ब्रेकअप, तलाक या अपनों के खोने का गम...यहां होता है हर दर्द का इलाज

रिट्रीट सेंटर में लोगों को ऐसा माहौल मिलता है, जहां वे भावनात्मक रूप से टूट जाने के बाद फिर से जीने की उम्मीद जगाते हैं. भारत में 'ग्रीफ रिट्रीट' का चलन तेजी से बढ़ रहा है.

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दर्द से उबरने का नया पता (Photo: Pexels- प्रतीकात्मक तस्वीर) दर्द से उबरने का नया पता (Photo: Pexels- प्रतीकात्मक तस्वीर)

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 28 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:47 PM IST

जीवन में किसी करीबी को खोना बेहद दर्दनाक अनुभव होता है. कुछ लोग इसे सहन नहीं कर पाते और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका असर गहरा पड़ता है. ऐसे में भारत में अब ‘ग्रीफ रिट्रीट’ यानी शोक रिट्रीट्स का चलन तेजी से बढ़ रहा है. ये रिट्रीट्स लोगों को मानसिक और भावनात्मक शांति पाने का नया रास्ता दे रहे हैं.

लोग अब लग्जरी रिजॉर्ट छोड़कर इन रिट्रीट्स की ओर रुख कर रहे हैं, जहां उन्हें उनके दर्द का सामना करने और धीरे-धीरे ठीक होने का अवसर मिलता है. ग्रीफ रिट्रीट की बढ़ती लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रिट्रीट में भारतीय मेहमानों की संख्या लगातार बढ़ रही है और कई केंद्रों में नवंबर महीने की बुकिंग पूरी तरह भरी हुई थी. यही वजह है कि ये केंद्र अब शोक पर्यटन का नया पता बन चुके हैं, खासकर केरल, मैसूर और गोवा में.

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क्यों ग्रीफ रिट्रीट बन गए विकल्प?

ग्रीफ रिट्रीट को आम रिजॉर्ट या थेरेपी क्लीनिक से अलग बनाने वाली बात है यहां का विशेष माहौल. इन केंद्रों पर आने वाले लोग अकेले नहीं होते, बल्कि वे उन दूसरे लोगों के साथ होते हैं, जो समान भावनात्मक परिस्थितियों से गुजर रहे होते हैं. यह समूह उन्हें अकेला महसूस नहीं होने देता और भावनाओं का सामना करने के लिए एक सुरक्षित जगह देता है. रिट्रीट सेंटर में लोगों को ऐसा माहौल मिलता है, जहां वे भावनात्मक रूप से टूट जाने के बाद फिर से सांस ले सकते हैं. ये सेंटर शोक, ब्रेकअप, तलाक, या पोस्ट-कैंसर और पोस्टपार्टम डिप्रेशन जैसी समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए विशेष प्रोग्राम चलाते हैं.

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ग्रीफ रिट्रीट कैसे करता है दर्द का उपचार?

इन रिट्रीट में दुःख को बाहर निकालने और भीतर की शांति पाने के लिए कई तरह की गतिविधियां कराई जाती हैं. एक सामान्य दिन में मेहमान हल्के और धीमी गति के रूटीन में शामिल होते हैं. इनमें थेरेपी सेशन, नदी किनारे टहलना, पक्षियों की आवाज सुनना, जर्नलिंग (डायरी लिखना), योग, कुकिंग और हल्का संगीत शामिल होता है.

उपचार के मुख्य तरीके ये हैं

डिजिटल डिटॉक्स: फोन और गैजेट्स से दूर रहकर ध्यान भटकना कम किया जाता है.

होलिस्टिक थेरेपी: मसाज, मेडिटेशन, आयुर्वेद उपचार, साउंड हीलिंग और काउंसलिंग (परामर्श) की जाती है.

ग्रुप एक्टिविटीज: गार्डनिंग, सिंगिंग, पेंटिंग, और पॉटरी जैसी गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया जाता है. साथ ही, मेहमानों को साथ बैठकर खाना खाने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है.

टॉक थेरेपी: टॉक थेरेपी और ग्रुप एक्टिविटीज के जरिए लोगों को धीरे-धीरे अपनी शोक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है.

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विदेशी नहीं, अब भारतीयों में बढ़ रही लोकप्रियता

पहले ग्रीफ रिट्रीट में ज्यादातर विदेशी मेहमान आते थे, लेकिन अब यह ट्रेंड भारत के लोगों में भी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. यह इस बात का संकेत है कि भारतीय समाज भी मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक सदमे से उबरने के लिए पारंपरिक तरीकों से हटकर नए उपायों को अपना रहा है.

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विशेषज्ञों का कहना है आमतौर पर कोई भी व्यक्ति 40 से 60 दिनों में सामान्य जिंदगी की ओर लौटने लगता है. हालांकि, अगर कोई व्यक्ति छह महीने से अधिक समय तक गहरे सदमे में रहता है, तो इसे 'कॉम्प्लिकेटेड ग्रीफ' माना जाता है, और ऐसे में किसी विशेषज्ञ की मदद लेना अनिवार्य हो जाता है.

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