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सीमा ही नहीं, आर्थिक मोर्चे पर भी आक्रामक हुआ चीन, भारत ऐसे दे रहा जवाब

aajtak.in
  • 09 जून 2020,
  • अपडेटेड 10:32 AM IST
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लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर उपजे तनाव को लेकर भारत-चीन सैन्य प्रतिनिधियों में मुलाकात के बाद भी सीमा पर हालात सामान्य नहीं हुए हैं. ऐसे में चीन के साथ युद्ध जैसे टकराव का एक और मोर्चा है और इस मोर्चे पर लड़ाई गोले बारूद से नहीं बल्कि पैसों से होती है.

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दूसरे देशों पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए चीन बड़े पैमाने पर निवेश करता है और उसकी कोशिश होती है कि पूरे बाज़ार पर कब्ज़ा कर लिया जाए. इस मामले में चीन और भारत की लड़ाई काफी पुरानी है लेकिन कोरोना काल में भारत चीन के इस आर्थिक गेम के खिलाफ बहुत आक्रामक हो गया है.

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12 अप्रैल को चीन के पीपल्स बैंक ऑफ चाइना ने भारत की सबसे बड़ी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी HDFC लिमिटेड में 0.2 प्रतिशत का हिस्सा खरीदा था. इस चाइनीज़ बैंक के पास पहले से 0.8 प्रतिशत का हिस्सा था. इस तरह इसने 1 प्रतिशत का हिस्सा खरीद लिया और ये देखते ही सेबी के कान खड़े हो गए.

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17 अप्रैल को भारत ने चीन से होने वाले विदेशी निवेश पर अपने नियम और कड़े कर दिए ताकि चीन कोरोना वायरस के दौरान भारत में निवेश करके कोई बड़ा आर्थिक उलटफेर न कर सके.

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भारत में चीन से होने वाला  निवेश सीधे तौर पर 2 अरब 30 करोड़ डॉलर है. हालांकि चीन ये दावा करता है कि भारत में उसका सीधा निवेश 8 अरब डॉलर है. ये निवेश देखने में कम लगता है लेकिन ये आंकड़े पूरी तस्वीर पेश नहीं करते हैं.

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भारत में चीन की कंपनियों से होने वाला निवेश दूसरे देशों के ज़रिए होता है. इस पर भारत सरकार की नज़र है. पेटीएम, ओला, स्नैपडील, ओय़ो रूम्स और बायजूज़ जैसे बड़े स्टार्टअप्स में चीन का पैसा लगा हुआ है. स्मार्ट फोन बनाने वाली टॉप 5 कंपनियों में से तीन यानी Xiaomi, Vivo और Oppo शामिल हैं.

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IT इंडस्ट्री से जुड़ी संस्था Nasscom, के मुताबिक मौजूदा वित्तीय वर्ष में भारत के तमाम तकनीकी स्टार्ट-अप्स और संवेदनशील डेटा पर काम करने वाली कंपनियों को 4 अरब डॉलर से भी ज़्यादा फंडिंग मिली है. ऐसे में भारत विदेशी निवेश के नये नियम चीन को ध्यान में रखकर बना रहा है.

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