मथुरा में यमुना पार स्थित गोकुल गांव आज भी श्रीकृष्ण की बाललीला का साक्षी है. यहां कई पुराने मंदिर बने हुए हैं जिनकी प्राचीनता और स्थापत्य का दावा स्थानीय लोक करते हैं. इन्हीं में जहां नंदबाबा का घर बताया जाता है, उससे ही थोड़ी दूर पर एक पवित्र स्थान भी बना हुआ है, जिसे स्थानीय लोग 'पूतना मारी' कहते हैं. मान्यता है कि नवजात कृष्ण ने मात्र दो महीने की आयु में ही इस स्थान पर कंस का सबसे पहला प्राणघातक हमला विफल किया था. यहां उन्होंने कंस की भेजी हुई एक भयानक राक्षसी पूतना का वध किया था.
पूतना एक मायावी, रूप बदलने में माहिर, घातिनी शक्तियों वाली और विषकन्या-गुप्तचरी विधा में प्रवीण राक्षसी थी. पुराणों में ऐसी मायावी स्त्रियों को डाकिनी कहा जाता है. डाकिनी तंत्र विद्या में सिद्ध होती हैं और वह किसी भी असंभव कार्य को संभव कर सकती हैं. दुर्गा सप्तशती में डाकिनी-शाकिनी, मालिका आदि विद्या का जिक्र आता है. गोकुल स्थित पूतना मारी स्थान से मिट्टी-भभूत ले आने की परंपरा है. इससे बच्चों को बुरे सपने नहीं आते और अंधेरे से डर नहीं लगता है. ब्रज की महिलाएं इससे बच्चों की नजर भी उतारती हैं.
कृष्ण जन्म से चिंतित हुआ कंस
एक सामान्य कथा जो सभी जानते हैं वह कुछ यूं है कि, कंस को यह पता चल गया कि उसका काल सुरक्षित गोकुल पहुंचा दिया गया है, लेकिन वह किसके घर है यह उसे ठीक-ठीक नहीं पता था. कंस ने अपने सैनिकों और गुप्तचरों को यह पता लगाने भेजा भी कि किसके घर में बालक के जन्म की खुशियां मनाई जा रही हैं. गुप्तचरों ने पूरे गोकुल में 16 ऐसे घर बताए जहां चमत्कार वाली रात के आसपास बच्चों ने जन्म लिया था. इसलिए कंस ठीक से यह फैसला नहीं कर सका कि आखिर उसका शत्रु उनमें से कौन सा वाला है.
कंस ने पूतना को दिया था कृष्ण वध का आदेश
परेशान कंस ने अपनी धाय पूतना को बुलवाया. पूतना को कृष्ण को खोजकर मार देने का आदेश दिया. तब पूतना ने सलाह दी कि ऐसे तो पता नहीं कि इनमें से आपका काल कौन है, मैं सारे ही शिशुओं को मार डालती हूं. इस तरह पूतना ने वेश बदलकर एक गोपी मनिहारिन का रूप बना लिया और बड़ी सुंदर-मतवाली चाल चलते हुए गोकुल में घूमने लगी. मौका देखकर वह नन्हें शिशुओं को अपने विष लगे स्तन से दूध पिलाकर उन्हें मार डालती और फिर अगले घर की ओर बढ़ जाती.
इसी तरह वह नंदबाबा के घर पहुंची. यहां भी मौका देखकर और यशोदा माता से आंख बचाकर वह उनके घर में घुस गई और नन्हें कान्हा को पालने से उठा लिया और एकांत जगह में जाकर उन्हें भी जहर लगे स्तन से दूध पिलाने लगी. श्रीकृष्ण ने दूध पीने के बहाने पूतना के प्राण ही खींच लिए और वह परलोक को सिधार गई. यह एक प्रचलित कहानी है और भागवत कथा में भी इसका वर्णन इसी रूप में है.
क्या है पूतना के पूर्वजन्म की कथा?
