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आखिर कैसे टूटा बिहार का सत्तारघाट पुल? आपदा या लापरवाही

aajtak.in
  • 19 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 4:15 PM IST
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बिहार के गोपालगंज में स्थित सत्तारघाट पुल हादसे की चर्चा पूरे देश में रही. अभी भी किसी को समझ में नहीं आया कि पुल आखिरकार कैसे टूटा. इस हादसे ने पूरे बिहार में राजनीतिक भूचाल ला दिया. फिलहाल इस पूरे मामले में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं. 

बिहार सरकार की पुल निर्माण निगम की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि निर्माण की निगरानी का जिम्मा कंपनी वशिष्टा कंस्ट्रक्शन के हाथों में था. लेकिन आश्चर्य इस बात पर है कि बिहार सरकार इन पर जिम्मेदारी तय करने की बजाए इसे प्राकृतिक आपदा बता रही है. 
(Photo: PTI)

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दरअसल, दियारा में रहने वाले गांव के लोगों ने पहले ही इस पुल के टूटने की आशंका व्यक्त करते हुए पुल निर्माण करने वाली बिहार राज्य पुल निगम लिमिटेड और प्रशासन को मार्च में ही ज्ञापन दिया था. इसमें पुल की लंबाई बढ़ाने की बात कही गई थी. 

शीतलपुर गांव के ओमप्रकाश राय ने कहा कि 500 लोगों के हस्ताक्षर के साथ ये ज्ञापन दिया था लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया. सत्तारघाट के मुख्य पुल के अलावा सिर्फ दो अप्रोच पुल है. लगभग 2 किलोमीटर के स्ट्रेच में 18.5 मीटर के ये दो पुल किसी प्रकार भी गंडक के दबाव को नहीं सह सकते. गांव वालों की मांग थी कि ये पुल 100 मीटर का होना चाहिए. 
(Photo: PTI)

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प्रशासन को दी सूचना: 

पानी का दबाव गंडक के गोपालगंज तटबंध पर भी पड़ने लगा. ग्रामीणों ने इसकी सूचना प्रशासन को दी लेकिन इस पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया. हालांकि बांध से पहले पानी के दबाव से पुल का अप्रोच टूट गया जिससे तटबंध टूटने से बच गया, नहीं तो नुकसान और ज्यादा हो सकता था. फजलुल्लाह गांव के मुखिया प्रतिनिधि संजय यादव ने 14 जुलाई से ही अप्रोच काटने का वीडियो बनाकर वायरल कर दिया था लेकिन इसके बाद भी किसी ने ध्यान नहीं दिया. 
(Photo: PTI)

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इस पुल का उद्घाटन 16 जून को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए किया था. साल 2012 में पुल का निर्माण कार्य शुरू हुआ था. 8 साल के लंबे अंतराल के बाद बनकर तैयार भी हुआ लेकिन 29 दिन भी नहीं चल पाया. 

न्यायिक जांच की मांग: 

पूर्व सांसद पप्पू यादव का कहना है कि यह 264 करोड़ लूट का मामला है, जिसे विभाग से जांच कराकर रफादफा करने की सरकार की मंशा को कभी सफल नहीं होने देंगे. इस पुल में हुए भ्रष्टाचार की न्यायिक जांच होनी चाहिए.

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वशिष्टा कंस्ट्रक्शन हैदराबाद की कंपनी है. सत्तारघाट पुल से पहले वो गोपालगंज को पश्चिम चंपारण को जोड़ने वाले गंडक नदी पर बने पुल के साथ-साथ बागमती नदी में सीतामढ़ी के डेंग में पुल बना चुकी है. इसके अलावे बिहार सरकार और रेलवे के प्रोजेक्ट पर काम कर रही है. निर्माण एजेंसी ये कहकर अपना पल्ला झाड़ना चाहती है कि अप्रत्याशित पानी आने की वजह ये घटना घटी. 

इसी जगह पर 2017 में जबरदस्त पानी के दबाव की वजह से गंडक का तटबंध कई जगहों से टूट गया था. इसलिए ये कहना कि इतना पानी का अनुमान नहीं था, कही से तर्कसंगत नहीं है. पुल निर्माण निगम और वशिष्टा कंस्ट्रक्शन कंपनी ने उन ग्रामीणों पर ही पुलिस केस दर्ज किया जो कंपनी को इस खतरे के लिए आगाह कर रहे थे.

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