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UNICEF: हर तीन में से एक बच्चे के खून में ये खतरनाक तत्व ज्यादा

aajtak.in
  • 30 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 11:52 AM IST
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दुनिया के हर तीन बच्चों में से एक बच्चे के खून में एक खतरनाक तत्व बहुत ज्यादा पाया गया है. यह खुलासा किया है बच्चों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूनिसेफ (UNICEF) ने. यूनिसेफ की स्टडी के मुताबिक खून में लेड की मात्रा काफी ज्यादा है. इसकी वजह से उनकी मानसिक और शारीरिक सेहत बिगड़ रही है. (फोटोः गेटी)

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यूनिसेफ की स्टडी के मुताबिक दुनिया भर में करीब 80 करोड़ बच्चों के शरीर में लेड की मात्रा 5 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर से या उससे ज्यादा है. इस स्टडी में यूनिसेफ की मदद की पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्था प्योर अर्थ ने. (फोटोः गेटी)

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खून के अंदर इतनी ज्यादा मात्रा में लेड की मौजूदगी से बच्चों का मानसिक विकास रुक जाता है. उनका नर्वस सिस्टम कमजोर हो जाता है. दिल और फेफड़ों समेत कई अंग सही से काम नहीं करते. इसकी वजह से हर साल लाखों बच्चे बुरी तरह से बीमार हो जाते हैं. 

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WHO और अमेरिका की सेंटर फॉर डिजीस कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने भी इस समस्या को बेहद गंभीर बताया है. इन सभी संस्थाओं ने एकसुर में कहा है कि बच्चों के शरीर के अंदर इतनी ज्यादा मात्रा में लेड का होना नुकसानदेह है. हमें इसे रोकने के लिए प्रयास करना होगा. साथ ही प्रदूषण का स्तर कम करना होगा. (फोटोः गेटी)


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सीसा बच्चों के शरीर में सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण, बैटरी रीसाइक्लिंग, ओपन-एयर स्मेलटर्स और लीड का प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों की वजह से प्रवेश करता है. (फोटोः रॉयटर्स)

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गुरुवार को जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरी दुनिया को तत्काल ऐसे उद्योगों से बच्चों को हटाना चाहिए जहां पर बहुत ज्यादा मात्रा में लेड निकलता है. जैसे इलेक्ट्रॉनिक कचरे, बैट्री, ऑटोमोबाइल पार्ट्स, पॉटरी आदि. (फोटोः गेटी)

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बच्चों के शरीर में सबसे ज्यादा लेड उन बैट्री के जहरीले धुओं या केमिकल से जाता है जो लेड-एसिड के मिश्रण से बनाई जाती है. बैट्री की वजह से 85 फीसदी बच्चे लेड की अधिकता की वजह से बीमार होते हैं. 

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आपको बता दें इलेक्ट्रॉनिक वाहनों, संचार उपकरणों, पावर बैक-अप यंत्रों के लिए लेड-एसिड बैट्री का बहुतायत में उपयोग होता है. ऐसी जगहों पर गरीब बच्चे भी काम करते हैं. इन्हें सबसे ज्यादा खतरा रहता है. (फोटोः गेटी)


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अमेरिका और यूरोप में ऐसी बैट्री का 95 फीसदी हिस्सा रीसाइकिल होता है. लेकिन भारत, चीन, बांग्लादेश जैसे देशों में जहां पर सुरक्षित रीसाइकिल सुविधाओं की कमी है वहां बच्चे ऐसे खतरनाक धातुओं के संपर्क में ज्यादा आते हैं. (फोटोः गेटी)

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