इंसानों को तो आपने पूजा-पाठ, भजन और आरती करते देखा होगा लेकिन जंगल के हिंसक जानवरों को भजन सुनते शायद ही कभी देखा हो. यदि नहीं देखा तो हम आपको दिखाते हैं मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ बॉर्डर के पास खड़ाखोह के जंगल में राजमांडा रामवन आश्रम, जहां पिछले कई सालों से जंगल में रह रहे बाबा रामदास जैसे ही पूजा-पाठ कर भजन की धुन बजाते हैं, जानवर जंगल की गुफाओं से निकलकर बड़ी ही श्रद्धा से भजन सुनते हैं बकायदा प्रसाद भी ग्रहण करते हैं.
मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के जैतपुर तहसील के अंतिम छोर में प्रदेश के बॉर्डर और छत्तीसगढ़ प्रदेश की सीमा में खड़ाखोह के जंगल में राजमांडा स्थान में नदी से घिरी पहाड़ी में एक साधु की कुटिया है. इस कुटिया में रामदास बाबा निवास करते हैं. इस कुटिया की खास बात यह है कि रामदास बाबा जैसे ही अपने वाद्य यंत्रों को बजाकर भजन शुरू करते हैं, वैसे ही धुन सुनकर जंगल से भालू का एक दल श्रद्धा भाव से वहां आ जाता है. जब तक बाबा का भजन चलता है वो वहां बने रहते हैं.
आजतक की टीम जब शहडोल से 110 किलोमीटर का रास्ता तय कर राजमांडा के जंगल पहुंची तब बाबा धूनी जला कर बैठे थे और पूजा की तैयारी चल रही थी. पूजा अर्चना करने के बाद बाबा ने शंख बजाया और जैसे ही डफली और तंबूड़ा बजाना शुरू किया देखते ही देखते जंगल से निकलकर दो भालू कुटिया तक आ गए.
खास बात यह कि ये हिंसक भालू जब तक भजन व पूजा पाठ चलता है तब तक किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते. यह इनका रोज का काम है. उनके इस श्रद्धा की गाथा सुनने लोग दूर-दूर से आए थे. साथ ही लोगों का यह आस्था का केंद्र बन गया है. वहीं, कुछ लोग इसे मनोरंजन के रूप में देखने आते हैं. भालुओं के भक्ति का गाथा की कहानी मध्यप्रदेश के साथ साथ छत्तीसगढ़ में भी विख्यात है.
शहडोल जिले के जैतपुर तहसील के ग्राम खोहरा बैरक के रहने वाले बाबा सीताराम सुख व शांति व भगवान की भक्ति में लीन होने के लिए वर्ष 2013 में इस बीहड़ जंगल में कुटिया का आश्रम बनाकर भक्ति भाव कर रहे हैं. बाबा बताते है कि अपने आश्रम की कुटिया में भगवान की भक्ति में वाद्य यंत्रों के माध्यम से भजन गायन में लीन थे. जैसे ही बाबा की आंख खुली तो देखा कि भालुओं का एक दल बाबा के आश्रम के बाहर शांत मन से भजन का आनंद ले रहा है.
हिम्मत जुटा बाबा ने भालुओं को प्रसाद ग्रहण कराया. तब से लेकर आज तक यह सिलसिला चला आ रहा. बाबा के वाद्य यंत्र व भजन की धुन सुनकर भालू दौड़े चले आते हैं.
एक खास बात यह भी है कि भालू कभी भी बाबा के आश्रम की कुटिया के अंदर प्रवेश नहीं करते. बाबा के आश्रम में पिछले 8 वर्षों से लगातार लकड़ियों की एक धूनी जल रही है. बाबा पूजा-पाठ के दौरान भालुओं को स्नेह और प्यार करते हैं.
बाबा ने इन भालुओं के दल के सदस्यों का नामकरण भी किया है जिनमें से नर भालू को लाली व मादा को लल्ली. साथ ही उनके बच्चों को चुन्नू, मुन्नू के नाम से पुकारते हैं. वहीं, बाबा ने बताया कि पूजा-पाठ की जगह के अलावा जंगल के क्षेत्रों में ये हिंसक जानवरों की तरह व्यवहार करते हैं. उनकी गुफा के नजदीक जाने में खतरा बना रहता है.