राम की अयोध्या वापसी या कृष्ण की विजय, उत्तर से दक्षिण तक...कैसे मनाते हैं दिवाली

क्या आप जानते हैं कि भारत के उत्तर और दक्षिण हिस्सों में दिवाली मनाने का कारण और कहानी बिल्कुल अलग है? कहीं ये भगवान राम की अयोध्या वापसी का उत्सव है, तो कहीं भगवान कृष्ण की नरकासुर पर विजय का प्रतीक.

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राम कहें या कृष्ण बस कहानियां अलग है उत्सव एक है (Photo: Ai generated) राम कहें या कृष्ण बस कहानियां अलग है उत्सव एक है (Photo: Ai generated)

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 07 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 11:58 AM IST

अगर आप इस दिवाली कुछ नया और अनोखा देखना चाहते हैं, तो भारत के उत्तरी और दक्षिणी राज्यों की यात्रा का प्लान बनाइए. दिवाली देश का सबसे बड़ा और शानदार त्योहार है, लेकिन इसे मनाने का कारण, तरीका और कहानी देश के दो हिस्सों में पूरी तरह से अलग है. उत्तर भारत जहां इसे भगवान राम की अयोध्या वापसी के रूप में मनाता है, वहीं दक्षिण भारत में यह राक्षस नरकासुर पर भगवान कृष्ण की विजय के उत्सव के रूप में मनाया जाता है.

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इस तरह से देखा जाए तो दक्षिणी राज्यों में दिवाली मनाने की कथा उत्तर से बिलकुल अलग है. हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल दिवाली 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी, क्योंकि कार्तिक माह की अमावस्या तिथि इसी दिन दोपहर 3:44 से शुरू होगी. ऐसे में यह त्योहार आपको एक ही देश में दो अलग-अलग सांस्कृतिक अनुभवों को जीने का मौका देता है.

उत्तर भारत की भव्य दिवाली

भारत के उत्तरी भागों में दिवाली का उत्सव भव्यता, उल्लास और दीपों की जगमगाहट से भरा होता है. यहां दिवाली का मुख्य कारण भगवान राम का 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटना है. इस आनंद में लोग दीये जलाकर उनका स्वागत करते है. इस त्योहार की शुरुआत धनतेरस से होती है, जब लोग माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करते हैं, ताकि घर में सुख-समृद्धि बनी रहे.

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इस दौरान घरों को मिट्टी के दीयों, रंगोली और चमकती लाइटों से सजाया जाता है. यही वजह है कि धनतेरस के दिन सोना, चांदी या बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है. इतना ही नहीं कई जगहों पर तो रामायण के प्रसंगों पर आधारित नाटक और झांकियां भी आयोजित की जाती हैं. व्यापारियों के लिए दिवाली का विशेष महत्व है, क्योंकि इसी दिन से नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत मानी जाती है.

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दक्षिण भारत का अनोखा उत्सव

भारत के दक्षिणी राज्यों में दिवाली 'नरक चतुर्दशी' के रूप में मनाई जाती है, जिसे त्योहार की वास्तविक शुरुआत माना जाता है. यह दिन भगवान कृष्ण और उनकी पत्नी सत्यभामा द्वारा राक्षस नरकासुर के वध की कथा से जुड़ा है. हालांकि यह उत्सव उत्तर भारत की तुलना में कम धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन इसकी अपनी अनूठी परंपराएं हैं, जो इसे विशेष बनाती हैं.

इस दिन सुबह- सुबह तेल स्नान की परंपरा निभाई जाती है, घरों में सफाई की सुगंध और मिठाइयों की खुशबू घुल जाती है. इस दौरान बच्चे नए कपड़े पहनकर रिश्तेदारों से मिलने निकलते हैं, तो हर गली में त्योहार की रौनक झलकती है. यही नहीं दक्षिण के हर राज्य में इसकी अपनी कहानी है, तमिलनाडु में यह नरकासुर पर विजय का दिन है, तो कर्नाटक में 'बाली चतुर्दशी', के रूप में मनाया जाता है. जहां भगवान विष्णु की धर्म पर विजय की गूंज सुनाई देती है.

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इस दिवाली, उत्तर में अयोध्या की रोशनी देखने जाएं या दक्षिण में पारंपरिक तेल स्नान और अनोखी पौराणिक कथाओं का अनुभव करें, हर जगह दिवाली की अपनी अलग चमक है.

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