अरावली की गोद में छिपा 'कुबेर का खजाना', जिसे मुगलों से लेकर जाटों तक कोई नहीं ढूंढ पाया

अरावली की पहाड़ियों पर खड़ा अलवर का बाला किला सिर्फ एक ऐतिहासिक इमारत नहीं, बल्कि सदियों से चला आ रहा एक अनसुलझा रहस्य है. शांत दिखने वाला यह किला अपने भीतर ऐसे राज समेटे हुए है, जिनका सच आज तक सामने नहीं आ सका.

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अरावली की चोटी पर खड़ा अलवर का फौलादी पहरेदार (Photo: incredibleindia.gov.in) अरावली की चोटी पर खड़ा अलवर का फौलादी पहरेदार (Photo: incredibleindia.gov.in)

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 23 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:45 PM IST

अरावली की जिन पहाड़ियों को हम आज सिर्फ पत्थर और धूल का ढेर समझने लगे हैं, दरअसल वे 2.5 अरब साल पुरानी भारत की फौलादी दीवार हैं. ये पहाड़ियां रेगिस्तान की तपती गर्मी को रोककर उत्तर भारत को हरा-भरा रखती हैं. लेकिन विकास और पर्यावरण के बीच छिड़ी इसी जंग के बीच, अरावली की एक ऊंची चोटी पर राजस्थान का एक ऐतिहासिक प्रहरी आज भी शान से खड़ा है, जिसे हम 'बाला किला' के नाम से जानते हैं.

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हैरानी की बात यह है कि जिस किले को देखने के लिए आज लोग दूर-दूर से खिंचे चले आते हैं, वहां कभी परिंदा भी पर नहीं मार सकता था. एक दौर था जब इस किले की दहलीज पार करने के लिए जिले के एसपी (SP) से खास इजाजत लेनी पड़ती थी. आज वक्त बदल गया है, अब बस मुख्य द्वार पर सुरक्षा गार्ड के पास रखे रजिस्टर में अपना नाम दर्ज कराइए और आप इस जादुई और रहस्यमयी दुनिया का हिस्सा बन सकते हैं. लेकिन याद रहे, अरावली की गोद में बसा यह किला जितना शांत दिखता है, इसके भीतर छिपे राज उतने ही गहरे हैं.

सदियों पुराना वो राज जिसे आज तक कोई सुलझा न सका

इस किले की सबसे चर्चित बात है यहां छिपा 'कुबेर का खजाना'. लोककथाओं की मानें तो इस किले की गहराइयों में धन के देवता कुबेर का बेशकीमती खजाना दबा हुआ है. कहते हैं कि मुगलों ने अपनी पूरी ताकत लगा दी, मराठों ने घेराबंदी की और जाटों ने भी हर कोना छाना, लेकिन वो खजाना आज तक किसी के हाथ नहीं लगा. कई लोग इसे महज एक कहानी मानते हैं, तो कई इसे एक ऐसा राज कहते हैं जिसे ढूंढने वाला कभी वापस नहीं आता. यही वजह है कि आज भी यह खजाना इतिहास प्रेमियों और एडवेंचर के शौकीनों के लिए एक बड़ी पहेली बना हुआ है.

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जानिए क्यों कहलाता है यह कुंवारा किला? 
 
1492 ईस्वी में हसन खान मेवाती ने जब इस किले की नींव रखी थी, तो शायद उन्हें भी अंदाजा नहीं था कि यह किला इतिहास में अपनी एक अलग ही पहचान बनाएगा. करीब 5 किलोमीटर लंबा और 1.5 किलोमीटर चौड़ा यह दुर्ग अपनी खास बनावट के लिए मशहूर है. इसकी दीवारों में 446 छोटे-छोटे छेद बनाए गए थे, जिनसे सैनिक 10 फुट लंबी बंदूकों से दुश्मनों पर अचूक निशाना लगाते थे.

इसके अलावा, दुश्मनों की हर हरकत पर नजर रखने के लिए किले में 66 बुर्ज (15 बड़े और 51 छोटे) बनाए गए थे. दिलचस्प बात यह है कि इस किले पर मुगल, मराठा और जाट शासकों का कब्जा रहा, लेकिन इतिहास में कभी यहां कोई बड़ा युद्ध नहीं हुआ. इसी वजह से इसे 'कुंवारा किला' भी कहा जाता है.

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बाबर की वो एक रात और जहांगीर का बसेरा

इतिहास के पन्ने गवाह हैं कि इस किले के वैभव ने बड़े-बड़े मुगल शासकों को भी अपनी ओर आकर्षित किया. कहा जाता है कि मुगल बादशाह बाबर ने अपनी फतह के बाद यहां सिर्फ एक रात बिताई थी. वहीं, शहजादे सलीम यानी जहांगीर ने तो यहां अपना ठिकाना ही बना लिया था. किले के भीतर जिस कमरे में जहांगीर रुकते थे, उसे आज 'सलीम महल' के नाम से जाना जाता है. जय पोल, सूरज पोल, लक्ष्मण पोल, चांद पोल, कृष्णा पोल और अंधेरी पोल जैसे 6 भव्य दरवाजों वाले इस किले के हर पत्थर में एक अलग ही शान नजर आता है.

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यही वजह है कि आज बाला किला सिर्फ एक ऐतिहासिक इमारत नहीं, बल्कि एक रहस्य है, जो लोग इतिहास और रोमांच पसंद करते हैं, उनके लिए यह किला किसी खजाने से कम नहीं है. 

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