भारत-नेपाल सीमा पर तनाव के बीच नेपाल सरकार ने सीमा पर धारचूला-टिंकर रोड के निर्माण का काम शुरू कर दिया है. इस रोड की लम्बाई 130 किलोमीटर है. नेपाल ने धारचूला-टिंकर रोड प्रोजेक्ट के तहत सड़क का निर्माण शुरू किया है. यह काम नेपाल की सेना को सौंपा गया है.
समाचार एजेंसी एएनआई ने नेपाली सेना के हवाले से बताया कि इस सड़क का तकरीबन 50 किलोमीटर हिस्सा उत्तराखंड से लगने वाली
भारत-नेपाल सीमा के समानांतर लगता है. पिछले 12 सालों से इस रोड प्रोजेक्ट
का काम चल रहा था. लेकिन अब तक सिर्फ 43 किलीमोटर लंबी सड़क का निर्माण
कार्य हो पाया था.
नेपाल की सेना ने सड़क के निर्माण के लिए
घटियाबघर में बेस कैंप तैयार किया है. इस सड़क के निर्माण के बाद नेपाल की
दुर्गम इलाके में पहुंच आसान हो जाएगी. अभी धारचुला जिले के टिंकर और
छांगरू के लोगों को पहाड़ के दूसरी ओर जाने के लिए भारत से होकर जाना पड़ता
है. इस सड़क के निर्माण से नेपाली सेना को गश्त और सीमा पर शीघ्र पहुंचने
में मदद भी मिलेगी.
इस सड़क का निर्माण नेपाल ऐसे समय में करा रहा है जब पिछले कुछ समय से भारत-नेपाल के बीच तनातनी का माहौल है. पिछले दिनों भारत की तरफ से
लिपुलेख में सड़क बनाने के उद्घाटन के बाद नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप
ग्यावली ने कहा था कि सरकार को पिछले 12 सालों से ये बात पता है कि भारत
विवादित क्षेत्र में सड़क बना रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि नेपाल चीन के
साथ भी इस मुद्दे पर वार्ता करेगा.
यह सब तब शुरू हुआ था जब 6 महीने
पहले जब भारत ने जम्मू-कश्मीर के दो राज्यों में विभाजन के बाद नया नक्शा
जारी किया था तो इसमें कालापानी को शामिल करने को लेकर नेपाल ने विरोध दर्ज
कराया था. उस वक्त से ही नेपाल में देश का नया नक्शा जारी करने की मांग उठ
रही थी.
नेपाल कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा पर सुगौली संधि के आधार पर अपना दावा पेश करता है. नेपाल और ब्रिटिश भारत के बीच 1816 में सुगौली की संधि हुई थी जिसके तहत दोनों के बीच महाकाली नदी को सीमारेखा माना गया था. विश्लेषकों का कहना है कि भारत-नेपाल सीमा विवाद महाकाली नदी की उत्पत्ति को लेकर ही है.
8 मई को भारत ने जब लिपुलेख में कैलाश मानसरोवर रोड लिंक का
उद्घाटन किया तो नेपाल ने ऐतराज जताया था. नेपाल उत्तराखंड के लिपुलेख
कालापानी, और लिम्पियाधुरा पर अपना दावा पेश करता है. इसके बाद उसने एक नया
नक्शा तैयार किया है जिसमें इन तीनों क्षेत्रों को शामिल किया गया है.
नेपाल
के द्वारा जारी किए गए नए नक्शे के बाद नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा
ओली ने कहा, 'अब हम इन इलाकों को कूटनीति के जरिए पाने की कोशिश करेंगे, अब
यह मुद्दा और शांत नहीं होगा, अगर हमारे इस कदम से कोई नाराज होता है तो
हो, हमें इसकी चिंता नहीं है. हम अपनी जमीन पर किसी भी कीमत पर अपना दावा
पेश करेंगे.'
ओली ने भारतीय सेना प्रमुख मनोज नरवणे के उस बयान पर भी
प्रतिक्रिया दी जिसमें नरवणे ने कहा था कि लिपुलेख को लेकर नेपाल किसी और के
इशारे पर विरोध कर रहा है. ओली ने कहा, हम जो कुछ भी करते हैं, अपने मन से
करते हैं. हालांकि ओली ने यह भी कहा कि वह भारत के साथ मधुर संबंध चाहते
हैं.
ओली की कम्युनिस्ट पार्टी की चीन से ज्यादा करीबी रही है. कुछ
रिपोर्ट्स में कहा जा रहा था कि इस महीने जब ओली की पार्टी के भीतर बगावत
हुई थी तो चीनी राजदूत होउ यंकी ने उनकी कुर्सी बचाने में मदद की. ओली ने
इस आरोप पर कहा, कुछ लोग कहते हैं कि एक विदेशी राजदूत ने मेरी सरकार गिरने
से बचा ली, ये नेपाल के लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार है और कोई मुझे बाहर
नहीं फेंक सकता है.