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इन पांच कारणों से तीसरी बार दिल्ली में जीते केजरीवाल, मुरझाया कमल

aajtak.in
  • 11 फरवरी 2020,
  • अपडेटेड 12:18 PM IST
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दिल्ली विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने बाजी मार ली है. अभी तक आए रुझानों के मुताबिक दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 63 पर AAP के उम्मीदवार जीतते हुए नजर आ रहे हैं, जबकि बीजेपी के खाते में 7 सीटें जाती दिख रही हैं. ज्यादातर सीटों पर वोटों की गिनती पूरी हो चुकी है जबकि कुछ सीटों पर अभी भी गिनती चल रही है. एब ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर AAP की वो कौन सी रणनीति रही जिसके जरिए केजरीवाल दिल्ली की जनता का दिल जीतने में कामयाब रहे और तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ कर लिया.

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दिल्ली के विकास पर प्रचार का फोकस

बीजेपी ने जहां दिल्ली में एक तरफ शाहीन बाग के आंदोलन को चुनावी मुद्दा बनाया वहीं केजरीवाल ने बीते पांच सालों में विकास के किए गए काम को ही अपनी प्रचार का आधार बनाया जिसे दिल्ली के लोगों ने स्वीकार किया.

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मुफ्त बिजली-पानी पर वोट मांगना

केजरीवाल की पार्टी ने इस चुनाव में मुफ्त बिजली और पानी पर लोगों से वोट मांगा. दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को केजरीवाल सरकार की इस योजना से आर्थिक तौर पर फायदा हुआ जिससे उनके पैसे बचे. दिल्ली सरकार का किया गया यह काम गरीब जनता की तरफ से वोट के रूप में रिटर्न गिफ्ट के तौर पर वापस मिला.

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पीएम मोदी पर सीधा हमला नहीं

बीते हर चुनाव की तरह आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल इस विधानसभा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी पर सीधा और व्यक्तिगत हमला करने से बचते रहे. केजरीवाल ने पीएम मोदी को लेकर एक भी विवादित टिप्पणी नहीं कि जिसका फायदा उन्हें चुनाव में मिला. बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे देश की तरह दिल्ली में भी काफी लोकप्रिय हैं और लोग उनके बारे में किसी से भी भला-बुरा सुनना आमतौर पर पसंद नहीं करते हैं.

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चुनाव को मोदी Vs केजरीवाल से दूर रखना

दिल्ली के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने पीएम मोदी की लोकप्रियता और राजनीतिक कद को देखते हुए उसे  मोदी Vs केजरीवाल नहीं बनने दिया. आम आदमी पार्टी बार-बार बीजेपी को दिल्ली में मुख्यमंत्री पद का चेहरा बताने के लिए चुनौती देती रही ताकि किसी भी तरह इसमें पीएम मोदी का नाम न आए.

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आप नेताओं का बदजुबानी से दूर रहना


इस विधानसभा चुनाव में जहां बीजेपी नेताओं ने केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए पाकिस्तान, आतंकवादी जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया. वहीं केजरीवाल ने अपनी पार्टी के किसी भी नेता को बदजुबानी करने नहीं दी ताकि बीजेपी उसे कोई मुद्दा न बना सके और वो दिल्ली के विकास पर ही फोकस कर विरोधियों को मात दे सकें.

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