हिंदू धर्म में पितरों की शांति के लिए श्राद्ध और पिंडदान की परंपरा सदियों से चली आ रही है. कहा जाता है कि अगर पितृ प्रसन्न न हों तो परिवार पर संकट बना रहता है. देश में ऐसे कई पवित्र स्थल हैं, जहां ये धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, लेकिन इन सबमें बिहार के गया का सबसे अधिक महत्व माना जाता है.पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम ने भी अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान यहीं किया था.
कहा जाता है कि जब भगवान राम वनवास पर थे, तब उन्हें अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु का समाचार मिला. उस समय राम अयोध्या लौट नहीं सकते थे, क्योंकि उन्हें अपने पिता का वचन पूरा करना था. वहीं शास्त्रों के मुताबिक, बड़े बेटे द्वारा दी गई मुखाग्नि से पिता को स्वर्ग मिलता है. लेकिन राम ऐसा नहीं कर पाए थे, जिससे दशरथ की आत्मा बेचैन थी. अपने पिता की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए, भगवान राम ने बिहार के गया में फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किया. तभी से इस जगह को पितरों के श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान के लिए सबसे पवित्र माना जाने लगा.
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कहा जाता है कि खुद भगवान विष्णु यहां पितृ देव के रूप में विराजमान हैं. यही कारण है कि गया का नाम आते ही लोगों की श्रद्धा और भी बढ़ जाती है. इनता ही नहीं पितृपक्ष में भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक देशभर से लाखों लोग यहां आते हैं. मान्यता है कि इन दिनों गया में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है और परिवार पर से पितृ दोष दूर होता है.
धर्मग्रंथों में साफ लिखा है कि मनुष्य का शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाता है, पर आत्मा अमर रहती है. महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह ने बताया है कि पितृ दोष से मुक्ति और पितरों की शांति के लिए श्राद्ध व पिंडदान करना जरूरी है. यही वजह है कि आज भी यह माना जाता है कि अगर पितरों की आत्मा तृप्त है, तो परिवार में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है.
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वैसे तो देश में 55 से ज्यादा ऐसी जगहें हैं जहां पिंडदान किया जाता है, लेकिन बिहार के गया में इसका खास महत्व है. यही वह जगह है जहां परंपरा, कथा और आस्था तीनों एक साथ मिलते हैं. यही वजह है कि आज भी कोई बेटा या बेटी जब अपने पितरों की आत्मा की शांति चाहता है, तो पहला ख्याल गया का ही आता है.
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