30 साल बाद फिर दिखी थाईलैंड की 'लुप्त' समझी जा रही दुर्लभ बिल्ली

थाईलैंड में 30 साल बाद फिर मिली दुर्लभ फ्लैट-हेडेड कैट, जिसे विलुप्त समझा जा रहा था. दक्षिण थाईलैंड के जंगल में कैमरा ट्रैप से 29 बार एक मादा अपने बच्चे के साथ नजर आई. दलदली इलाकों के नष्ट होने से खतरे में है यह प्रजाति.

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कैमरा ट्रैप ने फ्लैट-हेडेड कैट की तस्वीर ली है. (Photo: AFP) कैमरा ट्रैप ने फ्लैट-हेडेड कैट की तस्वीर ली है. (Photo: AFP)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 26 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:24 PM IST

थाईलैंड में एक ऐसी दुर्लभ जंगली बिल्ली फिर से देखी गई है, जिसे करीब 30 साल से विलुप्त समझा जा रहा था. यह बिल्ली फ्लैट-हेडेड कैट कहलाती है, जो दुनिया की सबसे दुर्लभ और खतरे में पड़ चुकी बिल्लियों में से एक है. थाईलैंड के संरक्षण विभाग और पैंथेरा नामक एनजीओ ने शुक्रवार को यह खुशखबरी दी.

आखिरी बार कब देखी गई थी?

थाईलैंड में इस बिल्ली की आखिरी प्रमाणित नजर 1995 में आई थी. उसके बाद कोई पक्का सबूत नहीं मिला, इसलिए इसे शायद विलुप्त मान लिया गया था. लेकिन पिछले साल शुरू हुए एक सर्वे में दक्षिण थाईलैंड के प्रिंसेस सिरिंधोर्न वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी में कैमरा ट्रैप लगाए गए. इनमें फ्लैट-हेडेड कैट की 29 बार तस्वीरें और वीडियो आए.

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इस बिल्ली की खासियतें क्या हैं?

  • आकार घरेलू बिल्ली जितना.
  • रात में सक्रिय रहती है और बहुत छिपकर रहती है.
  • ये जगहें वैज्ञानिकों के लिए पहुंचना बहुत मुश्किल होती हैं.
  • सिर चपटा होता है. आंखें गोल और करीब-करीब सटी हुईं.
  • दलदली जंगल (पीट स्वैंप) और मीठे पानी के मैंग्रूव में रहना पसंद करती है.

सर्वे में एक मादा बिल्ली अपने बच्चे के साथ दिखी, जो बहुत अच्छा संकेत है. क्योंकि यह प्रजाति एक बार में सिर्फ एक बच्चा ही पैदा करती है.

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क्यों खतरे में है यह बिल्ली?

दुनिया भर में सिर्फ करीब 2500 वयस्क फ्लैट-हेडेड कैट बची हैं, इसलिए IUCN ने इसे 'एंडेंजर्ड' घोषित किया है. थाईलैंड में इसका मुख्य खतरा...

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  • घरेलू जानवरों से बीमारियां फैलना.
  • अलग-थलग इलाकों में प्रजनन मुश्किल होना.
  • जंगलों का कटना और खेती के लिए जमीन बदलना.
  • दलदली इलाके टुकड़ों में बंट गए, जिससे बिल्लियां अलग-थलग पड़ गईं.

कासेटसार्ट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. कासेट सुताशा ने कहा कि इस बिल्ली का दोबारा मिलना बहुत खुशी की बात है, लेकिन चिंता भी. इनके रहने की जगह बहुत बंट चुकी है. पैंथेरा के संरक्षण कार्यक्रम मैनेजर रत्तपन पत्तनारंगसन ने बताया कि इतनी बार नजर आने से लगता है कि इस इलाके में इनकी संख्या अच्छी-खासी है, लेकिन सटीक गिनती मुश्किल है क्योंकि इनके शरीर पर अलग पहचान वाले निशान नहीं होते.

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आगे क्या?

वैज्ञानिकों का कहना है कि यह खोज सिर्फ शुरुआत है. अब असली काम है – इन बिल्लियों को इंसानों के साथ सुरक्षित और स्थायी तरीके से रहने लायक माहौल बनाना. जंगलों की रक्षा, दलदली इलाकों को बचाना और बीमारियों से सुरक्षा सबसे जरूरी है.

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