जिस बच्चे के होठों पर फेवीक्विक चिपका कर उसे तपते पत्थरों के नीचे मरने के लिए छोड़ दिया गया था, उसे अब धरती के भगवान 'डॉक्टर' जिंदा रखने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं. जी-जान से जुटी टीम मासूम की जिंदगी बचाने में लगी हुई है. बाल कल्याण समिति ने इस मासूम को तेजस्व नाम दिया है.
ICU में जिंदगी और मौत का संघर्ष
15 से 20 दिन के नवजात तेजस्व को जिला अस्पताल के एनआईसीयू में भर्ती कराया गया है. डॉक्टरों के अनुसार, शुरुआती 72 घंटे बच्चे के जीवन के लिए निर्णायक हैं. इनमें से 24 घंटे बीत चुके हैं, लेकिन अगले 48 घंटे भी बेहद संवेदनशील बने रहेंगे. राजकीय महात्मा गांधी अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अरुण गौड़ ने बताया कि बच्चे के शरीर पर कई जगह जलने और चोट के निशान हैं. फेवीक्विक से चिपके होठ उसकी सांस लेने से रोक रहे हैं. जिससे पूरे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो रही है. संक्रमण फैलने के कारण उसकी स्थिति और गंभीर हो गई है. शिशु रोग विभाग की इंचार्ज डॉ. इंद्रा सिंह चौहान ने कहा, मासूम का वजन लगभग 3 किलो 100 ग्राम है. उसकी हालत गंभीर है और उसे विशेष ऑक्सीजन सपोर्ट के साथ रखा गया है. हम हर कदम बेहद सावधानी के साथ उठा रहे हैं.
बाल कल्याण समिति की तत्परता
बाल कल्याण समिति भीलवाड़ा की सदस्य विनोद राव ने बताया कि तेजस्व के लिए तुरंत अस्पताल में जगह सुनिश्चित की गई. पहले बच्चे को बिजोलिया अस्पताल लाया गया और फिर 108 एंबुलेंस के माध्यम से जिला चिकित्सालय भेजा गया. विनोद राव ने कहा, हम लगातार डॉक्टरों से अपडेट ले रहे हैं. हमारी कोशिश है कि मासूम को समय पर सही इलाज मिले और उसकी हालत में सुधार आए. बाल कल्याण समिति ने मांडलगढ़ थाना पुलिस से कहा कि आरोपी माता-पिता के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाए. समिति यह सुनिश्चित कर रही है कि तेजस्व की सुरक्षा और भविष्य दोनों सुरक्षित रहें.
इलाज का पूरा अपडेट
डॉ. गौड़ ने बताया कि ICU में तेजस्व का उपचार विशेष ऑक्सीजन सपोर्ट, संक्रमण नियंत्रण और जलन के इलाज पर केंद्रित है. फेवीक्विक चिपके होठों को धीरे-धीरे सुरक्षित तरीके से हटाया जा रहा है. शरीर पर फैल चुके संक्रमण के लिए एंटीबायोटिक थेरेपी चल रही है. डॉ. इंद्रा सिंह चौहान ने कहा, 15 दिन के बच्चे के लिए यह चुनौती बड़ी है कि वह इस दर्दनाक अनुभव से कैसे उबरता है. हम हर संभव प्रयास कर रहे हैं.
पहले भी ऐसा हो चुका
भीलवाड़ा में यह घटना अकेली नहीं है. पिछले दो साल में जिले में आठ नवजातों को जन्म देने के बाद उनके माता-पिता ने मरने के लिए छोड़ दिया. बाल कल्याण समिति और सामाजिक न्याय अधिकारिता विभाग के पालना गृह इन बच्चों की देखभाल कर रहे हैं. पालना गृह में बच्चे सुरक्षित रहते हैं, लेकिन जागरूकता की कमी और सामाजिक कलंक के कारण अभी भी कई नवजात लावारिस छोड़ दिए जाते हैं. विनोद राव कहती हैं, हम लगातार जागरूकता अभियान चला रहे हैं. तेजस्व जैसी घटनाएं हमें याद दिलाती हैं कि हमें और मेहनत करने की जरूरत है.
क्या हुआ था
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के बिजौलिया उपखंड के माल का खेड़ा रोड स्थित सीताकुंड के जंगलों में किसी ने नवजात को पत्थरों के नीचे दबाकर छोड़ दिया था. जब बच्चे को बाहर निकाला गया तो उसकी हालत ऐसी थी कि किसी के भी आंसू आ जाएं. उसकी चीखों के दबाने के लिए उसके मुंह में एक पत्थर डालकर फेवी क्विक से चिपका दिया गया था. मगर कहते हैं ना कि जाको राखे साईयां मार सके ना कोय. ऐसा ही नवजात के साथ भी हुआ. पत्थरों के पास ही अपने मवेशी चराने आए चरवाहे को जब मासूम की हल्की आवाज सुनाई दी तो उसने तुंरत ग्रामीणों को सुचित किया. जिससे समय रहते मासूम की जान को बचा लिया गया.
प्रमोद तिवारी