योगी आदित्यनाथ और बृजभूषण शरण सिंह की मुलाकात, क्यों नहीं बनी बात?

कहा जाता है कि ताली एक हाथ से नहीं बजती है. बृजभूषण शरण सिंह सीएम योगी से मुलाकात करने उनके लखनऊ स्थित अधिकारिक आवास पर पहुंचे जरूर पर शायद अपने दिल पर इतना पत्थर लेकर गए कि बर्फ नहीं पिघली. जब ब्रजभूषण वापस लौटे और जिस तरह की बातें कीं, उससे लगा जैसे बात नहीं बनी. जाहिर है कि अब इस मुलाकात के नफा नुकसान की चर्चा होगी.

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बृजभूषण शरण सिंह और योगी आदित्यनाथ बृजभूषण शरण सिंह और योगी आदित्यनाथ

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 23 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 12:59 PM IST

21 जुलाई 2025 को लखनऊ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पूर्व बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह के बीच हुई मुलाकात पर पूरे प्रदेश की निगाहें थीं. करीब 31 महीने बाद दोनों नेता लखनऊ में मुख्यमंत्री के सरकारी आवास, 5 कालीदास मार्ग, पर मिलते हैं. मिलने की जगह सीएम का घर रखा गया था. जाहिर है कि यह दिखाने की स्पष्ट कोशिश थी कि मामला पारिवारिक है.

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मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है कि यह मुलाकात 25 से 55 मिनट तक चली. ब्रजभूषण शरण ने इसे निजी और गिले-शिकवे साझा करने वाली मुलाकात बताया, जिसमें कोई राजनीतिक चर्चा नहीं हुई. हालांकि, सियासी गलियारों में इस मुलाकात को लेकर तरह तरह की अटकलें हैं. वैसे आम तौर पर राजनीतिक मुलाकातों को भविष्य के चुनावों को ध्यान में रखकर बताया जाता है.

पर इस मुलाकात को उससे आगे की बात बताया जा रहा है. कयास लगा जा रहे हैं कि 2027 के विधानसभा चुनावों और पूर्वांचल की राजनीति से भी अलग आखिर क्या बात रही होगी.पर इस मुलाकात के बाद दोनों तरफ से जो रिस्पांस देखने को मिल रहा है वो बीजेपी के लिए उत्साहजनक नहीं है. आइये देखते हैं कि दोनों के बीच मामला क्यों पटरी पर आते-आते रह गया.

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दोनों के बीच तनातनी के कारण

बृजभूषण शरण सिंह, जो कैसरगंज से छह बार सांसद रह चुके हैं और गोंडा, बलरामपुर, बहराइच, और श्रावस्ती जैसे जिलों में मजबूत जनाधार रखते हैं, लंबे समय से योगी आदित्यनाथ के विरोधी खेमे में माने जाते रहे हैं. दोनों नेताओं के बीच तनातनी की खबरें 2019 के बाद से लगातार सामने आती रही हैं, जब दोनों को किसी सार्वजनिक मंच पर एक साथ नहीं देखा गया.

योगी आदित्यनाथ का गोरखपुर और पूर्वांचल में मजबूत प्रभाव है, जबकि बृजभूषण का देवीपाटन मंडल (गोंडा-बलरामपुर क्षेत्र) में दबदबा है. दोनों गोरक्षनाथ पीठ से जुड़े हैं और महंत अवैद्यनाथ को अपना गुरु मानते हैं, लेकिन क्षेत्रीय और प्रशासनिक मामलों में ठेकों, पट्टों, और नीतियों को लेकर मतभेद रहे हैं.

बृजभूषण ने कई बार योगी सरकार की नीतियों, जैसे बुलडोजर नीति और नौकरशाही, की आलोचना की, उन्होंने समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव को छोटा भाई कहकर तारीफ की. इस बयान के चलते बीजेपी के भीतर बृजभूषण की निष्ठा पर सवाल उठे.

क्या बात नहीं बनी?

बृजभूषण ने योगी के साथ मुलाकात को निजी बताया और कहा कि यह परिवार के दो लोगों के बीच गिले-शिकवे साझा करने की मुलाकात थी. जिसमें कोई राजनीतिक चर्चा नहीं हुई. ब्रजभूषण बता चुके हैं कि दिसंबर 2022 में उनके एक कार्यक्रम में शामिल होने से योगी ने इनकार कर दिया था. जिससे खफा होकर उन्‍होंने कह दिया था कि अब जब योगी मुझे बुलवाएंगे, तभी मिलने जाऊंगा. हालांकि, उसके बाद जनवरी 2023 में मेरे खिलाफ दिल्‍ली में महिला पहलवानों का प्रदर्शन शुरू हुआ. जिसके खिलाफ मैंने अकेले संघर्ष किया. न तो मैंने योगी आदित्‍यनाथ से मदद मांगी. और न ही उन्‍होंने कोई मदद की.

