भारतीय मूल के एक सीईओ ने सोशल मीडिया पर दावा किया है कि उन्हें जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं. दरअसल, उन्होंने हाल ही में अपनी कंपनी के वर्क कल्चर पर एक पोस्ट शेयर की थी, जिसमें उन्होंने बताया कि उनकी कंपनी में 84 घंटे के वर्कवीक है. यहां वर्क-लाइफ बैलेंस की कोई जगह नहीं है. दक्ष गुप्ता, एआई स्टार्टअप ग्रेप्टाइल के सीईओ हैं.
गुप्ता ने अपनी पोस्ट में लिखा कि उनकी कंपनी में काम सुबह 9 बजे शुरू होता है और रात 11 बजे तक चलता है. कंपनी का माहौल बेहद हाई-स्ट्रेस है, जहां कर्मचारी सिर्फ काम पर फोकस करते हैं. शनिवार को कोई छुट्टी नहीं होती और कभी-कभी रविवार को भी काम करना पड़ता है.
गुप्ता ने अपनी पोस्ट पर बताया कि हम इंटरव्यू के पहले चरण में ही उम्मीदवारों को यह साफ कर देते हैं कि हमारी कंपनी में वर्क-लाइफ बैलेंस की कोई गुंजाइश नहीं है. पहले यह कहना अजीब लगता था, लेकिन अब मुझे लगता है कि यह ट्रांसपरेंसी सही है.
'मुझे अब जान से मारने की धमकियां मिल रही है'
दक्ष गुप्ता की पोस्ट वायरल हो गई. इसे एक मिलियन से ज्यादा व्यूज मिला. साथ ही इस पर बहस भी छिड़ गई. कुछ लोग उनकी ट्रांसपरेंसी की तारीफ की, वहीं किसी ने इसे 'टॉक्सिक वर्क कल्चर' करार दिया. तमाम आलोचना के बाद दक्ष गुप्ता ने एक और पोस्ट की, जिसमें उन्होंने दावा किया अब उन्हें जान से मारने की धमकी मिल रही है. मेरे इन्बॉक्स में 20 फीसदी जान से मारने की धमकी आ रही है, 80 फीसदी जॉब एप्लिकेशन.
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वर्क-लाइफ बैलेंस पर छिड़ी बहस
हाल ही में इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने काम के घंटों को लेकर बयान दिया, जिसमें उन्होंने दिन में 14 घंटे और हफ्ते में 80 घंटे से ज्यादा काम करने की वकालत की. उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई. कई लोगों का कहना था कि भारत में बेरोजगारी अधिक होने के कारण युवाओं की मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा है. हर शख्स की जिंदगी में वर्क-लाइफ बैलेंस होना बेहद जरूरी है.
कुछ ने इसे मोटिवेशन के नाम पर शोषण का नया तरीका बताया. कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि सरकार को सख्त वर्किंग टाइम नियम लागू करना चाहिए. अगर कोई कंपनी 8 घंटे से ज्यादा काम करवाती है, तो उस पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए. वहीं, कुछ ने यूरोप और फ्रांस के वर्क कल्चर का उदाहरण दिया, जहां काम के साथ-साथ वर्क-लाइफ बैलेंस को भी प्राथमिकता दी जाती है. इंसानों से इंसानों की तरह काम करवाया जाता है.
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