बिहार की राजनीति के केंद्र में हमेशा से जाति रही है. प्रदेश की आबादी में यादव समुदाय करीब 14% है. जो अन्य किसी भी जाति से अधिक है. जाहिर है कि बिहार की राजनीति इसी जाति के इर्द गिर्द मंडराती है. 2020 के विधानसभा चुनावों में यादवों के बल पर ही आरजेडी प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. ये बात अलग है कि बीजेपी और जेडीयू ने तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने पर ग्रहण लगा दिया.
हालांकि 2 साल बाद ही नीतीश कुमार बीजेपी से नाता तोड़कर आरजेडी के साथ आ गए. तेजस्वी डिप्टी सीएम बने और तेजप्रताप को भी मलाईदार मंत्रालय मिला. पर लालू परिवार के दबाव से तंग आकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर पलटी मारी और एनडीए के साथ आ गए. तब से अब तक नीतीश एनडीए के साथ हैं और बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में विराजमान हैं.
2025 में एक बार फिर आरजेडी को उम्मीद है कि यादव और मु्स्लिम मतदाता उनके साथ हैं. पर लोकसभा चुनावों में आरजेडी को मिली मात से ऐसा लगता है कि यादव वोटर्स का आशीर्वाद लालू परिवार को उस तरह से नहीं मिल रहा है जिस तरह से मिला करता था. जाहिर है कि अगर ऐसा होता है तो आरजेडी एक बार सत्ता से बहुत दूर रह जाएगी.
1- RJD की यादव वोटर्स पर दावेदारी: आंकड़े और ऐतिहासिक मजबूती
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के संस्थापक लालू प्रसाद यादव ने 1990 के दशक से यादवों को सामाजिक न्याय, पिछड़े वर्गों की आवाज और 'MY' (मुस्लिम-यादव) गठजोड़ के नाम पर एकजुट किया . तब से यादव वोट लालू परिवार (लालू, राबड़ी देवी, तेज प्रताप और तेजस्वी यादव) की विरासत बन गया. लेकिन 2025 विधानसभा चुनावों से पहले इसके दरकने के संकेत मिल रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'मोदी मैजिक' विकास, कल्याण योजनाओं और हिंदुत्व के मिश्रण ने यादव वोटों में सेंध लगाई है. अगर 2024 लोकसभा चुनावों जितना भी यादव आरजेडी से दूर हुए तो पार्टी का बैंड बजना तय है.
-2020 बिहार विधानसभा चुनाव
RJD का वोट बैंक 'MY' समीकरण पर टिका है, जो बिहार में करीब 32% बनता है. RJD ने महागठबंधन (RJD-कांग्रेस-वामपंथी) के साथ 144 सीटों पर चुनाव लड़ा और 75 सीटें जीतीं और राज्य मे सबसे बड़ी पार्टी बनी. यादव-बहुल क्षेत्रों जैसे सारण, मधेपुरा, सुपौल और झंझारपुर में RJD का वर्चस्व रहा. सारण जिले (यादव बहुल) में महागठबंधन ने 10 में से 7 विधानसभा सीटें जीतीं. कुल वोट शेयर 23.11% था, जिसमें यादव वोटों का बड़ा हिस्सा (70-80%) RJD को मिला. जाहिर है कि आरजेडी अपनी इस सफलता को दुहराना चाहेगी.
-2024 लोकसभा चुनाव
पर 2024 के लोकसभा चुनाव आते आते बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा और 4 सीटें ही जीत सकी. पाटलीपुत्र (मीसा भारती), जहानाबाद (सुरेंद्र प्रसाद यादव), औरंगाबाद (अभय कुशवाहा), और बक्सर (सुधाकर सिंह) ही अपनी सीट जीत सके. RJD ने 8 यादव उम्मीदवार उतारे, जिनमें से 2 (मीसा भारती और सुरेंद्र प्रसाद यादव) को विजय मिली. अन्य यादव उम्मीदवार जैसे रोहिणी आचार्य (सारण), ललित कुमार यादव (दरभंगा), और जय प्रकाश नारायण यादव (बांका) चुनाव हार गए.
RJD को कुल 95,88,365 वोट मिले, जो 22.14% वोट शेयर था, जो बिहार में सबसे अधिक था. इसके ठीक उलट एनडीए ने 30 सीटें जीत कर इतिहास बना दिया. जिसमें BJP ने 12 सीटें 20.52% वोट के साथ जीत ली.JD(U) ने 12 सीटें जीतीं और उसका वोट प्रतिशत केवल 18.52% रहा. LJP रामविलास को 5 सीटें (6.47%), और HAM(S) को एक सीट मिली.
