अयोध्या पर सभी की नज़रें हैं. 5 अगस्त को अयोध्या उन लम्हों की साक्षी बनेगी, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों राम मंदिर की आधारशिला रखी जाएगी और भूमि पूजन होगा. इस कार्यक्रम को लेकर अयोध्या से लेकर लखनऊ और दिल्ली तक सरगर्मियां तेज़ हैं. लेकिन अयोध्या में मस्जिद की तामीर को लेकर कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं दिख रही. वो मस्जिद जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक अयोध्या फैसले के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार को 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कुछ अहम घटनाक्रम हुए. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अयोध्या शहर की सीमा कई किलोमीटर तक बढ़ा दी. साथ ही फैजाबाद जिले का नाम बदलकर अयोध्या कर दिया. वहीं मस्जिद के लिए योगी सरकार ने राम मंदिर की जगह से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर रौनाही गांव में 5 एकड़ सरकारी जमीन देने का ऐलान किया.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के भीतर ही मस्जिद के लिए जमीन देने का आदेश दिया था. तो क्या इसीलिए योगी सरकार ने फैजाबाद जिले का नाम अयोध्या किया और अयोध्या नगर निगम की सीमा बढ़ाकर रौनाही गांव तक कर दी ताकि यह गांव भी नगर निगम के क्षेत्र के भीतर आ जाए. साथ ही यह गांव शहरी क्षेत्र भी बन जाए.
अयोध्या प्रशासन ने रौनाही गांव में मस्जिद की जमीन की पहचान कर सुन्नी बोर्ड को विकल्प दिया. सुन्नी बोर्ड ने वहां पर मस्जिद और उसके साथ शिक्षण संस्थान बनाने की बात पहले ही तय कर दी है. हालांकि सुन्नी बोर्ड ये भी पहले साफ कर चुका है कि एक ट्रस्ट बनाकर जमीन पर मस्जिद और अन्य निर्माण किया जाएगा.
शाम होते होते सुन्नी बोर्ड ने 15 सदस्यीय ट्रस्ट का ऐलान कर दिया
ट्रस्ट का नाम इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन होगा जिसमे 15 सदस्य होगे. 9 सदस्यों के नाम का ऐलान भी हो गया. सुन्नी वक्फ बोर्ड सीईओ के जरिए फाउंडर ट्रस्टी होगा. ज़ुफ़र फारूकी ट्रस्ट के अध्यक्ष होंगे. इनके अलावा अन्य 7 सदस्यों के नाम हैं- अदनान फार्रूख शाह, अतहर हुसैन, फैज आफताब, मुहम्मद जुनैद सिद्दीकी, शेख सौदुज्ज्मान, मोहम्मद राशिद और इमरान अहमद.
रौनाही गांव के लोग उत्साहित
अयोध्या से करीब 20 किलोमीटर दूर रौनाही गांव में इस जमीन के पास धन्नीपुर, शेखपुर जाफर की सरहद है. यहां शाहगदा शाह हजरत की दरगाह भी है. रौनाही थाने के ठीक पीछे स्थित ये 5 एकड़ जमीन लखनऊ-फैज़ाबाद हाइवे से 300 मीटर की दूरी पर मौजूद है.
आज तक/इंडिया टुडे की टीम ने वस्तुस्थिति जानने के लिए रौनाही का दौरा किया. वहां मस्जिद की जमीन अभी सिर्फ कागजात पर है. मस्जिद को लेकर अभी निर्माण जैसी कोई हलचल शुरू नहीं हुई है. हालांकि गांव वाले जरूर उत्साहित दिखे कि यहां मस्जिद की तामीर होने से आसपास के क्षेत्र का विकास होगा.
गांव के लोगों का कहना है कि वो जल्दी से जल्दी मस्जिद का निर्माण शुरू होते देखना चाहते हैं, इससे इलाके की तस्वीर पलटने से उनकी किस्मत भी बदलेगी. साथ ही दूर दूर से लोग यहां आएंगे.
सुन्नी वक्फ बोर्ड का रुख
बोर्ड के सूत्रों के मुताबिक सुन्नी वक्फ़ बोर्ड का कार्यकाल खत्म होने पर सरकार ने 6 महीने के लिए इसे बढ़ा दिया नया ट्रस्ट ही यह तय करेगा कि मस्जिद और इसके साथ होने वाले निर्माण कौन कौन से होंगे और इन पर काम कब शुरू होगा. साथ-साथ मस्जिद के लिए फंड की व्यवस्था कैसे होगी यह भी बोर्ड के तहत बना ये नया ट्रस्ट ही तय करेगा.
क्या कहती है उत्तर प्रदेश सरकार?
योगी सरकार ने साफ कर दिया है कि मस्जिद के लिए तय जमीन सरकार ने सुन्नी बोर्ड को सौंप दी है. योगी सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मोहसिन रजा ने आज तक/इंडिया टुडे से खास बातचीत में कहा कि जो सुप्रीम कोर्ट का आदेश था, हम लोगों ने उसका अक्षरक्ष: पालन किया है. बाकायदा सुन्नी बोर्ड की सहमति के मुताबिक उनको 5 एकड़ जमीन दे दी गई है. लिखा पढ़ी में सुन्नी बोर्ड ने उस जमीन को अपने कब्जे में ले लिया है. हां लेकिन अब यह सुन्नी बोर्ड को ही तय करना है कि वह वहां मस्जिद का निर्माण कब और कैसे शुरू करता है.
मोहसिन रजा ने यह भी कहा कि क्योंकि सुन्नी बोर्ड का कार्यकाल खत्म हो गया है, इसलिए नए कार्यकाल के गठन के पहले उनका 6 महीने का एक्सटेंशन दिया गया है, ताकि वह मस्जिद से जुड़े फैसले ले सके.
राज्य सरकार पर मनमानी का आरोप
अयोध्या मुकदमे में बाबरी मस्जिद के पक्षकार और बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी के कोऑर्डिनेटर जफरयाब जिलानी का आरोप है कि राज्य सरकार ने मनमानी की है. जिलानी सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर चुके हैं. उनका कहना है कि 1994 के फैसले में था कि यह मस्जिद उसी अधिग्रहित भूमि में बनी है. 2011 के फैसले में भी उसे बरकरार रखा गया था, लेकिन नए फैसले के बाद सरकार ने पूरे मामले को बदल दिया.
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जिलानी के मुताबिक अब क्योंकि एक बार फैसला हो चुका है, इसलिए बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी की तरफ से नई मस्जिद को लेकर कोई सदस्य सुप्रीम कोर्ट नहीं जाएगा. जिलानी ने ये भी कहा कि इस मस्जिद से हम जैसे मुसलमानों का कोई लेना देना नहीं है.
बहरहाल एक तरफ मंदिर निर्माण की तैयारियां जोरों पर है, वहीं दूसरी तरफ मस्जिद के लिए सुन्नी बोर्ड पर सभी लोगों की नजरें टिकी हैं. सुन्नी बोर्ड फिलहाल 6 महीने के एक्सटेंशन पर चल रहा है और जब तक नए सुन्नी बोर्ड का गठन नहीं होता तब तक मस्जिद को लेकर किसी तरह की हलचल शुरू होना मुश्किल है.
कुमार अभिषेक / नीलांशु शुक्ला