भारतीय बाजार में सालाना करोड़ों रुपये के हर्बल उत्पादों का कारोबार होता है. हर्बल और आयुर्वेद की आड़ लेकर कई तरह के उत्पाद भी बिक रहे हैं जिनके इस्तेमाल से लोग बीमारियों को न्यौता दे रहे हैं. वहीं, इस बीच भारतीय वैज्ञानिकों ने इसका ऐसा तोड़ निकाला है जिसके माध्यम से घातक रसायनों से बचा जा सकेगा.
भारतीय वैज्ञानिकों ने पौधों से रस निकालने और फिर उससे सुगंध को तैयार किया है. इसी सुगंध का इस्तेमाल अब आयुथवेदा में किया जा रहा है ताकि आम व्यक्ति तक न सिर्फ बेहतर गुणवत्ता बल्कि संक्रमण और रोग से बचाने वाले उत्पाद पहुंच सके. इसके लिए बकायदा फेस सीरम और सुगंध को लेकर नई तकनीक को भी विकसित किया गया है. इसका एक फायदा महिलाओं को संक्रमण से बचाना भी है.
जानकारी के मुताबिक, केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय के कन्नौज स्थित सुगंध एवं सुरस विकास केंद्र ने नई तकनीक को विकसित किया है. उन्होंने इस तकनीक को एमिल फार्मास्युटिकल्स को हस्तांतरित किया है. साइंटिफिक ऑफिसर ज्ञानेंद्र सिंह की निगरानी में प्राकृतिक फेस सीरम और सुगंध की नई तकनीक को विकसित किया है जिस पर आयुथवेदा नामक आयुर्वेदिक सौंदर्य उत्पादों की श्रृंखला लॉन्च की है.
विशेषज्ञों के मुताबिक, ज्यादातर सौंदर्य उत्पाद रसायुक्त होते हैं जिनके दुष्प्रभावों के बाद आयुर्वेदिक का प्रचलन काफी बढ़ा है लेकिन हर्बल के नाम पर बहुत कुछ बाजार में बेचा जाने लगा. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी घातक रसायनों से युक्त सौंदर्य उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने के लिए हाल ही में एक ड्राफ्ट भी तैयार किया है. इसे लेकर द इंडियन एसोसिएशन ऑफ डर्मेटोलॉजिस्ट (आईएडीवीएल) भी इसे लेकर कई सालों से देश भर में अभियान चला रहा है.
अध्ययन को लेकर एमिल के कार्यकारी निदेशक डॉ. संचित शर्मा ने बताया कि औषधीय गुणों के सहारे कई तरह के संक्रमण से बचाने के लिए कन्नौज की सुगंध का इस्तेमाल किया है. भृंगराज, शिकाकाई, तुलसी, तिल, काफी बीन्स, पुदीना, सत्व, प्याज, एलोवेरा समेत कुल 42 जड़ी-बूटियों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. इतना ही नहीं महिलाओं के आंतरिक अंगों की स्वच्छता और उन्हें संक्रमण से बचाना भी उद्देश्य है. त्वचारोग विशेषज्ञ भी इस तकनीक में शामिल हैं. वहीं, वैज्ञानिकों का कहना है कि सही औषधि और उससे निकलने वाले रस का इस्तेमाल करने के लिए अलग से बगीचा बनाया है. यहां के पौधों के पत्तों से सुगंध बनाई जा रही है. ताकि इसका कोई दुष्प्रभाव शरीर पर न हो सके.