सोरेन की गिरफ्तारी से किसे फायदा, बात लोकसभा की 14 सीटों की है

हेमंत सोरेन के खिलाफ जैसा एक्शन केंद्र सरकार लिया है उसके खिलाफ जिस तरह की प्रतिक्रिया झारखंड में होनी चाहिए थी वैसी नहीं आ रही है.

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झामुमो विधायक दल के नवनिर्वाचित नेता चंपई सोरेन और पूर्व सीएम हेमंत सोरेन झारखंड के राज्यपाल के साथ झामुमो विधायक दल के नवनिर्वाचित नेता चंपई सोरेन और पूर्व सीएम हेमंत सोरेन झारखंड के राज्यपाल के साथ

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 01 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 5:57 PM IST

झारखंड सीएम हेमंत सोरेन अब पूर्व सीएम हो चुके हैं.गिरफ्तारी के पहले ही उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है. उन पर लगे भ्रष्‍टाचार के आरोप अपनी जगह हैं. ईडी की कार्रवाई अपनी जगह है. लेकिन इन सबके बीच समानांतर झारखंड की राजनीति अपनी जगह है.क्योंकि असली खेल चुनावी राजनीति का ही है. जिसमें भाजपा और झामुमो के लिए सबसे अहम हैं वहां की 14 सीटें. पिछले चुनाव में एनडीए ने इनमें से 12 (भाजपा 11 और आजसू 1 सीट) पर कब्जा जमा लिया सिर्फ  2 सीटें नहीं मिल सकी थीं. इन दोनों सीटों में से एक सोरेन की पार्टी झामुमो और एक कांग्रेस के पास है. जब आगामी चुनाव में बीजेपी के लिए एक एक सीट कीमती है तो झामुमो के पास भी अपनी गिरफ्तारी को भुनाकर सीट बढ़ाने का मौका है. झारखंड की अपनी 12 जीती हुईं और दो हारी हुई सीटों के लिए भाजपा एड़ी-चोटी का जोर लगा देना चाहेगी तो हेमंत सोरेन के लिए भी यह जीवन मरण का सवाल होगा. अब बीजेपी और झामुमो दोनों के लिए चुनाव में मुद्दा है. देखना यह है कि कौन अपनी बात जनता को किस तरह से समझा पाता है. बीजेपी के लिए पश्चिम बंगाल और बिहार में इंडिया अलायंस के नेताओं ने ही मेहरबानी कर दी थी, ऐसे में झारखंड में भाजपा ने अपनी तरफ से जोर लगा दिया लगता है. बीजेपी के पास भ्रष्टाचार तो मुद्दा होगा पर अब हेमंत सोरेन के पास उन्हें प्रताड़ित करने का मुद्दा है. 

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सोरेन के खिलाफ ईडी का कड़ा एक्शन पर नेता और जनता सभी शांत

हेमंत सोरेन के खिलाफ जैसा एक्शन केंद्र सरकार लिया है उसके खिलाफ जिस तरह की प्रतिक्रिया झारखंड में होनी चाहिए थी वैसी नहीं आ रही है. किसी भी लोकप्रिय नेता की गिरफ्तारी पर आम जनता में जिस तरह का गुस्सा पैदा होता रहा है वो पूरे राज्य में कहीं नही दिख रहा है. न ही ईडी के एक्शन के खिलाफ विपक्ष ही मुखर हो रहा है.  कांग्रेस के नेता ईडी और सीबीआई को तोता और सरकारी हथियार बोलकर शांत हो जाते हैं. कभी भी विपक्ष ने ईडी और सीबीआई के एक्शन को लेकर बड़ा राजनीतिक आंदोलन बनाने की कोशिश नहीं की. जबकि पूरे देश में विपक्ष के दर्जनों नेता ईडी और सीबीआई के टार्गेट पर हैं.  
दरअसल चाहे वो केजरीवाल हों या हेमंत सोरेन इनके खिलाफ मामले बहुत गंभीर हैं. शायद यही कारण है कि न नेता न जनता प्रतिक्रिया मे आंदोलन करने को तैयार है. सोरेन पर जमीन घोटाले में कार्रवाई का मामला सेना की जमीन की खरीद-बिक्री से जुड़ा है. इसमें फर्जी नाम-पता के आधार पर जमीन की खरीद-बिक्री हुई थी. इस मामले में रांची नगर निगम द्वारा केस दर्ज करवाया गया था. ईडी ने इसी केस के आधार पर ECIR रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू की थी. जांच एजेंसी ने 4.55 एकड़ जमीन की खरीद-बिक्री का खुलासा किया था. इसके अलावा आदिवासी जमीन पर अवैध कब्जे को ED की तरफ से हेमंत सोरेन को पूछताछ को लेकर अब तक दस समन भेजे जा चुके हैं.

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इस मामले में अब तक 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. 2011 बैच के एक आईएस अधिकारी छवि रंजन की भी गिरफ्तारी हो चुकी है.इसके अलावा सोरेन के प्रेस सलाहकार, साहिबगंज जिले के अधिकारी और एक पूर्व विधायक के आवास पर छापा मारा गया था.पर जनता शांति बनाए हुए है. सीधा मतलब है कि अधिकांश जनता को कोई मतलब नहीं है . जिसका पूरा फायदा आने वाले दिनों में लोकसभा चुनावों में बीजेपी उठाने की कोशिश करेगी.

