दिल्ली विधानसभा चुनावों में जब चुनाव प्रचार अपने चरम पर था उस समय से ही यह बात सामने आ रही कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी हारे या जीते, इसका प्रभाव पंजाब सरकार पर अवश्य पड़ने वाला है. दिल्ली की हार के आंसू अभी सूखे भी नहीं थे कि आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद ने दिल्ली में पंजाब सरकार को मिलने को बुला लिया. दिल्ली के कपूरथला हाउस में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, उनके मंत्रियों और राज्य के AAP विधायकों-सांसदों के साथ अरविंद केजरीवाल की बैठक शुरू होने के बाद करीब आधे से एक घंटे में ही खत्म हो गई. इस बैठक के बाद भगवंत मान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया. पर उन्होने कोई ऐसी बात नहीं की जिसका मतलब यह निकाला जाए कि यह मीटिंग इस लेवल की थी सबको आनन फानन में आना जरूरी था. भगवंत मान ने कहा कि AAP की पंजाब इकाई ने दिल्ली चुनाव के दौरान कड़ी मेहनत की थी, इसके लिए अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने पंजाब के नेताओं को धन्यवाद दिया. पंजाब में हमारी सरकार लोगों के हित में बहुत सारे काम कर रही है. चाहे वह बिजली के क्षेत्र में हो, शिक्षा के क्षेत्र में, स्वास्थ्य और इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में हो. हमें इन कार्यों को और गति देनी है.'
1-आधे से एक घंटे की मीटिंग का औचित्य नहीं समझ में आया
कहा जा रहा था कि केजरीवाल ने पंजाब के अपने नेताओं की यह बैठक पार्टी की राज्य इकाई में बढ़ते आंतरिक असंतोष की चर्चा के बीच बुलाई थी. वहीं पार्टी का कहना था कि यह बैठक दिल्ली विधानसभा चुनावों पर चर्चा करने और पंजाब के नेताओं की प्रतिक्रिया लेने के लिए बुलाई गई है. क्योंकि इन नेताओं ने राष्ट्रीय राजधानी में पार्टी उम्मीदवारों के लिए सक्रिय रूप से प्रचार किया था.
हालांकि आम आदमी पार्टी के नेताओं का यह तर्क किसी के गले नहीं उतर रहा है. क्योंकि अगर ऐसा होता तो मीटिंग इतनी जल्दी नहीं खत्म होती. अगर अरविंद केजरीवाल को केवल थैंक्यू ही बोलना था तो वह आराम से टाइम लेकर भी बोल सकते थे. अगर अरविंद केजरीवाल को केवल स्पीच ही देना था वो विडियो कॉन्फ्रेंसिंग से भी पंजाब के विधायकों को संबोधित कर सकते थे. जिस तरह सभी विधायकों बुलाया था उससे लग रहा था कि कम से कम एक विधायक को 5 मिनट तो देंगे ही. यह भी नहीं हुआ.
जाहिर है कि ऐसी स्थिति में संदेह के बादल उठने स्वाभाविक हैं. बीजेपी नेताओं का मानना है अरविंद केजरीवाल खुद पंजाब का सीएम बनना चाहते हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पंजाब के करीब 30 आप विधायक उनके संपर्क में है. एक बात और यह है कि इस खेल में बीजेपी कहीं नहीं है, क्योंकि पंजाब में उसकी ताकत केवल दर्शक बने रहने की ही है.
2- पंजाब के विधायकों को दिल्ली बुलाने का रिस्क क्यों उठाया केजरीवाल ने
यह बहुत ही सामान्य सी बात है कि पंजाब के विधायकों-मंत्रियों और मुख्यमंत्री को चंडीगढ़ या पंजाब में ही किसी रिजॉर्ट में बुलाया जा सकता था. खुद अरविंद केजरीवाल वहां पहुंच सकते थे पर ऐसा न किया गया. दिल्ली में अब आदमी पार्टी की सरकार भी नहीं है. जाहिर है लोग सवाल पूछेंगे ही कि आखिर अरविंद केजरीवाल पंजाब के विधायकों को दिल्ली बुलाकर क्या संदेश देना चाहते हैं. पंजाब में वैसे ही आम आदमी पार्टी पर विपक्ष यह टार्गेट करता है कि भगवंत मान सरकार दिल्ली से चलती है.अरविंद केजरीवाल ने अपने सबसे खास बंदे विभव कुमार को मुख्यमंत्री का चीफ एजवाइजर बनाकर भगवंत मान को पहले ही कंट्रोल करने की कोशिश की थी. इसके पहले कुछ दिन तक राघव चड्ढा को सुपर सीएम के तौर पर जाना जा रहा था.