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सीएम योगी आदित्‍यनाथ से मुलाकात के बाद ब्रजभूषण शरण सिंह कहते हैं कि अब जब सीएम ने बुलाया, तो मैं मिलने गया. हालांकि ये बातें तो सिर्फ कहने की हैं. मुलाकात के बाद बृजभूषण शरण की जो बॉडी लैंगवेज थी वो नॉर्मल नहीं थी. मतलब साफ था जितना सोचकर वो आए थे वो मिला नहीं .

वे उतने प्रसन्न नहीं दिखे, और उनकी टिप्पणी 'झुकना तो बड़े को पड़ेगा' यह संकेत देती है कि वे योगी के रवैये से संतुष्ट नहीं थे.उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि मुलाकात ही खास थी, जिससे लगता है कि कोई ठोस परिणाम नहीं निकला.सबसे बड़ी बात यह रही है कि दोनों नेताओं की मुलाकात की कोई फोटो सीएम कार्यालय की ओर जारी नहीं की गई.

दूसरी ओर मुलाकात के दूसरे ही दिन बृजभूषण शरण सिंह के विधायक बेटे प्रदेश की राजनीति में योगी के लिए कई बार संकट बने उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से मिलने चले गए. जाहिर है कि यह यूं ही नहीं हुआ होगा. बृजभूषण शरण की ओर सो पूरी प्लानिंग के तहत ऐसा किया होगा. 

बृजभूषण शरण सिंह और योगी दोस्ती-दुश्मनी में किसको नफा नुकसान

पूर्वांचल के दो ठाकुर नेता जिसमें एक योगी आज देश के सबसे बड़े नेताओं में से एक बन चुके हैं. दूसरे बृजभूषण शरण सिंह हैं जो पूर्वी यूपी की राजनीति पर पकड़ तो रखते ही हैं कई बार देश की राजनीति में दखल रखते हैं. महिला पहलवानों के आरोप पर पॉक्सो एक्ट लगने के बाद भी खुद को बचा लेना और महासंघ से रिजाइन करके अपने चेले की ताजपोशी करना आसान नहीं है, पर यह सब करके बृजभूषण शरण ने दुनिया को दिखा दिया.

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इतने झंझावतों के बाद भी बृजभूषण न केवल पार्टी में अपनी पोजिशन बरकरार रखी बल्कि अपनी जगह अपने बेटों को विधायक और सांसद बनवाने में सफल साबित हुए. अब मंत्री बनवाने के लिए जोर लगाए हुए हैं. दूसरी तरफ योगी हैं जो उत्तर प्रदेश के लगभग 8 सालों से मुख्यमंत्री हैं. तमाम साजिशों के बाद भी उन्हें यूपी की कुर्सी से हिलाया नहीं जा सका है. उनको भविष्य में देश का नेता माना जा रहा है. जाहिर है कि इस मुलाकात में अगर बात नहीं बन रही है तो नुकसान किसका होगा यह स्पष्ट नहीं कहा जा सकता.

क्‍या छांगुर बाबा के कारण डिफेंसिव हो गए हैं ब्रजभूषण?

योगी ने बलरामपुर और गोंडा में छांगुर बाबा के धर्मांतरण रैकेट को तहस नहस करके बृजभूषण के इलाके में भी पैठ बना ली है. बृजभूषण को यह संदेश दे दिया है कि उन्हे कमजोर समझने की भूल न करे कोई. चर्चा यह भी है कि आखिर बलरामपुर गोंडा इलाके के चप्पे चप्पे से वाकिफ बृजभूषण शरण सिंह के रहते हुए इस इलाके में देश का सबसे बड़ा धर्मांतरण का रैकेट कैसे फलता फूलता रहा? योगी प्रदेश से माफिया राज का जड़ से उन्मूलन करने के लिए जाने जाते हैं. योगी के निशाने पर जो माफिया आता है उसकी खैर नहीं होती है. योगी अपने राजनीतिक विरोधियों को भी उतनी ही दक्षता से निपटाते हैं. हालांकि, छांगुर बाबा को लेकर ब्रजभूषण पहले ही यह कह चुके हैं कि मैं जब बलरामपुर सांसद था तब इसका नाम नहीं सुना. हो सकता है कि उसने मेरे साथ फोटो भी खिंचवाई हो.

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