22 दिन जेल, 300 बार कोर्ट में हाजिरी और सब कुछ हुआ बर्बाद... सिस्टम से हारकर 17 साल तक झूठे केस में फंसे शख्स की दर्दनाक कहानी

राजवीर की निजी जिंदगी पर भी इसका गहरा असर पड़ा. उनकी दो बेटियां अब शादीशुदा हैं, जिनमें से एक दिव्यांग है. उनका बेटा गौरव पढ़ाई छोड़कर खेतों में मजदूरी करने को मजबूर हो गया. इन 17 वर्षों में न सिर्फ उनकी जमा पूंजी खत्म हो गई, बल्कि समाज में उनकी छवि पर भी सवाल उठते रहे.

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17 वर्षों तक झूठे मुकदमे की मार झेलनी पड़ी- (Photo: AI-generated) 17 वर्षों तक झूठे मुकदमे की मार झेलनी पड़ी- (Photo: AI-generated)

aajtak.in

  • मैनपुरी,
  • 28 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 6:43 AM IST

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के रहने वाले 62 वर्षीय राजवीर को आखिरकार 17 साल बाद अदालत से राहत मिली, लेकिन यह राहत इतनी देर से आई कि उसने उनका जीवन बर्बाद कर दिया. गैंगस्टर एक्ट जैसे गंभीर आरोप में दर्ज एक गलत नाम की वजह से उन्हें 22 दिन जेल में रहना पड़ा, 300 से ज्यादा बार अदालत में पेश होना पड़ा और परिवार को भी सालों तक मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

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कब सामने आया मामला?
यह मामला अगस्त 2008 का है, जब पुलिस ने गैंगस्टर एक्ट के तहत एक मामले में 'रामवीर' नामक व्यक्ति को आरोपी बनाना था, लेकिन कोतवाली इंस्पेक्टर की एक चूक के चलते राजवीर का नाम दर्ज कर लिया गया. रामवीर उनके भाई हैं.

300 बार कोर्ट में हाजिरी दी
राजवीर के वकील विनोद कुमार यादव ने बताया, 'मेरे मुवक्किल बार-बार कहते रहे कि उनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन किसी ने नहीं सुना. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 22 दिन जेल में रहना पड़ा.' इसके बाद राजवीर को जमानत तो मिल गई, लेकिन असली लड़ाई तब शुरू हुई. 2012 में मामला आगरा से मैनपुरी ट्रांसफर हो गया. तब से अब तक उन्होंने करीब 300 बार अदालत में हाजिरी दी.

बेटा पढ़ाई छोड़कर खेतों में मजदूरी करने को मजबूर हुआ
राजवीर की निजी जिंदगी पर भी इसका गहरा असर पड़ा. उनकी दो बेटियां अब शादीशुदा हैं, जिनमें से एक दिव्यांग है. उनका बेटा गौरव पढ़ाई छोड़कर खेतों में मजदूरी करने को मजबूर हो गया. इन 17 वर्षों में न सिर्फ उनकी जमा पूंजी खत्म हो गई, बल्कि समाज में उनकी छवि पर भी सवाल उठते रहे. खुद राजवीर का आत्मविश्वास भी टूट चुका था.

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17 वर्षों तक झूठे मुकदमे की मार झेलनी पड़ी
आखिरकार, 24 जुलाई 2025 को विशेष न्यायाधीश स्वप्ना दीप सिंघल ने फैसला सुनाया और राजवीर को बरी कर दिया. अदालत ने स्पष्ट कहा कि पुलिस और प्रशासन की भारी लापरवाही के कारण एक निर्दोष व्यक्ति को 22 दिन की जेल और 17 वर्षों तक झूठे मुकदमे की मार झेलनी पड़ी.

सिस्टम से जंग लड़ते-लड़ते हारा शख्स
हालांकि अब राजवीर को कानूनी राहत मिल चुकी है, लेकिन जो समय, सम्मान और खुशियां उन्होंने गंवाईं, वो वापस नहीं आ सकतीं. उनके वकील का कहना है, 'न्याय मिला जरूर है, लेकिन इतनी देर से क्यों? किसी निर्दोष को इतने साल सिस्टम से लड़ना नहीं चाहिए.' अब राजवीर अपने मैनपुरी के घर में रहते हैं. उम्र से नहीं, सालों की लड़ाई के बोझ से झुके हुए.

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