बिहार विधानसभा चुनावों के लिए वोटिंग हो चुकी है. अभी तक जितने भी एग्जिट पोल आएं हैं उनको देखकर यही लगता है कि बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लहर चल रही है. अभी तक देश में हुए विधानसभा चुनाव में कोई ऐसा मुख्यमंत्री नहीं रहा होगा जिसके विरोधियों के पास उसके खिलाफ बोलने के लिए शब्दों न रहे हों. नीतीश कुमार ऐसी ही शख्सियत बन कर उभरे हैं. उनके घोर विरोधी भी उन्हें भ्रष्ट नहीं कह सकते. उनके विकास कार्यों पर प्रश्नचिह्न नहीं लगा सकते. उन्हें किसी स्कैंडल में नहीं फंसा सकते.
शायद यही कारण हैं कि बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार अजातशत्रु बनकर उभरें हैं. अगर बिहार में एक बार फिर एनडीए की सरकार बनती है तो निश्चित ही उसमें नीतीश कुमार की बहुत बड़ी भूमिका होगी. लगातार 20 साल शासन के बाद भी अगर किसी नेता के खिलाफ बोलने के लिए कुछ नहीं है तो जाहिर है कि वह भारतीय राजनीति के महानतम नेताओं की श्रृंखला में अगला नाम है. इस देश की मिट्टी ने महात्मा गांधी की अहिंसा से लेकर जवाहरलाल नेहरू की आधुनिक भारत की नींव रखने वाली दृष्टि तक, और इंदिरा गांधी की दृढ़ता से अटल बिहारी वाजपेयी की समावेशी राजनीति तक का दौर देखा है. इस बार के विधानसभा चुनाव परिणाम यह तय करेंगे कि देश के इन बड़े नामों के बीच नीतीश कुमार के नाम का एक नया अध्याय भी जोड़ा जाएगा.
एक इंजीनियर से सुशासन बाबू तक
नीतीश कुमार, जो बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में 20 वर्षों से अधिक समय से सत्ता में हैं, न केवल एक राज्य के शासक हैं, बल्कि एक ऐसे सुधारक हैं जिन्होंने 'बिहार मॉडल' को राष्ट्रीय चर्चा का विषय बना दिया. उनका राजनीतिक कौशल, विकास-केंद्रित शासन और गठबंधन की कला ने उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित किया है जो हमेशा विपरीत परिस्थितियों में निर्विवाद रूप से विजयी होकर उभरता है.
नीतीश कुमार का जन्म 1 मार्च 1951 को बिहार के बख्तियारपुर में एक शिक्षक परिवार में हुआ. उनके पिता कविराज राम लखन सिंह एक आयुर्वेदिक चिकित्सक और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनकी राष्ट्रीयता की भावना ने युवा नीतीश को प्रभावित किया. इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने के बाद, नीतीश ने बिहार राज्य विद्युत बोर्ड में नौकरी की, लेकिन जल्द ही राजनीति की ओर रुख कर लिया. 1970 के दशक में जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी ने उन्हें एक युवा समाजवादी के रूप में स्थापित किया. 1985 में वे पहली बार विधायक बने, लेकिन असली सफलता 1990 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद आई.
नीतीश ने जनता दल के बैनर तले काम किया, लेकिन 1994 में समता पार्टी के रूप में अपनी पार्टी बनाई, जो बाद में जनता दल (यूनाइटेड) बनी. उनके प्रारंभिक वर्षों में लालू प्रसाद यादव के शासन के खिलाफ संघर्ष प्रमुख था. बिहार में 'जंगल राज' की छवि को चुनौती देते हुए, नीतीश ने भ्रष्टाचार और अपराध के खिलाफ आवाज उठाई. 2000 में वे केंद्रीय रेल मंत्री बने, जहां उन्होंने रेलवे को आधुनिक बनाने के लिए कई कदम उठाए.
बिहार की सत्ता में उनका प्रवेश 2005 में हुआ, जब एनडीए ने विधानसभा चुनाव जीता. यह जीत केवल संख्याओं की नहीं, बल्कि एक नए युग की शुरुआत थी. नीतीश ने वादा किया था कि बिहार से को फिर से बनाना है. इस वादे ने उन्हें एक दूरदर्शी नेता के रूप में स्थापित किया. उनकी राजनीतिक यात्रा में उतार-चढ़ाव भी आए. 2013 में महागठबंधन, 2017 में वापसी, 2022 में फिर एनडीए में आने पर उन्हें पलटू राम कहकर संबोधित किया गया. लेकिन प्रत्येक मोड़ पर उन्होंने अपनी सत्ता को मजबूत किया. आज, 2025 के चुनावों में, जहां एग्जिट पोल्स एनडीए की लहर की बात कर रहे हैं, नीतीश की 'पलटी' न केवल रणनीति है, बल्कि बिहार के हितों की रक्षा का प्रमाण है.
