दिवाली के मौके पर हर जगह ऑफिस में पार्टियां होती हैं, जहां आमतौर पर खर्च कंपनी उठाती है ताकि कर्मचारियों को त्योहार की खुशी महसूस हो. ऐसे में किसी कंपनी का कर्मचारियों से ही पार्टी के लिए पैसा मांगना गलत और काफी डिसपपॉइंटेड है. इससे कंपनी की इमेज पर भी सवाल उठता है कि जो त्योहार खुशी बांटने का समय होता है, वहां कर्मचारियों पर बोझ डालना कितना उचित है, और कैसे कोई कंपनी दिवाली सेलिब्रेशन के लिए आपसे पैसे मांग सकती है.
एक कंपनी ने अपने कर्मचारियों से दिवाली पार्टी के लिए पैसे मांगे, तो इस बात पर रेडिट पर बड़ी बहस शुरू हो गई है. एक कर्मचारी ने व्हाट्सएप ग्रुप का स्क्रीनशॉट शेयर किया, जिसमें मैनेजमेंट ने सभी से पार्टी के लिए कुछ पैसे देने को कहा था. यह देखकर कई लोग नाराज हो गए और भारतीय ऑफिस कल्चर पर चर्चा शुरू हो गई है.
टीम लीड्स को देने होंगे 2000 रुपये
एक रेडिट यूजर ने लिखा, "कल्पना कीजिए कि आप अपने कर्मचारियों से एक बोरिंग पार्टी देने के लिए पैसे मांग रहे हैं और वह जगह भी खराब है. व्हाट्सएप विंडो में एक पुराना मैसेज दिख रहा है जिसमें कर्मचारियों से अपने डेस्क पर वापस लौटने को कहा गया है. चैट में आप देख सकते हैं कि उसमें दिवाली के लिए पैसे देने पर चर्चा हो रही है. फॉरवर्ड मैसेज में लिखा है कि दिवाली पार्टी में बॉस और उनकी टीमों के लिए 100% उपस्थिति अनिवार्य है. इसके बाद मैनेजर को प्रत्येक टीम सदस्य से ₹ 1,200 इकट्ठा करने का निर्देश दिया गया है और टीम लीड्स के लिए यह राशि ₹ 2,000 तय की गई है. एक अन्य मैसेज में आप देख सकते हैं, जिसमें लिखा है- "सभी को इसके लिए 1200 रुपये प्रति व्यक्ति देने होंगे."
सोशल मीडिया पर चैट हो रहा वायरल
एक यूजर ने लिखा- क्या होगा यदि कुछ कर्मचारी पार्टी में शामिल नहीं होना चाहते हैं और अनुपस्थित रहेंगे या अपने होमटाउन में होंगे और शराब नहीं पीने वाले कर्मचारियों के बारे में क्या? एक व्यक्ति ने लिखा- "अगर आपकी कंपनी व्हाट्सएप के जरिए बातचीत कर रही है, तो वे पेशेवर और निजी जिंदगी के बीच की सीमाओं को धुंधला कर रहे हैं. एक दूसरे यूजर ने लिखा- मेरी पिछली कंपनी में, मेरे मैनेजर मेरे और मेरे सहकर्मियों के साथ फुटबॉल खेला करते थे और फिर मीटिंग के लिए चले जाते थे और वापस आकर हमें खेलते हुए देखते थे और फिर से हमारे साथ जुड़ जाते थे.
एक यूजर ने लिखा- अच्छी कंपनियां हमेशा फूड, ट्रेवल और वेन्यू खुद ही होस्ट करती हैं, लेकिन शराब कभी नहीं. अच्छी कंपनियों में शराब के लिए हमेशा BYOB (अपने साथ शराब ले जाना) नियम होता है और गैर-पेशेवर कंपनियां इसका उल्टा करती हैं. क्यों? क्योंकि वे शराब को रिश्वत की तरह लेते हैं. एक अन्य यूजर ने लिखा- इसमें शामिल होना अनिवार्य क्यों है? क्या यह एक विकल्प नहीं होना चाहिए? अगर कोई इसमें शामिल नहीं होता और कुछ भी भुगतान नहीं करता, तो क्या होगा? वहीं एक ने लिखा-घर पर शराब? 1200 रुपये वसूलने के बाद? अगर हो सके तो कंपनी को सबके सामने शर्मिंदा करें. हम उनसे पूरी तरह दूर रहेंगे और आपकी तरफ से ग्लास डोर पर रिव्यू पोस्ट करेंगे.
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