गेंद BJP के पाले में थी, फिर भी बिहार में नीतीश कुमार को सीएम बनाने की क्या मजबूरी थी?

बिहार में विधायकों की संख्या और सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ माहौल के बाद भी क्यों बीजेपी उन्हे हटाकर अपनी पार्टी के किसी नेता को सीएम नहीं बनाया? क्या बीजेपी अभी भी राज्य में अपने को कमजोर पा रही है?

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सम्राट चौधरी, नीतीश कुमार और विजय सिन्हा, बिहार में नीतीश सभी पार्टियों के लिए जरूरी क्यों हो जाते हैं.? सम्राट चौधरी, नीतीश कुमार और विजय सिन्हा, बिहार में नीतीश सभी पार्टियों के लिए जरूरी क्यों हो जाते हैं.?

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 29 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 3:11 PM IST

बिहार में विधायकों की संख्या की बात हो या आम जनता के बीच बन नीतीश विरोधी माहौल की बात हो भारतीय जनता पार्टी हर हाल में जेडीयू से बेहतर पोजिशन में है. इसके बावजूद भी आम जनता को ये समझ में नहीं आ रहा है कि बीजेपी ने एक बार फिर नीतीश कुमार को बड़े भाई की भूमिका क्यों दे दी. बीजेपी चाहती तो बहुत आसानी से अपने किसी नेता को बिहार के मुख्यमंत्री पद पर बैठा सकती थी. पर ऐसा नहीं हुआ एकबार फिर नीतीश कुमार ने अपनी उपयोगिता साबित कर दी.

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2020 के चुनावों में आरजेडी और बीजेपी दोनों ही विधायकों की संख्या के मामले में करीब-करीब जेडीयू से दोगुने सीट हासिल किए थे. फिर भी दोनों नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने के लिए दोनों ही पार्टियां मजबूर दिखीं. एनडीए और महागठबंधन दोनों ही नीतीश कुमार को बिना सीएम बनाए सरकार नहीं चला सके. महागठबंधन में इस बार की टूट के बाद ऐसा माना जा रहा था कि बीजपी किसी भी सूरत में नीतीश कुमार को सीएम नहीं बनाएगी. पर ऐसा क्या हुआ कि बीजेपी को नीतीश कुमार को एक बार सीएम बनाने पर मजबूर होना पड़ा?

ऐन चुनाव के मौके पर देश की जनता के सामने ऑपरेशन लोटस का सदेंश नहीं देना चाहती थी बीजेपी

2024 के लोकसभा चुनावों के समय देश की जनता के सामने ऑपरेशन लोटस का संदेश बहुत गलत जाता. नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री न बनाकर बीजेपी ने यह संदेश दे दिया कि उसे सत्ता की लालच नहीं है. पार्टी का मूल उद्दैश्य बिहार में स्थाई सरकार देना है. अगर बीजेपी का कोई नेता चीफ मिनिस्टर की कुर्सी पर बैठता तो विपक्ष यह आरोप लगाता कि बीजेपी किसी भी हाल में दूसरी पार्टियों की सरकार नहीं देखना चाहती है. नरेंद्र मोदी सरकार पर तानाशाही और लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप लगता. ये भी कहा जाता कि बीजेपी ही लालू और नीतीश के बीच झगड़े का असली कारण है.

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बीजेपी महाराष्ट्र में इसी कारण देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री न बनाकर शिवसेना तोड़कर आने वाले एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री तौर पर स्वीकार किया था. महाराष्ट्र में तो शिंदे को यकीन भी नहीं था कि वे सीएम बन जाएंगे. वो तो डिप्टी सीएम बनने की ही सोचकर बीजेपी में आए थे. बिहार में भी कुछ ऐसा हुआ है. ऐसा लगता है कि बिहार में भी नीतीश कुमार को भी नहीं पता रहा होगा कि बीजेपी उन्हें फिर से सीएम बनने देगी. 2020 के विधानसभा चुनावों में जेडीयू की सीटों की संख्या बीजेपी से काफी कम रह गई थी. नीतीश को बाहर बैठना मंजूर था उसके बाद भी बीजेपी ने उन्हें सीएम बनाया था. कुछ ऐसा ही इस बार भी हुआ है.

