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नई खोजः चीन के 644 KM नीचे दबा है प्रशांत महासागर का प्राचीन अंश

aajtak.in
  • 20 नवंबर 2020,
  • अपडेटेड 7:10 PM IST
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आज चीन जिस जगह हैं वहां करोड़ों साल पहले प्रशांत महासागर हुआ करता था. भूगर्भ और समुद्र विज्ञान के वैज्ञानिकों को चीन की जमीन के 644 किलोमीटर नीचे प्रशांत महासागर का अंश मिला है. यह चीन के नीचे सैकड़ों किलोमीटर तक फैला हुआ है. प्रशांत महासागर का ये अंश उस जगह पर फैला है जिसे मेंटल ट्रांसिजशन जोन कहते हैं. 

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मेंटल ट्रांसजिशन जोन यानी धरती के केंद्र और उसके ऊपर की सतहों के बीच एक पतली सी परत. प्रशांत महासागर का जो अंश चीन के नीचे मिला है वह आज की धरती के ऊपरी सतह यानी लीथोस्फियर जैसी ही है. इसमें धरती के क्रस्ट और मेंटल का मिश्रण है यानी धूल-मिट्टी और मजबूत पत्थरों का मिश्रण. 

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लिथोस्फियर की परत कई टेक्टोनिक प्लेट्स से बनी हैं. जिनके खिसकने या टकराने से धरती के अलग-अलग हिस्सों पर भूकंप आता है. इसी प्रक्रिया को जियोलॉजिकल सबडक्शन कहते हैं. यानी टेक्टोनिक प्लेट्स में खिंचाव, टकराव या पास आना और दूर जाना. इन्ही जियोलॉजिकल सबडक्शन के चलते प्रशांत महासागर की नीचे की पैसिफिक टेक्टोनिक प्लेट धीरे-धीरे करके नीचे चली गई. 

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हाल ही में किए गए एक अध्ययन में चीन और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह घटना पहले से कहीं अधिक पृथ्वी की गहराई में होती आई है. इससे पहले वैज्ञानिकों ने करीब 200 KM की गहराई पर सीमाएं रेखांकित करने वाली परतें खोजी थीं. अब पृथ्वी की सतह के नीचे 410-660 किलोमीटर (254–410 मील) की गहराई पर सीमाओं की खोज करने वाली नई परतें रिकॉर्ड की हैं. इसे ही वैज्ञानिक प्रशांत महासागर का प्राचीन अंश बता रहे हैं. 

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चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज के जियोफिजिसिस्ट क्यूई-फू चेन ने बताया कि प्रशांत महासागर के प्राचीन परत के ऊपर होने वाली हाइड्रो-इलेक्ट्रोमैग्नेटेकि परिवर्तनों की वजह से किसी भी तरह की भूकंपीय दिक्कत नहीं आएगी. जबकि सबडक्शन जोन में चीन के नीचे प्रशांत महासागर के अंश की परत 25 डिग्री कोण पर झुकी हुई है. 

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इस झुकाव की वजह से टेक्टोनिक प्लेटों के बीच खिसकाव, टकराव होने की पूरी आशंका बनी रहती है. वहीं राइस यूनिवर्सिटी के भूंकप विज्ञानी फेंग्लिन नीयू कहते हैं कि जापान इस बारे में स्थिर है कि वहां पर प्रशांत प्लेट लगभग 100 किलोमीटर की गहराई में पहुंचती है. हालांकि, जापान के नीचे की टेक्टोनिक प्लेट्स रिंग ऑफ फायर में आती हैं. 

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रिंग ऑफ फायर प्रशांत महासागर का वह इलाका है जहां पर टेक्टोनिक प्लेटों के खिसकने की गतिविधियां सबसे ज्यादा होती हैं. साथ ही इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा ज्वालामुखीय गतिविधियां भी दिखाई देती है. टेक्टोनिक प्लेटों की गतिविधियों की वजह से जापान समेत इस इलाके के सभी देशों में भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट और सुनामी का खतरा हमेशा बना रहता है. 

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