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क्या राहुल गांधी का गोत्र दत्तात्रेय वाकई कोई गोत्र होता है?

प्रज्ञा बाजपेयी
  • 27 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 5:51 PM IST
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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पुष्कर में खुद को कश्मीर कौल ब्राह्मण बताते हुए अपना गोत्र दत्तात्रेय बताया. इसके बाद से राहुल गांधी के गोत्र को लेकर एक नया विवाद शुरू हो गया है. विपक्षी पार्टियां राहुल के खुद की पहचान कौल ब्राह्मण और दत्तात्रेय बताने को उनका 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले का एक राजनीतिक स्टंट बता रही हैं.

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पुष्कर में ब्रह्मा मंदिर के पुजारी ने भी राहुल गांधी के इस दावे की पुष्टि की है. उन्होंने कहा कि गांधी परिवार बहुत पहले से पुष्कर आता रहा है. 1983 में राजीव गांधी पुष्कर आए और 1986 में प्रधानमंत्री बनने के बाद दोबारा मंदिर में दर्शन करने आए.

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पुजारी ने बताया कि राहुल का गोत्र दत्तात्रेय है और वह एक कश्मीरी ब्राह्मण हैं. मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, संजय गांधी, मेनका गांधी और सोनिया गांधी भी पुष्कर आकर पूजा कर चुके हैं और इसका रिकॉर्ड मौजूद है. पुजारी दीनानाथ कौल ने यह भी दावा किया कि उनके पास ऐसे पुराने दस्तावेज मौजूद हैं जिनमें उनके वंशवृक्ष का रिकॉर्ड मिलता है.

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कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने इन दस्तावेजों को ट्वीट करते हुए बीजेपी पर पलटवार किया और कहा कि भाजपा को अब कितने प्रमाण चाहिए?

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हालांकि सोशल मीडिया पर कई लोगों ने सवाल खड़े किए कि क्या दत्तात्रेय वाकई कोई गोत्र होता है? क्या राहुल गांधी का दावा सही है?

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गोत्र एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है- वंशावली. हिंदू धर्म में हर वंश के सदस्य का जन्म के आधार पर एक गोत्र होता है. यह गोत्र पिता के गोत्र पर मिलता है क्योंकि हिंदू धर्म में पिता के नाम से ही वंश चलता है. हिंदुओं की वंशावली सप्तऋषि परंपरा से जुड़ी हुई है. हर शख्स को अपना गोत्र सप्तऋषियों में से एक ऋषि से मिलता है.

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समाज में विकास के साथ-साथ गोत्रों की संख्या भी बढ़ती गई. हालांकि ब्राह्मणों के मूल रूप से 7 गोत्र बताए जाते हैं- अंगिरा, गौतम, भारद्वाज, विश्वामित्र, वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, अगस्त्य. ये सात ऋषि आगे चल कर गोत्रकर्ता या वंश चलाने वाले हुए. इन गोत्रों के अलावा 49 अन्य गोत्र भी हैं जिन्हें प्रवर कहा जाता है लेकिन दत्तात्रेय का इनमें भी जिक्र नहीं है.

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कौन हैं कौल ब्राह्मण?

कौल शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द कुल से हुई है. कश्मीरी पंडित इसे सरनेम के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. कौल का संबंध शैव संप्रदाय से माना जाता है.

नेहरू कश्मीरी पंडित थे और इस परिवार का मूल टाइटल कौल था. जवाहरलाल नेहरू के पूर्वज 'राज कौल' 18वीं सदी में दिल्ली के मुगल दरबार में आ गए थे. शहर में कौलों की अच्छी-खासी संख्या थी इसीलिए नेहरू के पूर्वज भी यहीं आ गए थे. ऐसा माना जाता है कि इस परिवार का नाम कौल-नेहरू एक साथ चलने लगा क्योंकि दिल्ली में इनका घर नहर के किनारे था.

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19वीं सदी में कौल-नेहरू परिवार आगरा चला गया. आगे चलकर कौल विलुप्त हो गया और नेहरू मुख्य रूप से रह गया. इसकी शुरुआत मोतीलाल नेहरू ने की थी. उन्होंने बार काउंसिल इलाहाबाद में अपना नाम केवल मोतीलाल नेहरू लिखवाया था. जवाहरलाल नेहरू की जीवनी में जॉन लैने ने लिखा है कि नेहरू का परिवार कश्मीरी पंडित था और इनके पूर्वज राज कौल जो कि कश्मीर में संस्कृत और फारसी के विद्वान थे, वो दिल्ली आ गए थे.

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जवाहर लाल नेहरू की इकलौती बेटी और भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पारसी फिरोज गांधी से शादी की. फिरोज और इंदिरा की शादी से नेहरू खुश नहीं थे. दोनों ने महात्मा गांधी के हस्तक्षेप के बाद शादी इलाहाबाद में की थी जिसके बाद फिरोज को महात्मा गांधी ने अपना सरनेम भी दिया.

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कौन हैं भगवान दत्तात्रेय?
भगवान दत्तात्रेय या भगवान दत्त एक हिंदू देवता हैं जो त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतिनिधित्व करते हैं. दत्तात्रेय दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है- दत्त यानी देना और अत्रेय सप्तऋषि में से एक हैं और भगवान दत्तात्रेय के जैविक पिता भी हैं.

हिंदू धर्म की नाथ परंपरा में भगवान दत्त को भगवान शिव का अवतार माना जाता है और वे  नाथ सेक्ट के आदिनाथ संप्रदाय के आदि गुरु कहे जाते है. भगवान दत्तात्रेय हिंदू परंपरा में 13 अखाड़ों के सबसे पुराने आचार्य के इष्ट देव हैं जोकि जूना अखाड़ा है जिससे हिंदू धर्म में उनकी महत्ता और भी बढ़ जाती है.

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भगवान दत्तात्रेय सप्तऋषियों के बेटों में से एक थे इसलिए उन्हें अपना गोत्र यहीं से मिला होगा यानी उनका गोत्र अत्रि रहा होगा. हालांकि, हिंदुओं में दत्तात्रेय नाम से कोई गोत्र या प्रवर नहीं है.

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हालांकि कुछ स्कॉलर्स दत्तात्रेय को गोत्र बताते हैं. एक नजरिए के मुताबिक, कश्मीरी ब्राह्मण 199 गोत्रों में बंटे हुए हैं. कौल इनमें से सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं. हालांकि सामाजिक स्थिति गोत्र से ज्यादा व्यवसाय से तय होती है. जिन लोगों की दो-तीन पीढ़ियां श्रेष्ठ कार्यों में लगी हुई हैं, उन्हें ज्यादा श्रेष्ठ माना जाता है.

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कश्मीरी विद्वानों के मुताबिक, शुरुआत में केवल 6 गोत्र थे- दत्तात्रेय, भारद्वाज, पालदेव, उपमन्यवा, मौदगल्य और धौमयायना. बाद में अंतर्जातीय विवाह और नस्ल मिश्रित होने से ब्राह्मणों के गोत्र बढ़कर 199 पहुंच गए. कश्मीरी ब्राह्मण अपने धार्मिक क्रियाकलाप और परंपराएं लौगक्षी ऋषि और नीलमतपुराण के वेदों के अनुसार करते हैं. ये मांस और मछली भी खाते हैं.

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