बीजेपी आरजेडू और जेडीयू के वोटर्स में सेंध लगानी है

राज्य की जनता में भी नीतीश को हटाकर किसी बीजेपी नेता को मुख्यमंत्री बनाने से बिहार की जनता में गलत संदेश जाता . आम जनता को लगता कि बीजेपी येन केन प्रकाणेन किसी न किसी तरह से बिहार की सत्ता पर कब्जा जमाना चाहती है. बीजेपी को अपने कोर वोटर्स की चिंता तो है पर उसे आरजेडी और जेडीयू के वोटर्स के बीच भी सेंध लगानी है.बीजेपी अगले विधानसभा चुनावों में अकेल चुनाव लड़ने की तैयारी लेकर चल रही है. बीजेपी को सवर्णों के साथ यादव-कुर्मी-कुशवाहा और अतिपिछड़ों का भी वोट लेना है. इसलिए वो नहीं चाहती है कि राज्य की जनता में ये संदेश जाए कि महागठबंधन के टूट का कारण बीजेपी है.

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नीतीश के वोटर्स को नाराज करने का खतरा नही मोल लेना चाहती थी पार्टी

नीतीश कुमार या जेडीयू के वोटर्स एंटी आरजेडी रहे हैं.बीजेपी इस बात को अच्छी तरह समझती है. नीतीश के समर्थक अपने को आरजेडी के बजाय खुद को बीजेपी के करीब पाते रहे हैं. बीजेपी को पता है कि आगामी लोकसभा चुनावों में केवल बीजेपी के कोर वोटर्स से काम नहीं चलने वाला है. अगर नीतीश को कुर्सी से उतार कर जेडीयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो एक गलत संदेश जाएगा.हो सकता है कि नीतीश की अपील के बाद भी नीतीश कुमार समर्थकों के वोट बीजेपी के प्रत्याशिय़ों के लिए ट्रांसफर नहीं होता. पार्टी को लगता है कि सीएम पद से पदय्यूत नीतीश कुमार के बजाय सीएम की कुर्सी पर बैठे नीतीश कुमार बीजेपी के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित होंगे.

सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा को परखना भी चाहती है बीजेपी

भारतीय जनता पार्टी बहुत आगे की सोचकर चलती है. उसे 2025 का विधानसभा चुनाव और 2029 का लोकसभा चुनाव दिख रहा है. मतलब कि पार्टी भविष्य में अकेले चुनाव लड़ने वाली पार्टी के रूप में स्थापित होना चाहती है बिहार में. यह तभी संभव है जब बिहार बीजेपी में कोई ऐसा कद्दावर लीडर मिल जाए जिस पर दांव लगाया जा सके. बिहार के नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री सुशील मोदी को पिछली बार की सरकार में मौका नहीं मिला. उनपर आरोप लगा कि वो नीतीश कुमार को सुपरसीड करके बीजेपी को प्रतिष्ठित कराने में कमजोर साबित हुए हैं. पिछली बार बने 2 डिप्टी सीएम तारा प्रसाद और रमा देवी को भी दुहाराया नहीं गया है. उनकी जगह पर इस बार सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा को डिप्टी सीएम बनाया गया है. बीजेपी इस बार इन दोनों नेताओं को भी परख रही है . इनमें से कोई एक भविष्य में सीएम का दावेदार हो सकता है. पार्टी के मानदंडों पर अगर ये लोग भी खरे नहीं उतरते हैं तो इनकी भी छुट्टी अपने पूर्ववर्तियों की तरह हो सकती है.

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