माउंट आबू से सरिस्का तक... अरावली की पहाड़ियों के वो 5 रत्न, जो आपको इतिहास की सैर कराएंगे

अरावली की पहाड़ियों में छिपी कुछ ऐसी जगहें हैं, जहां ठंडी हवा, इतिहास और प्रकृति एक साथ सांस लेते हैं. अरावली सिर्फ पहाड़ नहीं, बल्कि राजस्थान की पहचान है. आखिर कौन-सी हैं ये जादुई जगहें और क्या है उनकी खास बात

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प्रकृति और कला का संगम (Photo: Pixabay) प्रकृति और कला का संगम (Photo: Pixabay)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 22 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:50 AM IST

क्या आप जानते हैं कि जब आप राजस्थान की रेतीली हवाओं के बीच अचानक ठंडी सांस लेते हैं, तो वह जादू कहां से आता है? यह करिश्मा है अरावली की उन पहाड़ियों का, जो करीब 2.5 अरब साल से एक फौलादी दीवार बनकर खड़ी हैं. ये पहाड़ियां सिर्फ पत्थर के ढेर नहीं हैं, बल्कि भारत की एक ऐसी विरासत हैं जो थार रेगिस्तान की तपती गर्मी को रोककर उत्तर भारत को हरा-भरा बनाए रखती हैं.

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लेकिन आज इन्हीं पहाड़ियों के वजूद पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में खनन की अनुमति दे दी है, जिसने पर्यावरण प्रेमियों की नींद उड़ा दी है. लोग सोशल मीडिया पर चिंता जता रहे हैं कि कहीं विकास की अंधी दौड़ में हम अपनी इस प्राचीन ढाल को खो न दें. अरावली की अहमियत समझने के लिए आइए इसकी गोद में बसे उन 5 जादुई ठिकानों के बारे में जानते हैं, जो न सिर्फ घूमने की जगह हैं बल्कि हमारी गौरवशाली पहचान भी हैं.

रेगिस्तान का स्वर्ग माउंट आबू 

अरावली की सबसे ऊंची चोटियों में से एक पर बसा माउंट आबू राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन है. समुद्र तल से करीब 1722 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह जगह किसी चमत्कार जैसी लगती है. जहां पूरा राजस्थान उमस और गर्मी से तपता है, वहां माउंट आबू की हरी-भरी वादियां और ठंडी हवाएं सुकून देती हैं.

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यहां आपको ब्रिटिश जमाने के बंगले और आदिवासी समुदायों के पारंपरिक घर एक साथ देखने को मिलते हैं. माउंट आबू सिर्फ अपनी प्राकृतिक खूबसूरती ही नहीं, बल्कि दिलवाड़ा जैन मंदिरों की बेमिसाल वास्तुकला के लिए भी जाना जाता है. यह जगह प्रकृति और आस्था का एक ऐसा मेल है, जो दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है.

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झीलों और महलों का शहर उदयपुर 

अरावली की पहाड़ियों के बीच घिरा उदयपुर एक ऐसा शहर है, जिसे 'पूर्व का वेनिस' कहा जाता है. महाराणा उदय सिंह द्वितीय द्वारा बसाया गया यह शहर अपनी झीलों और पहाड़ों के अद्भुत तालमेल के लिए मशहूर है. पिछोला और फतेह सागर जैसी झीलों के किनारे खड़े ऊंचे महल जब पानी में अपनी परछाई देखते हैं, तो नजारा जादुई हो जाता है. उदयपुर का इतिहास मेवाड़ की वीरता से भरा है और यहां की हर गली में आपको अरावली का प्रभाव महसूस होगा. यह शहर सिखाता है कि कैसे पहाड़ों के बीच एक शानदार सभ्यता को संजोया जा सकता है.

अजेय दीवार कुंभलगढ़ किला 

अरावली की सबसे दुर्गम पहाड़ियों पर बना कुंभलगढ़ किला वीरता की जीती-जागती मिसाल है. यह मेवाड़ के महान शासक महाराणा प्रताप की जन्मभूमि है. इस किले की सबसे खास बात इसकी 36 किलोमीटर लंबी दीवार है, जो चीन की दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार मानी जाती है. राणा कुंभा द्वारा निर्मित यह किला अपनी बनावट के कारण कभी जीता नहीं जा सका. संकट के समय में यह किला हमेशा शासकों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह रहा है. यहां से अरावली की पहाड़ियों का जो विहंगम दृश्य दिखता है, वह आपको इतिहास के पन्नों में ले जाता है.

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प्रकृति का आंगन सरिस्का टाइगर रिजर्व

अरावली का विस्तार सिर्फ किलों और महलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह वन्यजीवों का सबसे बड़ा घर भी है. सरिस्का टाइगर रिजर्व इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. यहां के घने जंगलों में बाघ, तेंदुए और पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियां निवास करती हैं. यह जगह उन लोगों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं है जो प्रकृति और रोमांच को करीब से देखना चाहते हैं. अरावली की ये पहाड़ियां न केवल जानवरों को सुरक्षा देती हैं, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र को भी संतुलित रखती हैं.

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कला का अद्भुत नमूना रणकपुर जैन मंदिर 

अरावली की घाटियों के बीच छिपा रणकपुर जैन मंदिर संगमरमर पर उकेरी गई एक कविता जैसा है. अपनी जटिल नक्काशी और 1444 खंभों के लिए मशहूर यह मंदिर वास्तुकला का एक चमत्कार है. सबसे खास बात यह है कि हर खंभा दूसरे से अलग है, लेकिन अरावली के शांत वातावरण में ये सब एक सुर में खड़े नजर आते हैं. यह मंदिर हमें बताता है कि सदियों पहले भी हमारे पूर्वजों ने इन पहाड़ियों की गोद में कला और आध्यात्म को कितनी खूबसूरती से स्थापित किया था. अरावली को बचाना सिर्फ पर्यावरण की जरूरत नहीं, बल्कि इन सभी विरासतों को आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाना है.
 

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