पंजाब से राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा को सरकार की सलाहकार कमेटी का चेयरमैन बनाने पर सियासी बवाल मचा था.पंजाब विधानसभा में विपक्षी के नेता कांग्रेसी प्रताप सिंह बाजवा ने कहा था कि अरविंद केजरीवाल सुपर सीएम हैं.राघव चड्ढा वर्किंग सीएम और भगवंत मान शो-पीस सीएम हैं. दिल्ली में विधायकों की बैठक बुलाकर अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि भगवंत मान नहीं वो खुद पंजाब सरकार चला रहे हैं. जाहिर है कि विपक्ष इसे मुद्दा बनाएगा ही. कांग्रेस और बीजेपी नेताओं ने इस संबंध में सवाल उठाए भी हैं. पर सवाल यह उठता है कि क्या अरविंद केजरीवाल को पता नहीं था कि दिल्ली में बैठक बुलाने पर इस तरह के सवाल उठेंगे? तो क्या यह सही है कि अरविंद केजरीवाल जानबूझकर चाहते हैं कि यह सवाल उठे.
3-क्या पंजाब के आप विधायकों में असंतोष है
विधानसभा में एलओपी प्रताप सिंह बाजवा ने दावा किया है कि आप के 30 विधायक कांग्रेस के संपर्क में हैं. बाजवा के दावे में कितनी सच्चाई है इस पर संदेह हो सकता है पर जिस तरह अरविंद केजरीवाल ने अचानक यह बैठक बुला ली है वो संदेह के बादल खड़ा करता है. राज्य में पांच महीने से पंजाब कैबिनेट की बैठक ही नहीं हुई है. पंजाब सरकार ने सोमवार को कैबिनेट बैठक बुलाई थी. यह बैठक बजट सत्र की तारीखें तय करने के लिए लगभग 5 महीने बाद आयोजित किया जाना था. कैबिनेट की मीटिंग को इस तरह टालने का मतलब एक ही हो सकता है कि पार्टी में कही न कहीं अंदरूनी तौर पर सब खुश नहीं हैं. अन्यथा मीटिंग तो कभी हो सकती है.
कैबिनेट की बैठक दोबारा टालने पर आप सरकार की आलोचना करते हुए बाजवा ने कहा कि पंजाब में कैबिनेट की आखिरी बैठक पांच अक्टूबर को हुई थी.बाजवा कहते हैं कि पंजाब दिवालिया होने की दहलीज पर खड़ा है. इसके अलावा, राज्य में नशे के खतरे और कानून व्यवस्था जैसे अन्य मामले बड़े पैमाने पर मंडरा रहे हैं. फिर भी, पंजाब के मुख्यमंत्री ऑस्ट्रेलिया दौरे और दिल्ली में पार्टी की बैठकों जैसे महत्वहीन मामलों में व्यस्त हैं. दरअसल कोई भी नेता जानबूझकर ऐसा क्यों करेगा.भगवंत मान भी ऐसा क्यों करेंगे? जाहिर है कि कुछ न कुछ पार्टी के अंदर ठीक नहीं चल रहा है.
4- क्या भगवंत मान को हटाने की प्लानिंग है
बीजेपी और कांग्रेस के तमाम नेताओं का दावा है कि आम आदमी पार्टी भगवंत मान को पंजाब के सीएम पद से हटाना चाहती है.बाजवा ने दावा किया है कि आम आदमी पार्टी भगवंत मान को पंजाब के मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए जमीन तैयार कर रही है. उन्होंने कहा है कि दिल्ली में हाल ही में शर्मनाक हार के बाद ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी पंजाब में बचाव की मुद्रा में है. झाड़ू पार्टी ने सीमावर्ती राज्य में अपने विनाशकारी भविष्य का अनुमान लगाया है. आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने पंजाब में अपनी सरकार बचाने के उपाय शुरू कर दिए हैं और शायद अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. दिल्ली के बीजेपी विधायक मजिंदर सिंह सिरसा ने भगवंत मान को आगाह किया है कि केजरीवाल उन्हें पद से हटाने की प्लानिंग कर रहे हैं.