सामाजिक सुधार को धरातल पर लाने वाले नेता
देश में बहुत से नेता हुए पर क्रातिकारी सामाजिक बदलाव करने वाले नेताओं में अकेले नीतीश कुमार हैं. उनके नेतृत्व में बिहार में महिलाओं की दशा में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ. लड़कियों को साइकिल देकर उन्होंने सुदूर गांव की बच्चियों को जैसे उड़ने के लिए पंख दे दिया.
स्कूलों में लड़कियों के लिए साइकिल वितरण योजना ने ड्रॉपआउट रेट को 60% से घटाकर 10% कर दिया. सात निश्चय योजना के तहत हर गांव में सोलर लाइट, शौचालय और वाई-फाई पहुंचा. स्वास्थ्य में मुक्ताम्बरी योजना ने गर्भवती महिलाओं को मुफ्त इलाज दिया, जिससे शिशु मृत्यु दर घटी. 2025 तक, बिहार की साक्षरता दर 62% से बढ़कर 80% हो चुकी है. ये आंकड़े न केवल नीतीश की दक्षता दिखाते हैं, बल्कि एक ऐसे शासक की, जो पिछड़े वर्गों को सशक्त बनाने में विश्वास रखता है.
महिला सशक्तिकरण में उनकी भूमिका अनुकरणीय है. 50% पंचायत सीटें महिलाओं को आरक्षित करने वाली नीति ने हजारों महिलाओं को राजनीति में लाया. शराबबंदी, भले विवादास्पद रही पर इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि बहुत सी महिलाओं की इसके चलते सुरक्षा बढ़ी. नीतीश राज में हुए सुधार बिहार को न केवल आर्थिक रूप से मजबूत कर रहे हैं, बल्कि सामाजिक न्याय की नई परिभाषा लिख रहे हैं.
समावेशी राजनीति करने वाले देश के एकमात्र नेता
आज के राजनीतिक माहौल में जहां जाति, धर्म और विचारधारा की खाई बढ़ती जा रही हैं, नीतीश कुमार एकमात्र ऐसे नेता हैं जो समावेशी राजनीति की मिसाल पेश करते हैं. बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में उनकी 20 वर्षों की यात्रा न केवल राज्य को 'जंगलराज' से 'सुशासन' की ओर ले गई, बल्कि उन्होंने एक ऐसा मॉडल गढ़ा जो सभी वर्गों, समुदायों को एक सूत्र में बांधता है.
नीतीश की राजनीति में नफरत की कोई जगह नहीं; केवल विकास और न्याय का संदेश है. यह समावेशिता ही उन्हें अन्य नेताओं से अलग करती है. आज के दौर के नेताओं को चाहने वाले तो हैं ही, नफरत करने वाले भी कम नहीं. लेकिन नीतीश के साथ ऐसा नहीं है. उन्हें वोट न देने वाला हो सकता है, मगर नफरत करने वाला? ऐसा संभव ही नहीं.
नीतीश की अपील की सबसे बड़ी ताकत उनकी जातिगत समावेशिता है. बिहार जैसे राज्य में, जहां पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग (ईबीसी और महादलित) जनसंख्या का 60% से अधिक हैं, नीतीश ने इन्हें सशक्तिकरण का केंद्र बनाया. 2006 में गठित ईबीसी महासभा ने इन वर्गों को राजनीतिक पहचान दी, जबकि सात निश्चय योजना ने शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार में समान अवसर सुनिश्चित किए.
लड़कियों के लिए साइकिल वितरण से लेकर महादलित टोले में बुनियादी सुविधाएं जैसे कदम पिछड़ों को उन्हें पसंद करने पर मजबूर कर देते हैं. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, अगड़े वर्ग भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण भी नीतीश को वोट देते हैं. क्यों? क्योंकि उनकी नीतियां विकास-केंद्रित हैं, न कि जाति-विरोधी. कानून-व्यवस्था की मजबूती और इंफ्रास्ट्रक्चर क्रांति (जैसे गंगा पर पुलों का जाल) ने सभी को लाभ पहुंचाया. 2020 विधानसभा चुनावों में एनडीए की जीत में अगड़ों का 40% समर्थन निर्णायक था. नीतीश ने साबित किया कि समावेशी विकास जाति की दीवारें तोड़ सकता है.
