी से मुस्लिम समाज में गलत मैसेज जाए.
यूपी की 65 सीटों पर मुस्लिम प्रभावी
उत्तर प्रदेश में कुल 80 लोकसभा सीटें हैं. 80 में से 65 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम मतदाता प्रभावी भूमिका में हैं. इन सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की तादाद 30 फीसदी से भी अधिक है. पूरे प्रदेश की बात करें तो यूपी की कुल आबादी में अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी करीब 20 फीसदी है. अल्पसंख्यकों में भी अधिक तादाद मुस्लिम समुदाय की है.
रामपुर लोकसभा सीट की बात करें जहां से 2019 में आजम खान निर्वाचित हुए थे, यहां मुस्लिम मतदाताओं की बहुलता है. रामपुर सीट पर करीब 55 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. 42 फीसदी हिंदू वोटर हैं तो तीन फीसदी के करीब सिख और बौद्ध. उपचुनाव में सपा ने आजम खान के करीबी आसिम रजा को उम्मीदवार बनाया था. आजम ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंकी भी, लेकिन आसिम को जिता नहीं पाए.
सपा की हार के पीछे आजम और अखिलेश के बीच तल्खी से मुस्लिम मतदाताओं में गलत मैसेज जाने को भी एक फैक्टर बताया गया. इसी तरह आजमगढ़ सीट के उपचुनाव में भी सपा को हार मिली जहां से 2019 में खुद अखिलेश यादव लोकसभा पहुंचे थे. आजमगढ़ लोकसभा सीट पर भी जीत और हार तय करने में मुस्लिम मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं.
सपा के लिए आजम क्यों अहम
रामपुर और आजमगढ़ की हार के बाद सपा अलर्ट हो गई. अखिलेश ने पिछले दिनों बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को हराने के लिए पीडीए का फॉर्मूला दिया था. पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक. अखिलेश ने इस फॉर्मूले की बात कर अल्पसंख्यकों को ये संदेश देने की कोशिश की थी कि वे सपा की सियासत में अहम रोल रखते हैं. ऐसे में 10 बार के पूर्व विधायक आजम खान पार्टी के लिए और भी अहम हो जाते हैं. आजम संगठन के भी आदमी माने जाते हैं और मुस्लिम मतदाताओं के बीच उनकी अच्छी पैठ मानी जाती है.
सियासत में नई नहीं आम पॉलिटिक्स
सियासी कड़वाहट दूर करने के लिए आम की मिठास का सहारा लेने की ये कोई पहली घटना नहीं है. राजनीति और आम का पुराना नाता रहा है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी भी आम पॉलिटिक्स का सहारा लेती रही हैं. ममता बनर्जी हर साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आम भेजती हैं.
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