परिवारवाद पर हमलावर होगी बीजेपी

हेमंत सोरेन के पिता भी झारखंड के सीएम रह चुके हैं. सोरेन परिवार में भी लालू परिवार , मुलायम परिवार, गांधी परिवार आदि की तरह सत्ता बाहर के लोगों को नहीं देने का चलन रहा है. इन परिवारों के लिए सरकार गिर जाए ये मंजूर होता है पर परिवार को ही यहां उत्तराधिकार मिलता है. 2009 में मुख्यमंत्री रहते हुए उपचुनाव हार जाने के चलते शिबू सोरेन को इस्तीफा देना था.जेएमएम के पास 17 , कांग्रेस के पास 9 और आरजेडी के पास 7 विधायक थे.81 सदस्यों वाली विधानसभा में लंबे समय तक सत्ता हस्तांतरण वाली बातें चलीं पर शिबू सोरेन तैयार नहीं हुए. फाइनली प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा था. काफी कुछ सेचुएशन इस बार भी ऐसा ही बन रहा था.हेमंत सोरेन रिजाइन करने के बाद अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को सीएम बनाना चाहते हैं पर उनकी अपनी पार्टी और सहयोगियों के बीच उनके नाम का अप्रूवल नहीं करा सके. खबर लिखे जाने तक सोरेन परिवार के निकट सहयोगी चंपई सोरेन को विधायक दल का नेता चुन लिया गया था.  

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झारखंड की राजनीति में सोरेन परिवार का दबदबा

 कहा जा रहा है कि सत्ता की कमान भले ही चंपई के हाथ होगी लेकिन दबदबा दिशोम गुरु यानी शिबू सोरेन के परिवार का ही रहेगा.झारखंड की सियासत में सोरेन परिवार के दबदबे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि परिवार का करीब-करीब हर सदस्य राजनीति में सक्रिय है. हेमंत की पत्नी कल्पना को छोड़ दें तो लगभग सभी राजनीति में ही हैं.हेमंत सोरेन दो बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे तो वहीं उनके छोटे भाई बसंत सोरेन विधायक होने के साथ-साथ जेएमएम की युवा इकाई के प्रमुख हैं. हेमंत की बहन अंजली भी राजनीति में हैं और उनके बड़े भाई दुर्गा सोरेन भी विधायक रहे थे. दुर्गा सोरेन साल 2009 में अपने कमरे में मृत पाए गए थे. दुर्गा की पत्नी सीता साल 2009 में पहली बार विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुई थीं और लगातार तीन बार की विधायक हैं. हेमंत सोरेन खुद रामगढ़ कैंट सीट से विधायक हैं. वहीं, सीता सोरेन विधानसभा में दुमका सीट का प्रतिनिधित्व करती हैं.

आदिवासी वोट के नुकसान का है खतरा

हेमंत सोरेन के पिता ने झारखंड राज्य की लड़ाई लड़ी थी. इसके पहले उन्होंने झारखंड में आदिवासियों की जमीन और महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन चलाया था. यही कारण है कि सोरेन परिवार का राज्य के आदिवासी समुदाय में बड़ा सम्मान है. अगर हेमंत सोरेन अनपी गिरफ्तारी को आदिवासी समुदाय के बीच केंद्र की बीजेपी सरकार द्वारा प्रताड़ित होने की बात समझाने में सफल होते हैं तो बाजी उनके नाम हो सकती है. हेमंत की गिरफ्तारी से आदिवासी समाज में भाजपा के प्रति नाराजगी बढ़ने का अंदाजा बीजेपी को भी है. इसी वजह से भाजपा इस गिरफ्तारी को राजनीतिक रंग देने से बच रही है. गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दूबे ने एक्स पर हेमंत सोरेन के खिलाफ जरूर मोर्चा खोले रखा है पर जमीन घोटाले में ईडी द्वारा हो रही जांच के बाद हेमंत सोरेन के विरुद्ध कार्रवाई को लेकर भारतीय जनता पार्टी सीधे तौर पर कभी उत्साह नहीं दिखाया.  हालांकि भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर हेमंत सोरेन पर भाजपा नेताओं का सीधा हमला पिछले चार साल से जारी है.

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इस बीच बीजेपी के लिए सबसे सुखद बात ये है कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी जो खुद एक बड़े आदिवासी नेता हैं , सोरेन परिवार पर राज्य के संसाधनों की लूट में शामिल होने का आरोप लगाते रहें हैं. बाबूलाल मरांडी की पार्टी में वापसी भाजपा ने एक मजबूत आदिवासी चेहरे को अपने साथ खड़ा कर लिया है. सबसे पहले विधानसभा में भाजपा विधायक दल के नेता बनाए गए बाबूलाल मरांडी ने ही हेमंत सोरेन और उनके परिवार के भ्रष्टाचार का मामला उठाया था. बाद में तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने हेमंत सोरेन पर खान मंत्री रहते पत्थर खनन का पट्टा लेने के दस्तावेज सामने रखा था.

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