बिहार का वो मंदिर, जहां जीते जी मिलता है मोक्ष, लोग खुद करते हैं अपना पिंडदान

पितृपक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और पिंडदान करते हैं. बिहार में एक अनोखा मंदिर है, जहां जिंदा लोग खुद का पिंडदान करते हैं और इसे विशेष मान्यता मिली है.

Advertisement
पितृपक्ष में पिंडदान का अनोखा दृश्य (Photo: PTI) पितृपक्ष में पिंडदान का अनोखा दृश्य (Photo: PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 13 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:39 PM IST

हिंदू धर्म में पिंडदान और श्राद्ध की परंपरा बहुत पुरानी और अहम मानी जाती है. हर साल पितृपक्ष के 15 दिनों तक लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करते हैं. दरअसल यह समय पूर्वजों को याद करने और उनके प्रति आभार व्यक्त करने का होता है. इस दौरान देशभर में लाखों लोग अपने पितरों की आत्मा की मुक्ति के लिए इन धार्मिक कर्मों में भाग लेते हैं.

Advertisement

आमतौर पर पिंडदान किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद ही किया जाता है, लेकिन भारत में एक अनोखी परंपरा भी देखने को मिलती है. बिहार के गया स्थित जनार्दन मंदिर में लोग जीते-जी अपना श्राद्ध और पिंडदान करते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से पापों से मुक्ति मिलती है और आत्मा को शांति प्राप्त होती है. अब सवाल उठता है कि यह परंपरा क्यों खास है, लोग जीते-जी पिंडदान क्यों करते हैं और इस पवित्र स्थान तक कैसे पहुंचा जा सकता है? चलिए इसे जानते हैं.

क्यों खास है गया का जनार्दन मंदिर?

गया का जनार्दन मंदिर बाकी मंदिरों से बिल्कुल अलग माना जाता है. यह मंदिर भस्मकूट पर्वत पर स्थित है और पत्थरों से बना हुआ है. यहां भगवान विष्णु जनार्दन रूप में विराजमान हैं. आमतौर पर श्राद्ध और पिंडदान मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए किए जाते हैं, लेकिन इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां जीवित व्यक्ति स्वयं अपना श्राद्ध और पिंडदान करते हैं. पिंडदान की यह परंपरा हजारों साल पुरानी है, जो कि आज भी उतनी ही आस्था और श्रद्धा के साथ निभाई जाती है. इसी अनोखी परंपरा के कारण जनार्दन मंदिर श्रद्धालुओं के बीच विशेष रूप से प्रसिद्ध है. खासकर पितृपक्ष के दिनों में यहां भारी भीड़ उमड़ती है.

Advertisement

कौन करता है यहां खुद का पिंडदान?

जनार्दन मंदिर में हर कोई अपना पिंडदान नहीं करता है. यह परंपरा कुछ खास परिस्थितियों में ही निभाई जाती है. जिन लोगों की कोई संतान नहीं है, या फिर परिवार में पिंडदान करने वाला कोई नहीं है, ऐसे लोग मृत्यु से पहले स्वयं इस मंदिर में आकर अपना पिंडदान करते हैं. इसके अलावा, कुछ लोग जो परिवार होते हुए भी वैराग्य या संन्यास ले लेते हैं, वे भी इस मंदिर में आकर अपना पिंडदान करते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से वे जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. यह एक ऐसी रस्म है जो उनके जीवन का अंतिम आध्यात्मिक पड़ाव माना जाता है.

कैसे पहुंचे जनार्दन मंदिर?

जनार्दन मंदिर तक पहुंचना काफी आसान है, क्योंकि यह प्रमुख परिवहन मार्गों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है.

रेल मार्ग: इस मंदिर के सबसे पास का बड़ा रेलवे स्टेशन गया जंक्शन है, जो यहां से लगभग 10-12 किलोमीटर दूर है. स्टेशन से आप आसानी से ऑटो, टैक्सी या स्थानीय बस लेकर मंदिर पहुंच सकते हैं.

हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा गया अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बोधगया एयरपोर्ट है, जो मंदिर से लगभग 15-18 किलोमीटर दूर है. एयरपोर्ट से आप टैक्सी या कैब बुक करके सीधे मंदिर जा सकते हैं.

Advertisement

सड़क मार्ग: गया शहर बिहार के अन्य शहरों जैसे पटना (लगभग 100 किमी) और बोधगया (लगभग 15 किमी) से सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है. आप बस, टैक्सी या अपनी निजी गाड़ी से भी यहां आ सकते हैं.
 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement