खत्म हो रहे हिमालयन कस्तूरी मृग... प्रजनन कार्यक्रम नाकाम, RTI से खुलासा

चिड़ियाघरों में कस्तूरी मृग के प्रजनन कार्यक्रम असफल रहे है. अल्पाइन और हिमालयी प्रजातियों की गलत पहचान हुई. सीजेडीए रिपोर्ट से पता चला कि अल्पाइन मृग का कोई ठोस कार्यक्रम नहीं चला. उत्तराखंड केंद्र 2006 में बंद. मृगों की संख्या घट रही, आईयूसीएन ने अति संकटग्रस्त कहा है.

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ये है हिमालयी कस्तूरी मृग, जो तेजी से खत्म हो रहे हैं. (File Photo: iNaturalist) ये है हिमालयी कस्तूरी मृग, जो तेजी से खत्म हो रहे हैं. (File Photo: iNaturalist)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 22 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:04 PM IST

भारत में हिमालयी कस्तूरी मृगों को बचाने के प्रयास नाकाम रहे हैं. ये मृग अपनी खास खुशबू के लिए मशहूर हैं. लेकिन चिड़ियाघरों में इनके प्रजनन कार्यक्रम कभी सही तरीके से शुरू ही नहीं हुए. केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडीए) की दिसंबर 2024 की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. DTE ने आरटीआई से यह जानकारी मांगी थी.

दो मुख्य प्रजातियां, लेकिन गलत पहचान

हिमालय में दो मुख्य प्रकार के कस्तूरी मृग हैं...

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  • अल्पाइन कस्तूरी मृग (मॉसचस क्राइसोगैस्टर): मध्य से पूर्वी हिमालय में पाया जाता है.
  • हिमालयी कस्तूरी मृग (मॉसचस ल्यूकोगैस्टर): पश्चिमी हिमालय में.

रिपोर्ट कहती है कि चिड़ियाघरों ने इनकी गलत पहचान की. अल्पाइन वाले के लिए कार्यक्रम चलाने की कोशिश हुई, लेकिन शायद हिमालयी वाले को ही इस्तेमाल किया गया. नतीजा? अल्पाइन मृग का कोई प्रजनन नहीं हुआ. इनकी संख्या का कोई सही आंकड़ा नहीं है.

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पुराने प्रयास भी नाकाम

  • उत्तराखंड के चोपता में 1982 में केंद्र खोला गया. शुरुआत में 5 मृग थे, बढ़कर 28 हो गए.
  • लेकिन सांप काटना, निमोनिया, पेट की बीमारी या दिल का दौरा से सब मर गए.
  • 2006 में केंद्र बंद. आखिरी मृग दार्जिलिंग चिड़ियाघर भेजा गया.
  • आईयूसीएन के 2014 के आंकड़ों से संख्या घट रही है. ये अति संकटग्रस्त हैं.

दार्जिलिंग में एक नर हिमालयी मृग था (2017-18 की सूची से), लेकिन अब ताजा जानकारी नहीं.

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विशेषज्ञ की राय

देहरादून के वन्यजीव संस्थान के रिटायर्ड प्रोफेसर बीसी चौधरी कहते हैं कि भारत में ये कार्यक्रम पूरी तरह असफल हैं. गलत पहचान से संरक्षण में भ्रम फैला. वे कहते हैं कि कोई मजबूत प्रजनक जोड़ा नहीं है. चीन ने तो बिना मारे खुशबू निकालने की तकनीक बना ली, लेकिन हम पीछे हैं.

कितना खर्च हुआ?

  • आरटीआई में पूछा गया- अल्पाइन कस्तूरी मृग पर कितना पैसा खर्च? 
  • मंत्रालय ने कहा कि हमारे पास जानकारी नहीं. राज्य सरकारें संभालती हैं. 
  • लेकिन सीजेडीए रिपोर्ट से: 2006-2011 में 10.81 करोड़, 2011-2021 में 18.13 करोड़. कुल 28.94 करोड़ सभी प्रजनन कार्यक्रमों पर.

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सिर्फ कस्तूरी मृग ही नहीं

कई अन्य संकटग्रस्त जानवरों के कार्यक्रम भी रुके हैं...

  • तिब्बती मृग, नीलगिरी टार, गंगा डॉल्फिन, जंगली जल भैंसा, पिग्मी हॉग, कश्मीरी बारहसिंगा.
  • जंगली भैंसे की आबादी 2500, लेकिन चिड़ियाघरों में कोई नहीं.
  • सफलता: गिद्धों का कार्यक्रम अच्छा चला, लेकिन व्यक्तिगत प्रयासों से.

रिपोर्ट सलाह देती है: नई प्रजाति न जोड़ें. भारत को अपनी संकटग्रस्त सूची बनानी चाहिए, आईयूसीएन पुरानी है. कस्तूरी मृगों का संरक्षण जरूरी है. लेकिन गलतियां सुधारें. सही पहचान, मजबूत केंद्र और निगरानी से ये बच सकते हैं. सरकार को तेजी से कदम उठाने चाहिए. वरना ये सुंदर मृग हमेशा के लिए खो जाएंगे.

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