दुनिया तेजी से बदल रही है और यह बदलाव किसी तकनीक या ट्रेंड से नहीं, बल्कि हमारी रहने की आदतों से नजर आ रहा है. दरअसल, संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट बताती है कि अब दुनिया के 80% से ज्यादा लोग शहरों में रह रहे हैं. यानी गांव और देहात जो कभी मानव सभ्यता की पहचान थे, वे अब पीछे छूटते दिख रहे हैं. इतना बड़ा बदलाव पहली बार देखने को मिला है और यही वजह है कि यह रिपोर्ट वैश्विक जनसंख्या के वितरण को नई परिभाषा दे रही है.
रिपोर्ट में क्या कहा गया है?
संयुक्त राज्य अमेरिका की “विश्व शहरीकरण संभावनाएं 2025” रिपोर्ट बताती है कि दुनिया की लगभग 4/5वीं आबादी आज शहरों और कस्बों में बस गई है. 2018 में यह आंकड़ा सिर्फ 55% था, यानी सात साल में शहरी आबादी में जबरदस्त उछाल आया है. रिपोर्ट के अनुसार, 45% लोग शहरों में रहते हैं और 36% लोग कस्बों में. यह रिपोर्ट पैट्रिक गेरलैंड के नेतृत्व में तैयार की गई, जिसमें कई शोधकर्ताओं ने मिलकर काम किया.
सबसे अहम बात ये है कि इस बार पहली बार सभी देशों के लिए एक जैसा पैमाना अपनाया गया है. इससे आंकड़ों में एकरूपता आई है और दुनिया की असली शहरी तस्वीर साफ नजर आती है. अलग-अलग देशों में शहरी क्षेत्र की अपनी-अपनी परिभाषाएं थीं, जहां डेनमार्क 200 लोगों की जगह को शहर मानता था, वहीं जापान में यह सीमा 50,000 थी. अब शोधकर्ताओं ने नए पैमाने तय किए हैं.
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शहर भागने की वजहें अलग-अलग
रिपोर्ट का अनुमान है कि 2050 तक दुनिया की 83% आबादी शहरों में रहने लगेगी. यानी आने वाले सालों में शहर और फैलेंगे, नए कस्बे बनेंगे और गांव और खाली होते जाएंगे. रिपोर्ट के मुताबिक, एशिया के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों में, खासकर भारत जैसे देशों में, लोग मुख्य रूप से अच्छी पढ़ाई, नौकरी की तलाश में, या फिर बेहतर सामाजिक जीवन जीने के लिए ही गांव छोड़कर शहरों में आ रहे हैं.
वहीं, यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसे विकसित इलाकों में शहरीकरण बढ़ने का मुख्य कारण यह है कि दूसरे देशों से लोग (अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी) यहां आकर बस रहे हैं. दूसरी ओर, उप-सहारा अफ्रीका में, शहरीकरण की बढ़त का मुख्य कारण यह है कि बच्चों के जन्म की दर, मरने वालों की संख्या से ज्यादा है, यानी वहां जनसंख्या वृद्धि हो रही है. जो यह दिखाता है कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में शहरीकरण अलग-अलग तरह से हो रहा है.
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शहरी जीवन का स्वास्थ्य पर असर
शहरीकरण का असर सिर्फ आबादी पर ही नहीं, बल्कि लोगों की सेहत पर भी पड़ रहा है. किंग्स कॉलेज लंदन की विशेषज्ञ एंड्रिया मेचेली के अनुसार, शहरों में वायु प्रदूषण और बढ़ती गर्मी लोगों को बीमार कर रही है. इससे हृदय रोग बढ़ते हैं और अल्जाइमर जैसी बीमारियों का खतरा भी ज्यादा होता है. इसके अलावा, कई शहरी क्षेत्रों में पार्क और हरियाली यानी हरित स्थान की कमी होती है.
इस कमी को चिंता (Anxiety) और अवसाद (Depression) जैसी मानसिक समस्याओं में वृद्धि से जुड़ा हुआ पाया गया है. यह रिपोर्ट साफ बताती है कि हमारी दुनिया तेजी से एक शहरी दुनिया बनती जा रही है, जिसके लिए हमें अभी से बेहतर योजनाएं बनानी होंगी ताकि हम इसके फायदों के साथ-साथ चुनौतियों का भी सामना कर सकें.
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