ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन (ईयू) से निकलने की 4 साल की जद्दोजहद शुक्रवार को खत्म गई जब 31 जनवरी को रात 11 बजे (ग्रीनविच मीन टाइम) वह यूरोपीय संघ से अलग हो गया. इससे पहले ईयू संसद ने ब्रेग्जिट समझौते को अपनी मंजूरी दे दी थी. 4 साल तक चली खींचतान के बाद ईयू संसद ने 49 के मुकाबले 621 मतों के बहुमत से ब्रेग्जिट समझौते पर मुहर लगाई थी. (Photo: Reuters)
इस समझौते को ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन ने 2019 के अंत में ईयू के 27 नेताओं के साथ बातचीत के बाद अंतिम रूप दिया था. ब्रिटेन ने जून-2016 में हुए जनमत संग्रह में ब्रेग्जिट को मंजूरी दी थी. (Photo: Reuters)
ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से बाहर होने को ही ब्रेग्जिट कहा गया है. ईयू में 28 यूरोपीय देशों की आर्थिक और राजनीतिक भागीदारी है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए ईयू बना था. तब सोच यह थी कि जो देश साथ में व्यापार करेंगे, वो आपस में युद्ध से बचेंगे. ईयू की अपनी मुद्रा यूरो है जिनका 19 सदस्य देश इस्तेमाल करते हैं. ब्रिटेन 1973 में ईयू से जुड़ा था. (Photo: Reuters)
ब्रिटेन की यूरोपियन यूनियन में कभी चली ही नहीं बल्कि ब्रिटेन के लोगों की लाइफ पर ईयू का नियंत्रण ज्यादा है. वह व्यापार के लिए ब्रिटेन पर कई शर्तें लगाता है. ब्रिटेन के राजनीतिक दलों को लगता है कि अरबों पाउंड सालाना सदस्यता फीस देने के बाद भी ब्रिटेन को इससे बहुत फायदा नहीं होता, इसलिए ब्रेग्जिट की मांग उठी थी. (Photo: Reuters)
ब्रेग्जिट से ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को हर साल 53 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होगा. ताजा शोध में बताया गया है कि ईयू से बाहर होने पर ब्रिटेन में वस्तु और सेवाओं पर टैक्स लगेगा. इससे ये महंगी होंगी, लोगों के खर्च बढ़ेंगे. इस वजह से उनकी आय में कमी होगी. इससे लोगों को 45 हजार करोड़ का नुकसान होगा. ब्रिटेन में इसका प्रति व्यक्ति बोझ 68 हजार रुपये आएगा.
कुछ दिन पहले ही ब्लूमबर्ग ने रिपोर्ट में 2016 से 2020 तक 18.9 लाख करोड़
के नुकसान का अनुमान जताया है. फिलहाल यह 12 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचा है. (Photo: Reuters)
ब्रिटेन के अलग होने से यूरोपियन यूनियन की अर्थव्यवस्था पर भी असर होगा. फिलहाल वैश्विक अर्थव्यवस्था में ईयू की हिस्सेदारी 22 फीसदी है जो ब्रिटेन के हटने पर 18 फीसदी रह जाएगी. ईयू की आबादी में भी 13 फीसदी की गिरावट आएगी. वहीं, ईयू में जर्मनी की जीडीपी 20 फीसदी से बढ़कर 25 फीसदी, वहीं फ्रांस की 15 से बढ़कर 18 फीसदी हो जाएगी. अमेरिका भी फायदे में रहेगा. ब्रिटेन ईयू की अर्थव्यवस्था में 1.50 लाख करोड़ रुपए का योगदान देता है. ईयू अब ब्रिटेन को रियायतें भी नहीं देगा.
ब्रिटेन में निवेश करने वाला भारत तीसरा बड़ा देश है. ब्रिटेन में 800 से ज्यादा भारतीय कंपनियां हैं, जो 1.10 लाख लोगों को रोजगार देती हैं. ब्रिटिश मुद्रा पाउंड की कीमत घटने से इनके मुनाफे पर असर होगा. (Photo: Reuters)
यूरोप ने नए नियम बनाए तो भारतीय कंपनियों को नए करार करने होंगे. इससे खर्च बढ़ेगा और अलग-अलग देशों के नियम-कानूनों से जूझना होगा.
ब्रिटेन से मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) हो सकता है. इससे भारत का निर्यात बढ़ने का अनुमान है. ईयू से इस मामले में सहमति नहीं बनी थी. ब्रिटेन सेंट्रल मार्केट है. पुर्तगाल, ग्रीस जैसे कई देश वहां से सामान ले जाते हैं. ब्रिटेन के साथ एफटीए होने से भारत को विशाल बाजार मिलेगा.
हालांकि, ब्रिटेन 2020 के आखिर तक ईयू की आर्थिक व्यवस्था में बना रहेगा,
लेकिन उसका नीतिगत मामलों में कोई दखल नहीं होगा. वह ईयू का सदस्य भी नहीं
रहेगा.
(Photo: Reuters)