भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. एकनाथ वसंत चिटनिस का बुधवार को उनके आवास पर निधन हो गया. परिवार के सदस्यों ने बताया कि वे पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. सुबह ही उन्हें हृदयाघात हुआ. डॉ. चिटनिस ने मंगलवार को ही अपना 100वां जन्मदिन मनाया था. उनका जाना भारतीय वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक बड़ी क्षति है.
डॉ. चिटनिस भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के शुरुआती दिनों के नायक थे. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (आईएनसीओएसपीएआर) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. यह समिति बाद में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) बनी. इसरो आज दुनिया का एक बड़ा अंतरिक्ष संगठन है, जो चंद्रयान और मंगलयान जैसी मिशनों के लिए जाना जाता है. डॉ. चिटनिस ने इसरो के जन्म में योगदान दिया था.
यह भी पढ़ें: जिंदा है चंद्रयान-2... पहली बार देखा सूरज के विस्फोट का असर, सौर लहरों की जानकारी भेजी
वे केरल के थुम्बा में भारत के पहले रॉकेट लॉन्च स्थल को चुनने में भी मुख्य भूमिका निभाई. थुम्बा आज भी भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का महत्वपूर्ण केंद्र है. 1960 के दशक में जब भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू हो रहा था, तब डॉ. चिटनिस ने वहां की जमीन का चयन किया, जहां से भारत के पहले रॉकेट उड़े. यह स्थल समुद्र के किनारे है, जो रॉकेट लॉन्च के लिए बहुत सुरक्षित था.
1981 से 1985 तक डॉ. चिटनिस इसरो के स्पेस एप्लीकेशंस सेंटर (एसएसी) के दूसरे निदेशक रहे. यह केंद्र अहमदाबाद में है. यहां वे उपग्रहों और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पर काम करते थे. उनके नेतृत्व में कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं शुरू हुईं, जो आज भी भारत के विकास में मदद कर रही हैं.
डॉ. चिटनिस डॉ. विक्रम साराभाई के अंतिम जीवित सहयोगियों में से एक थे. डॉ. विक्रम साराभाई को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का पिता कहा जाता है. उन्होंने 1960 के दशक में इसरो की नींव रखी. डॉ. चिटनिस ने उनके साथ मिलकर भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में मजबूत बनाया. डॉ. साराभाई के निधन के बाद भी डॉ. चिटनिस ने उनके सपनों को आगे बढ़ाया.
यह भी पढ़ें: ISRO ने दिखाया भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का मॉडल: 2028 में पहला मॉड्यूल, 2035 तक बनेगा पूरा स्टेशन
एक और रोचक बात यह है कि डॉ. चिटनिस ने युवा वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को मार्गदर्शन दिया. डॉ. कलाम बाद में भारत के राष्ट्रपति बने और उन्हें मिसाइल मैन कहा गया. डॉ. चिटनिस ने डॉ. कलाम को शुरुआती दिनों में सलाह दी और उन्हें प्रेरित किया.
डॉ. चिटनिस को देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म भूषण से नवाजा गया था. यह सम्मान उन्हें उनके वैज्ञानिक कार्यों के लिए मिला. वे हमेशा सादगी से जीते थे. युवा वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करते रहते थे.
डॉ. चिटनिस उनके बेटे डॉ. चेतन चिटनिस, बहू अमिका और पोतियों तारिणी व चंदिनी को छोड़ गए हैं. डॉ. चेतन चिटनिस भी एक वैज्ञानिक हैं. वे मलेरिया अनुसंधान में काम करते हैं. परिवार ने बताया कि अंतिम संस्कार अहमदाबाद में ही किया जाएगा.
डॉ. चिटनिस का जीवन भारत के अंतरिक्ष सफर की कहानी है. उन्होंने साबित किया कि कड़ी मेहनत और समर्पण से बड़े सपने पूरे किए जा सकते हैं. उनकी यादें हमेशा इसरो के इतिहास में जीवित रहेंगी.
आजतक साइंस डेस्क