INDIA गठबंधन को 9 सीटें मिलीं . इसमें RJD से बेहतर कांग्रेस को सीट मिले. आरजेडी ने 23 सीटों पर चुनाव लड़कर केवल 4 सीटें जीतीं जबकि कांग्रेस ने 3 सीटें मात्र 7 सीटों पर लड़कर जीत ली. पप्पू यादव भी एक तरह से कांग्रेस प्रत्याशी ही थे. हालांकि उन्होंने निर्दल चुनाव लड़ा था. CPI(ML) 2 सीटें (2.99%) हासिल करने में सफल रही. तेजस्वी यादव के 250 से अधिक रैलियों और बेरोजगारी-महंगाई पर फोकस करने के बावजूद मात्र 17 परसेंट ही स्ट्राइक हासिल कर सका. नीतीश कुमार की NDA वापसी और चिराग पासवान की रणनीति ने NDA को बढ़त दिला दी.
यादव-मुस्लिम (M+Y) समीकरण RJD का आधार रहा, लेकिन यादव बहुल सीटों (सारण, सीवान, मधुबनी) में NDA की सेंध ने RJD को नुकसान पहुंचाया.
2-क्यों मोदी का जादू यादव वोटों का किला दरका रहा है?
मोदी का 'मैजिक' 2014 से यादवों पर असर दिखा रहा है. NDA ने विकास (इंफ्रास्ट्रक्चर, कल्याण) और हिंदुत्व को मिलाकर RJD के जातिगत नैरेटिव को चुनौती दी. 2025 चुनावों में यह और तेज हुई है, क्योंकि बिहार में बेरोजगारी (7.6%, CMIE 2025) और प्रवासन जैसे मुद्दों पर NDA ने ठोस कदम उठाए हैं.
NDA सरकार ने बिहार को केंद्र से 9.23 लाख करोड़ का पैकेज दिया (कांग्रेस के 2.80 लाख करोड़ के मुकाबले). PM किसान (10,000 रुपये सालाना), उज्ज्वला (फ्री गैस), फ्री राशन और PMAY ने यादव किसानों/मजदूरों को लुभाया है.
राम मंदिर, अयोध्या यात्रा और 'विकास राज vs जंगल राज' नैरेटिव ने यादवों को जोड़ा है. BJP ने यादव उम्मीदवार उतारे, जैसे दरभंगा में गोपाल जी ठाकुर. 2025 में मोदी की मोतिहारी-सीवान रैलियों में हजारों करोड़ के प्रोजेक्ट मिले . जाहिर है कि यादव इलाकों में मोदी सरकार लेकर उत्साह है.
मध्यप्रदेश में एक यादव मुख्यमंत्री और केंद्र में पहली बार करीब 4 यादव नेताओं को मंत्री पद मिला हुआ है. जाहिर है कि यादव मतदाताओं को लग रह है कि बीजेपी और एनडीए उनकी दुश्मन नहीं हैं.
3- RJD का यादव कैंडिडेट को लेकर दुविधा
दरअसल यूपी- बिहार का वोटिंग पैटर्न रहा है कि जहां यादव वोट जाते रहे हैं वहां अति पिछड़ों का वोट नहीं जाता है. 2024 में उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने इसको पहली बार समझा. उन्होंने केवल 5 यादवों को टिकट दिया , जबकि 2019 में उन्होंने 10 यादवों को टिकट दिया था. गैर यादव ओबीसी और ईबीसी (अति पिछड़ों) को 2019 में जहां समाजवादी पार्टी ने केवल 6 सीट दिया था वहीं 2024 में 23 सीट दिया. इसका फायदा हुआ . प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने बीजेपी से बढ़त हासिल कर ली.
जाहिर है कि यही प्रवृत्ति बिहार में भी है. इसलिए आरजेडी भी इसी नीति पर चल सकती है. पर आरजेडी की दुविधा यह है कि 2020 के चुनावों में यादव कैंडिडेट्स की जीत की स्ट्राइक सबसे शानदार रही. राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी लिखते हैं कि अगर 2020 में आरजेडी के टिकट वितरण का डेटा देखें तो आरजेडी ने 243 में से 144 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. पार्टी ने 144 में से 58 सीटों पर यादव उम्मीदवार दिए थे. आंकड़ों में देखें तो यह करीब 40 फीसदी पहुंचता है. बिहार की कुल आबादी में यादव जाति की भागीदारी 14 फीसदी ही है और पार्टी ने 40 फीसदी टिकट यादवों को दिए, जो आबादी के अनुपात से कहीं ज्यादा है.
जाहिर है कि इतनी बड़ी मात्रा में जब यादवों को टिकट मिलेगा तो गैर यादव ओबीसी और ईबीसी में पार्टी के प्रति एक तरह की डर कहें या शंका होगी ही. जो बड़े पैमाने पर उनका वोट जेडीयू और बीजेपी की ओर ट्रांसफर होने का आसान कारण बनेगा.
संयम श्रीवास्तव