100 साल पहले कैसा था हवाई सफर? प्लेन के अंदर सीटें कैसी थीं और क्या AC की सुविधा होती थी?

सोशल मीडिया पर 1920 और 1930 के दशक की फ्लाइट्स की दुर्लभ तस्वीरें वायरल हो रही हैं, जिन्हें देखकर लोग हैरान रह गए. उस दौर में प्लेन की सीटें कैसी होती थीं, यात्रियों को कौन-कौन सी सुविधाएं मिलती थीं और सबसे अहम सवाल-क्या सफर आरामदायक होता था? आइए जानते हैं उस दौर की हवाई यात्रा की पूरी कहानी.

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100 साल पहले कैसा होता था फ्लाइट्स के अंदर का नजारा (Photo:Insta/History.season) 100 साल पहले कैसा होता था फ्लाइट्स के अंदर का नजारा (Photo:Insta/History.season)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 26 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 12:34 PM IST

हवाई यात्रा आज आराम और लक्जरी का प्रतीक मानी जाती है. एयर-कंडीशन केबिन, आरामदायक सीटें, इन-फ्लाइट मनोरंजन और नींद का मौका—आधुनिक फ्लाइट्स यात्रियों को एक रिलैक्सिंग अनुभव देती हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि करीब एक सदी पहले हवाई सफर करना कितना असुविधाजनक और थकाऊ था? हाल ही में @History.season एक इंस्टाग्राम अकाउंट ने 1920 और 30 के दशक की फ्लाइट्स की दुर्लभ तस्वीरें शेयर कीं, जिन्हें देखकर लोग हैरान रह गए. आइए, उस दौर की हवाई यात्रा की कहानी जानते हैं.

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कैसी थी पहली पैसेंजर फ्लाइट और उसके चैलेंज

1914 में पहली शेड्यूल पैसेंजर फ्लाइट ने उड़ान भरी, जिसने हवाई यात्रा का इतिहास रच दिया. इसके बाद कई एयरलाइन कंपनियां अस्तित्व में आईं, लेकिन हवाई सफर सिर्फ अमीरों की पहुंच में था. उस समय न्यूयॉर्क से लॉस एंजेलिस का राउंड-ट्रिप टिकट 260 डॉलर का था, जो आज के हिसाब से हजारों डॉलर के बराबर है. इसे इस तरह समझें कि यह उस समय एक नई कार की कीमत का लगभग आधा था.

लेकिन इतना महंगा टिकट खरीदने के बावजूद यात्रियों को आराम की गारंटी नहीं थी. उस दौर के विमान प्रेशराइज्ड नहीं होते थे, जिसकी वजह से उन्हें कम ऊंचाई पर उड़ना पड़ता था. इसका मतलब था कि मौसम की मार, तूफान, हवा, और ठंड सीधे यात्रियों पर पड़ती थी.कई यात्री हवाई यात्रा के दौरान बीमार पड़ जाते थे, केबिन में तापमान नियंत्रित करने की कोई सुविधा नहीं थी, जिससे अक्सर यात्री ठंड से ठिठुरते रहते थे.

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 फ्लाइट अटेंडेंट्स का क्या होता था काम

1930 में पहली बार एक एयरलाइन ने स्टेवर्डेस को नियुक्त किया. ये स्टेवर्डेस ज्यादातर प्रशिक्षित नर्स होती थीं, जिनका काम यात्रियों की एयर-सिकनेस और घबराहट को संभालना था. लेकिन उस वक़्त की फ्लाइट्स की सबसे बड़ी चुनौती थी उनका शोर. विमानों का शोर इतना तेज होता था कि कई यात्रियों और फ्लाइट अटेंडेंट्स की सुनने की क्षमता तक प्रभावित हो गई. बातचीत के लिए अटेंडेंट्स को मेगाफोन का इस्तेमाल करना पड़ता था.

दरअसल, शुरुआती सालों में कई पैसेंजर विमान वर्ल्ड वॉर  के बचे हुए सैन्य विमानों को ही मॉडिफाई करके बनाए गए थे. इन विमानों में न तो आराम था और न ही सुरक्षा के आधुनिक मानक.

1930 के दशक में बदलाव की शुरुआत

1930 के अंत तक हवाई यात्रा में सुधार होने लगा. कुछ नए विमान बाजार में आए, जिनमें यात्रियों के लिए थोड़ा ज्यादा आराम था. यहीं से हवाई यात्रा में बदलाव शुरू हुआ, जो आज की आधुनिक और लक्जरी फ्लाइट्स का आधार बना.

'प्लेन का इंटीरियर तो दादी के लिविंग रूम जैसा'

इन पुरानी तस्वीरों को देखकर सोशल मीडिया, खासकर इंस्टाग्राम और एक्स पर यूजर्स ने मजेदार  कमेंट्स किए. एक यूजर ने लिखा कि ऐसा लगता है जैसे विमान कागज से बना हो. किसी ने विमान के इंटीरियर को दादी के लिविंग रूम जैसा बताया. एक यूजर ने उस दौर के यात्रियों की हिम्मत की तारीफ करते हुए लिखा कि हे भगवान, ये लोग कितने बहादुर थे जो ऐसे विमानों में उड़ान भरते थे.

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