धरती को ऊर्जा देने वाला हमारा सूरज आजकल कम गर्म हो रहा है. इसकी सतह पर दिखने वाले धब्बे खत्म होते जा रहे हैं. या यूं कहें कि बन नहीं रहे हैं. इसकी वजह से वैज्ञानिक परेशान हैं. क्योंकि उन्हें आशंका है कि कहीं यह सूरत की तरफ से आने वाले किसी बड़े सौर तूफान से पहले की शांत तो नहीं है. सूरज का तापमान कम होगा तो कई देश बर्फ में जम सकते हैं. कई जगहों पर भूकंप और सुनामी आ सकती है. बेवजह मौसम बदलने से फसलें खराब हो सकती हैं. (फोटोः NASA)
वैज्ञानिकों का कहना है कि सूरज पर सोलर मिनिमम की प्रक्रिया चल रही है. यानी सूरज आराम कर रहा है. कुछ एक्सपर्ट इसे सूरज का रिसेशन और लॉकडाउन भी कह रहे हैं. यानी सूरज की सतह पर सन स्पॉट का घटना ठीक नहीं माना जाता. (फोटोः NASA)
डेलीमेल वेबसाइट पर प्रकाशित खबर के अनुसार 17वीं और 18वीं सदी में इसी तरह सूरज सुस्त हो गया था. जिसकी वजह से पूरे यूरोप में छोटा सा हिमयुग का दौर आ गया था. थेम्स नदी जमकर बर्फ बन गई थी. फसलें खराब हो गई थीं. आसमान से बिजलियां गिरती थीं.
(फोटोः NASA)
हैरतअंगेज बात तो ये थी कि साल 1816 में जुलाई के महीने में जब आमतौर पर मौसम शुष्क और बारिश वाला रहता है, ऐसे में यूरोपीय देशों पर भयानक बर्फबारी हुई थी. हालांकि, रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ने कहा है कि सूरज हर 11 साल में ऐसा करता है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी कहा है कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. इससे घबराने की जरूरत नहीं है. किसी भी तरह का हिमयुग नहीं आएगा. (फोटोः NASA)
दूसरी तरफ, एस्ट्रोनॉमर डॉ. टोनी फिलिप्स का कहना है कि सोलर मिनिमम शुरू हुआ है. यह काफी गहरा है. सूरज की सतह पर स्पॉट नहीं बन रहे. सूरज का मैग्नेटिक फील्ड कमजोर हुआ है, जिस वजह से अतिरिक्त कॉस्मिक किरणों सोलर सिस्टम में आ रही हैं.(फोटोः NASA)
नासा के वैज्ञानिकों को डर है कि सोलर मिनिमम के कारण 1790 से 1830 के बीच उत्पन्न हुए डैल्टन मिनिमम की स्थिति वापस लौट सकती है. इस वजह से कड़ाके की ठंड, फसल के खराब होने की आशंका, सूखा और ज्वालामुखी फटने की घटनाएं बढ़ सकती हैं. (फोटोः NASA)
10 अप्रैल 1815 को इंडोनेशिया के माउंट टंबोरा में विस्फोट हुआ था. इससे 71 हजार लोग मारे गए थे. इसके बाद 1816 में को 'Eighteen Hundred and Froze to Death' का नाम दिया था, जब जुलाई के महीने में कई जगहों पर बर्फ पड़ी थी. (फोटोः NASA)
2020 में अब तक सूरज में किसी भी तरह का सनस्पॉट नहीं देखा गया है, जो इस वक्त का 76 प्रतिशत है. साल 2019 में यह 77 प्रतिशत था. मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के केपलर स्पेस टेलीस्कोप से मिले आकंड़ों का अध्ययन करके यह खुलासा किया है कि हमारे आकाशगंगा में मौजूद सूरज जैसे अन्य तारों की तुलना में अपने सूरज की धमक और चमक फीकी पड़ रही है. (फोटोः NASA)
वैज्ञानिक अभी तक यह नहीं जान पाए हैं कि कहीं ये किसी तूफान से पहले की शांति तो नहीं है. सूरज और उसके जैसे अन्य तारों का अध्ययन उनकी उम्र, चमक और रोटेशन के आधार पर की गई है. पिछले 9000 सालों में इसकी चमक में पांच गुना की कमी आई है. (फोटोः NASA)
सन 1610 के बाद से लगातार सूर्य पर बनने वाले सोलर स्पॉट कम हुए हैं. अभी पिछले साल ही करीब 264 दिनों तक सूरज में एक भी स्पॉट बनते नहीं देखा गया था. सोलर स्पॉट तब बनते हैं जब सूरज के केंद्र से गर्मी की तेज लहर ऊपर उठती है. इससे बड़ा विस्फोट होता है. अंतरिक्ष में सौर तूफान उठता है. (फोटोः NASA)
डॉ. टिमो रीनहोल्ड ने बताया कि अगर हम सूरज की उम्र से 9000 साल की तुलना करें तो ये बेहद छोटा समय है. हल्के-फुल्के अंदाज में कहा जाए तो हो सकता है कि सूरज थक गया हो और वह एक छोटी सी नींद ले रहा हो. (फोटोः NASA)