कट्टर हिंदू भी उन्हें 'सुशासन बाबू' मानते हैं, जो शराबबंदी और महिला सुरक्षा जैसी नीतियों से हिंदू मूल्यों को मजबूत करते हैं. वहीं, मुसलमान जो बिहार की 17% आबादी हैं उन्हें भरोसेमंद मानती है. 2015 महागठबंधन में मुस्लिम वोटों का समर्थन और बाद में एनडीए में उनकी भूमिका ने साबित किया कि वे ध्रुवीकरण से ऊपर हैं.
जेन-जी के जमाने में भी सत्ता के खिलाफ नाराजगी नहीं बढ़ने दिया
Gen Z आज की राजनीति का नया चेहरा हैं. बिहार में 50% से अधिक आबादी 35 वर्ष से कम है जाहिर है कि इसमें बड़ी संख्या 13 से 28 साल वालों की हैं. यानि कि बिहार Gen Z का गढ़ है. ये युवा सोशल मीडिया पर #FarmersProtest से #ClimateStrike तक, असंतोष को वायरल करने की हैसियत रखते हैं. हाल के दौर में अक्सर देखा गया है कि Gen Z तिल का ताड़ बनाने में माहिर हैं. सत्ता इन्हें अक्सर दबाने का प्रयास करती है. पर नीतीश कुमार अलग हैं. बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में वे Gen Z की नाराजगी को न केवल सुनते हैं, बल्कि उसे नीतियों में उतारते हैं.
2025 के दौर में, जब Instagram रील्स पर युवा बेरोजगारी और महंगाई पर चिल्ला रहे हैं, नीतीश का मॉडल साबित करता है कि बिहार में असंतोष उनका विरोधी न बनकर सहयोगी बन गया है. यह चमत्कार यूं ही नहीं है. 2020 चुनावों से पहले, जब युवा बेरोजगारी (30% से ऊपर) को लेकर भड़के हुए थे, नीतीश ने 'कुशल युवा कार्यक्रम' लॉन्च किया. यह केवल योजना नहीं, नाराजगी का जवाब था.1 लाख युवाओं को स्किल ट्रेनिंग, जो आज 5 लाख तक पहुंच गई.
Gen Z की डिजिटल नस को पकड़ते हुए, उन्होंने 'बिहार डिजिटल हेल्पलाइन' शुरू की, जहां युवा शिकायतें पोस्ट कर सकते हैं. 2024 में, जब #BiharYouthUnemployment ट्रेंड हुआ, नीतीश ने कुछ कार्यक्रमों के बहाने लाइव सेशन में युवाओं से बात की, बिना सेंसर के. परिणाम सबके सामने था. नाराजगी घटी, विश्वास बढ़ा.
महिलाओं को 50% पंचायत आरक्षण ने Gen Z लड़कियों को राजनीति में लाया. बिहार चुनावों से बहुत पहले जब युवा वोटर (40% मतदाता) ने #JobQuota की मांग की, नीतीश ने जातिगत जनगणना को राष्ट्रीय मुद्दा बनाया, बिना उनकी आवाज को दबाए. नीतीश सुनते हैं, सुधारते हैं. नीतीश का मॉडल प्रासंगिक है. वे साबित करते हैं कि नाराजगी दबाने से विद्रोह जन्म लेता है, लेकिन संवाद से साझेदारी बढ़ती है.
बिहार को 'अराजकता के गढ़' से 'विकास के मॉडल' में बदलना
नीतीश कुमार की सबसे बड़ी उपलब्धि बिहार को 'अराजकता के गढ़' से 'विकास के मॉडल' में बदलना है. 2005 से पहले बिहार अपराध, गरीबी और पिछड़ेपन का प्रतीक था. अपराध दर राष्ट्रीय औसत से दोगुनी थी, सड़कें टूटी हुईं, बिजली एक सपना था. नीतीश ने सबसे पहले कानून-व्यवस्था को सुधारने का काम किया. उन्होंने पुलिस सुधार किए, थानों का आधुनिकीकरण किया और अपराधियों पर सख्ती बरती. परिणामस्वरूप, 2005-2010 के बीच अपराध दर में 50% से अधिक कमी आई.
बिहार में सड़कों की लंबाई 2005 में 70,000 किलोमीटर थी. आज यह दोगुनी से अधिक है. ग्रामीण सड़क योजना के तहत 1 लाख किलोमीटर से ज्यादा सड़कें बनीं. बिजली पहुंच 15% से बढ़कर 95% हो गई. बिहार ब्रिज कॉर्पोरेशन ने गंगा पर दर्जनों पुल बनाए, जो राज्य को जोड़ने का माध्यम बने. आर्थिक विकास की बात करें तो जीडीपी ग्रोथ रेट 2005 के 3% से 2010 तक 11% पहुंच गई, जो गुजरात के करीब थी. विश्व बैंक की रिपोर्ट्स ने इसे 'बिहार मिरेकल' कहा.
संयम श्रीवास्तव