दरअसल विपक्ष के इन नेताओं की बातों में दम है. अरविंद केजरीवाल दिल्ली की हार से यह बात समझ चुके हैं कि बिना गुड गवर्नेंस के किसी भी कीमत पर फिर से वापसी संभव नहीं है. भगवंत मान ने 3 साल में पंजाब में महिलाओं को एक हजार रुपये महीने देने का वादा पूरा किया होता तो दिल्ली में आप का ये बुरा हाल नहीं होता. अरविंद केजरीवाल के सामने यह चुनौती है कि पंजाब में भी दिल्ली की तरह कुशासन को न फैलने दिया जाए. कम से कम जो वादे किए गए थे उसे जरूर पूरा किया जाए. भगवंत मान सरकार पंजाब में शराब, रेत और खनन माफिया से निपटने में विफल रही है. केजरीवाल यह भी जानते हैं कि जब सरकार डिलिवर नहीं करेगी तो विधायकों को एकजुट रखना भी चुनौती होगा. विधायक तभी तक पार्टी के साथ रहते हैं जब तक उन्हें उम्मीद होती है
5- क्या पंजाब के जरिए केजरीवाल कोई संवैधानिक पोस्ट चाहते हैं?
आम आदमी पार्टी (आप) ने पंजाब में 2022 के चुनावों प्रचंड जीत हासिल की थी. पंजाब की 117 सदस्यों वाली विधानसभा में आम आदमी पार्टी को 92 सीटों पर जीत मिली थी. मोटे तौर पर आप के पास बहुमत के लिए जरूरी 59 सीटों से बहुत ज्यादा सीटें हैं. आप के मौजूदा विधायकों की संख्या 93 है. ऐसे में भगवंत मान को खतरा हो सकता है पर आम आदमी सरकार को फिलहाल कोई खतरा नहीं है. ज्यादा से ज्यादा ये हो सकता है कि अरविंद केजरीवाल यहां मान को बदलकर किसी और को सीएम बना सकते हैं. जैसा सभी पार्टियां करती रही हैं. ऐन चुनाव के पहले भी सीएम बदले जाते रहे हैं और उसका फायदा चुनावों में लिया जाता रहा है.
पंजाब विधानसभा में किसी भी पार्टी में अभी इतनी ताकत नहीं है कि वो आम आदमी पार्टी को चैलेंज भी कर सके. बीजेपी तो दूर दूर तक कहीं है ही नहीं. यही पंजाब में आम आदमी पार्टी के साथ सबसे प्लस पॉइंट है. कांग्रेस विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी है उसके पास कुल 16 विधायक हैं. जबकि शिरोमणि अकाली दल के पास 3 और बीजेपी के पास केवल दो विधायक हैं. एक सीट पर बीएसपी और एक पर निर्दलीय का कब्जा है. पिछले दस साल से सीएम रहे केजरीवाल के पास फिलहाल कोई संवैधानिक पद नहीं है. केजरीवाल के आलोचक कहते हैं कि उनके लिए बिना किसी ऐसे पद के रहना मुश्किल होगा. पंजाब चुनाव के दौरान यह चर्चा खूब थी कि अरविंद केजरीवाल पंजाब का मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं, क्योंकि दिल्ली सीएम के बतौर उनके पास पावर सीमित है. तो क्या अब उनके लिए रास्ता साफ है? हालांकि, एक रास्ता राज्यसभा जाने का भी हो सकता है लेकिन उसके लिए फिलहाल उनके पास न दिल्ली में गुंजाइश है और न ही पंजाब में. कई तरह गंभीर मुकदमों में फंसे केजरीवाल के पास बिना इम्युनिटी के रहना रिस्की होगा. यदि वे कोई संवैधानिक पद हांसिल कर लेते हैं तो बड़े नेताओं वाली सिक्युरिटी मिल जाएगी और मुकदमों से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट के महंगे वकीलों की फीस का इंतजाम हो जाएगा.
संयम श्रीवास्तव