Bhimashankar Mandir: आज सावन शिवरात्रि है. भगवान शिव के भक्तों के लिए यह दिन बहुत खास माना जाता है. इस दिव्य तिथि पर भगवान शिव के भक्त पूरी श्रद्धा के साथ महादेव की पूजा-अर्चना करते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं. बहुत से भक्त तो पूरे श्रावण मास में महादेव के अलौकिक मंदिरों और ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने का संकल्प भी लेते हैं.
भगवान शिव की पूजा में लिंग का विशेष स्थान है. भगवान शिव का यह रूप ज्योति का प्रतीक माना जाता है, इसलिए उनके इन रूपों को ज्योतिर्लिंग कहा जाता है. ऐसा विश्वास है कि अगर कोई व्यक्ति रोज सुबह बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम का जाप करता है, तो उसके सात जन्मों के सारे पाप मिट जाते हैं. आइए इसी कड़ी में आज हम आपको महाराष्ट्र के पुणे में स्थित भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कहानी बताते हैं. साथ ही जानेंगे कि महादेव के इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने आप कैसे पहुंच सकते हैं.
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और यह छठे ज्योतिर्लिंग में गिना जाता है. भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग सह्याद्री पर्वत के घाट क्षेत्र में पवित्र भीमा नदी के तट पर स्थित भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग पर्वत के घने जंगलों, झीलों, नदियों से घिरा हुआ है. जो मंदिर दर्शन करने वाले भक्तों के लिए बहुत ही मनमोहक दृश्य माना जाता है. लोग यहा दूर-दूर से शिव जी के दर्शन करने और अपनी मन्नतें मांगने आते हैं.
क्या है भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा?
शिवपुराण की श्रीकोटि संहिता के अष्टम खंड के मुताबिक, भीमासुर नामक एक राक्षस था जो कि बहुत ही ताकतवर और क्रूर था. शिवपुराण के मुताबिक, भीमासुर रावण के भाई कुंभकर्ण का बेटा था. भीमासुर को अपनी ताकत का बड़ा घमंड था. वह हर जगह जाकर तबाही मचाता और लोगों को परेशान करता था. देवतागण भी उससे परेशान थे. एक बार भीमासुर ने भगवान शिव के बड़े भक्त सुदक्षिण और उनकी पत्नी विराणी को कैद कर लिया. वो दोनों शिवजी के परम भक्त थे और हर वक्त उनकी पूजा करते थे.
सुदक्षिण और विराणी ने भीमासुर की कैद में भी हिम्मत नहीं हारी. दोनों रोजाना शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा करते थे. लेकिन, धीरे-धीरे यह बात भीमासुर को चुभने लगी. उसने सोचा ये लोग मेरे सामने शिव की पूजा क्यों कर रहे हैं. जबकि मैं तो सबसे ताकतवर हूं.' भीमासुर ने क्रोध में आकर सुदक्षिण से पूछा, 'तुम किसकी पूजा करते हो?' तो सुदक्षिण ने डरते हुए उत्तर दिया कि 'हम भगवान शिव की पूजा करते हैं. वही सृष्टि के पालनहार हैं और सर्वश्रेष्ठ हैं.' यह सुनकर भीमासुर को गुस्सा आ गया और उसने वहां मौजूद शिवलिंग को तोड़ने की कोशिश की. ताकि सुदक्षिण की आस्था टूट जाए.
लेकिन, जैसे ही भीमासुर ने शिवलिंग पर वार किया. अचानक वहां से एक ज्योति निकली. वह ज्योति भगवान शिव की थी. शिव जी वहां प्रकट हो गए और उन्होंने त्रिशूल हाथ में लेकर भीमासुर से युद्ध किया. उस युद्ध में भगवान शिव के हाथों भीमासुर की मृत्यु हो गई. सुदक्षिण और विराणी की भक्ति से खुश होकर शिवजी ने कहा, 'मैं यहां हमेशा के लिए ज्योतिर्लिंग के रूप में रहूंगा. जो भी यहां सच्चे मन से मेरी पूजा करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी.' बस, तभी से यह जगह भीमाशंकर के नाम से जानी जाती है.
कैसे पहुंचे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग?
रेल मार्ग- अगर आप दिल्ली-एनसीआर में रहते हैं तो आपको सबसे पहले दिल्ली से पुणे रेलवे स्टेशन जाना होगा. यह स्टेशन पुरी, मैसूर, नई दिल्ली और जयपुर जैसे शहरों से जुड़ा हुआ है. पुणे रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद भीमाशंकर पहुंचने के लिए बस या कार लेनी होगी.
हवाई मार्ग- पुणे हवाई अड्डा भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का निकटतम हवाई अड्डा है. भीमाशंकर पुणे हवाई अड्डे से लगभग ढाई घंटे की दूरी पर है. यह हवाई अड्डा देश के सभी प्रमुख शहरों से भी जुड़ा हुआ है. एयरपोर्ट से टैक्सी या बस लेकर आप यहां पहुंच सकते हैं.
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