क्रिकेट के इतिहास में 10 नवंबर का दिन काफी खास है. 34 साल पहले यानी साल 1991 में इसी दिन साउथ अफ्रीका की इंटरनेशनल क्रिकेट में दोबारा वापसी हुई थी. साउथ अफ्रीका का कमबैक मुकाबला भारत के खिलाफ कोलकाता के ईडन गार्डन्स में रखा गया था. वो मुकाबला खिलाड़ियों, फैन्स और मैच ऑफिशियल्स को भावुक कर देने वाला था. हो भी क्यों ना... 21 साल तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से दूर रहने के बाद कोई टीम मैदान पर खेलने जो उतरी थी.
रंगभेद की नीति के कारण 1969-70 के बाद पूरी दुनिया ने साउथ अफ्रीका से दूरी बना ली थी और उसे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से बाहर कर दिया गया था. लेकिन जब वहां बदलाव आया और रंगभेद खत्म करने की शुरुआत हुई, तो चार महीने के भीतर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल (ICC) ने उसकी सदस्यता बहाल कर दी थी. आईसीसी से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद साउथ अफ्रीका के भारत दौरे को आनन-फानन में आयोजित किया गया. इस दौरे को भारतीय फैन्स का भी सपोर्ट मिला और साउथ अफ्रीका के कमबैक मैच में ईडन गार्डन्स पूरी तरह भरा हुआ था.
एलन डोनाल्ड ने डेब्यू मैच में काटा था गदर
मैच तो भारतीय टीम ने 3 विकेट से जीत लिया, लेकिन यह जीत-हार से ज्यादा भावनाओं का मुकाबला रहा. केपलर वैसल्स को छोड़कर बाकी 10 अफ्रीकी खिलाड़ियों का वो इंटरनेशनल क्रिकेट में डेब्यू मैच था. बता दें कि वैसल्स उससे पहले ऑस्ट्रेलिया के लिए इंटरनेशनल क्रिकेट खेल चुके थे. उस मैच ने साउथ अफ्रीकी तेज गेंदबाज एलन डोनाल्ड को विश्व मंच पर स्थापित करने में मदद की. डोनाल्ड ने अपने डेब्यू पर 29 रन देकर 5 विकेट झटके और दुनिया भर के क्रिकेट प्रेमियों का ध्यान अपनी ओर खींचा.
साउथ अफ्रीका के कमबैक मैच में टीम की कप्तानी क्लाइव राइस ने की थी. मुकाबले में टॉस भारतीय कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन ने जीता और पहले गेंदबाजी का फैसला किया. मुकाबला 47-47 ओवरों का कर दिया गया था. साउथ अफ्रीका ने केपलर वैसल्स (50 रन) और एड्रियन कुइपर (43 रन) की उपयोगी पारियों के दम पर 177/8 का स्कोर खड़ा किया. भारत की ओर से कपिल देव और मनोज प्रभाकर ने दो-दो विकेट चटकाए. जवाब में भारतीय टीम ने 40.4 ओवरों में ही मैच जीत लिया. सचिन तेंदुलकर (62 रन) और प्रवीण आमरे (55 रन) ने अर्धशतकीय पारियां खेलीं. तेंदुलकर ने गेंदबाजी में भी 1 विकेट झटके थे. तेंदुलकर और एलन डोनाल्ड को संयुक्त रूप से 'प्लेयर ऑफ द मैच' चुना गया था.
साउथ अफ्रीका ने तब भारत दौरे पर कुल तीन वनडे इंटरनेशनल मुकाबले खेले थे. वनडे सीरीज का दूसरा मुकाबला 12 नवंबर 1991 को ग्वालियर में खेला गया था, जिसे भारतीय टीम ने 38 रनों से जीता था. आखिरी मुकाबला 14 नवंबर 1991 को हुआ, जिसमें साउथ अफ्रीका ने 8 विकेट से जीत हासिल की. यह साउथ अफ्रीकी टीम की इंटरनेशनल क्रिकेट में वापसी के बाद पहली जीत रही. साउथ अफ्रीका ने वो सीरीज 1-2 से गंवाया, लेकिन उस सीरीज ने ही भविष्य के साउथ अफ्रीकी टीम की नींव रखी.
क्यों लगा था साउथ अफ्रीकी टीम पर बैन?
साउथ अफ्रीकी सरकार ने ऐसी नीति लागू की थी, जिसके तहत उनकी टीम केवल श्वेत देशों (इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया या न्यूजीलैंड) से खेल सकती थी. साथ ही यह शर्त भी रखी कि विपक्षी टीम के भी सभी खिलाड़ी श्वेत हों. इस नस्लभेदी नीति को लेकर आईसीसी ने कड़ा रुख अपनाया और 1970 में साउथ अफ्रीका को सभी क्रिकेट गतिविधियों से निलंबित कर दिया. प्रतिबंध की वजह से वहां की एक पूरी पीढ़ी का क्रिकेट करियर गर्त में चला गया. फिर समय बदला... सरकार ने रंगभेद नीति को खत्म किया और 21 साल बाद साउथ अफ्रीका का क्रिकेट दोबारा दुनिया के साथ जुड़ सका.
दुखद बात यह रही कि साउथ अफ्रीकी टीम के कप्तान क्लाइव राइस की वो पहली एवं आखिरी इंटरनेशनल सीरीज रही. राइस एक महान ऑलराउंडर थे, लेकिन साउथ अफ्रीकी टीम पर लगे प्रतिबंध के कारण उनका पूरा करियर घरेलू क्रिकेट तक सीमित रह गया. 42 साल और 110 दिन की उम्र में इंटरनेशनल डेब्यू करने वाले राइस यदि नियमित रूप से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेल पाए होते तो उनका नाम कपिल देव, इमरान खान, इयान बॉथम और रिचर्ड हैडली जैसे महान ऑलराउंडरों की सूची में होता. राइस ने 482 फर्स्ट क्लास मैचों में 26331 रन बनाए और 930 विकेट झटके. वहीं 479 लिस्ट-ए मैचों में राइस के नाम पर 13474 रन और 517 विकेट दर्ज हैं.
ईडन गार्डन्स में उस ऐतिहासिक मैच के बाद साउथ अफ्रीकी कप्तान क्लाइव राइस का दिया गया बयान इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया था. राइस ने तब कहा था, 'मुझे लगता है कि मैं वैसा ही महसूस कर रहा हूं, जैसा नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चांद पर कदम रखते समय महसूस किया होगा.' राइस का 2015 में 66 साल की उम्र में निधन हो गया था.
10 नवंबर 1991 को ईडन गार्डन्स में खेला भारत-साउथ अफ्रीका का मैच फैन्स के दिलों में हमेशा के लिए बस चुका है. वो केवल एक मैच नहीं था, बल्कि खेल की जीत और इंसानियत की वापसी का क्षण था. उस दिन क्रिकेट ने दुनिया को यह सिखाया कि खेल केवल मैदान पर नहीं, दिलों में भी खेला जाता है.
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