लेकिन, पूतना की असल कहानी यहीं तक नहीं है. बल्कि इस पाप कर्म से उसके पूर्व जन्म के पुण्य और पाप कर्म भी जुड़े हैं. ब्रह्मवैवर्त पुराण और पद्नमपुराण में इस बात का जिक्र आता है कि जब पूतना मरकर और दिव्य देह धारण कर स्वर्ग लोक पहुंची तो श्रीकृष्ण ने उन्हें परमधाम में स्थान दिया और माता कहकर पुकारा. इससे लक्ष्मी ने पूछा कि यह आपकी माता कैसे हुईं?
तब श्रीकृष्ण ने बताया कि इन्होंने मुझे दूध पिलाया है. स्तनपान कराने वाली माता के पद के अधिकारी होती है. तब लक्ष्मी ने कहा- लेकिन वह तो इनका षड्यंत्र था. कृष्ण बताते हैं कि मनुष्य के छल-छद्म, भेद-विभेद सब धरती लोक तक ही सीमित रहते हैं. यह षड्यंत्र भी माता की पूर्वजन्म की इच्छा थी. कथा के अनुसार पूतना अपने किसी पूर्व जन्म राजा बलि की पुत्री थी.
श्रीकृष्ण ने पूतना को माता क्यों कहा?
जब भगवान विष्णु उपेंद्र वामन के अवतार में बलि से दान मांगने पहुंचे थे, तब उनकी छवि और मीठी वाणी सुनकर रत्नमाला को उनपर ममता उमड़ आई थी. उसने मन ही मन सोचा कि यह कभी मेरा पुत्र हो सकता तो मैं इस पर खूब ममता लुटाती और प्रेम करती और प्रेम से दूध भी पिलाती. फिर इसके थोड़ी ही देर बाद वामन ने अपना स्वरूप विस्तार किया और समस्त सृष्टि और सारा त्रिलोक दो ही पग में नाप लिया. उनके इस विशालकाय रूप देखकर रत्नमाला क्रोध मिश्रित आश्चर्य में पड़ गई.
उसने सोचा इतना विशालकाय राक्षस जैसा कद. ऐसे दैत्य को जन्म लेते ही विष मिलाकर दूध पिला देना चाहिए. रत्नमाला के यही विचार आगे साकार हो गए. उसे श्रीकृष्ण पुत्र रूप में भी प्राप्त हुए, जिस पर उसने झूठी ही सही लेकिन ममता दिखाई और उन्हें दूध भी पिलाया और अपनी सोच के अनुसार विष भी पिलाया. परमात्मा और परात्पर को पुत्र रूप में पाकर पूतना मोक्ष की अधिकारी हो गई.
कुछ अलग-अलग पुराण पूतना के विवरण में अलग-अलग जानकारी भी देते हैं. वह एक श्राप के कारण ही कई जन्मों तक आसुरी और दैत्य प्रवृत्ति के साथ जन्म लेती रही थी. कई जगहों पर इसे कंस की धाय मां नहीं बल्कि दासी बताया जाता है.
पूतना को पूर्वजन्म में क्यों मिला था श्राप?
कहीं-कहीं ऐसा जिक्र है कि वह कंस की धाय नहीं बल्कि बहन थी. इसका विवाह घटोदर राक्षस के साथ हुआ था. आदि पुराण पूतना को कैतवी राक्षस की पुत्री और कंस की पत्नी की सखी भी बताता है. इसी की एक कथा ऐसी भी है कि बहुत काल पहले पूतना कालभीरु ऋषि की कन्या चारुमती थी. पिता ने इसका विवाह काक्षीवन ऋषि के साथ कर दिया थी.
एक बार जब काक्षीवन तीर्थ यात्रा पर गए थे तो चारुमती का संबंध किसी असुर से हो गया था. लौटने पर जब ऋषि को इसका पता चला तो उन्होंने अपनी पत्नी को राक्षसी बन जाने का शाप दे दिया. इसी श्राप के कारण वह कई जन्मों तक राक्षसी रूप में जन्म लेती रही. उन्होंने ही पूतना की मुक्ति का उपाय भगवान के किसी अवतार से बताया था.
यह उपाय ही द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद सामने आया. जब पूतना ने उन्हें विष मिला दूध पिलाया और फिर सुरधाम को चली गई.
विकास पोरवाल