आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के बेहद सख्त आदेश पर काफी प्रतिक्रिया हो रही है. पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन भी किया है - और मेनका गांधी से लेकर राहुल गांधी तक ने अपने अपने तरीके से विरोध प्रकट किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सहित पूरे एनसीआर की सड़कों से आवारा कुत्तों को पकड़कर उनको अलग सुरक्षित जगह रखने का आदेश दिया है. दिल्ली में एमसीडी और एनडीएमसी की तरह नोएडा और गाजियाबाद में भी आवारा कुत्तों को फौरन पकड़ने का कोर्ट ने आदेश दिया है.
देश की सबसे बड़ी अदालत ने साफ तौर पर कहा है, फिलहाल आप सभी नियमों को भूल जाइए... हमें सभी इलाकों से आवारा कुत्तों को पकड़ना होगा... ये सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए कि बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग सड़कों पर सुरक्षित रहें, और रेबीज का खतरा न हो.
अदालत का स्पष्ट आदेश है, अगर कोई भी संगठन कुत्तों को जबरदस्ती पकड़ने में बाधाए खड़ी करता है, तो उसे सख्त कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा. कोर्ट का कहना है, हमें सड़कों को पूरी तरह से स्ट्रीट डॉग फ्री बनाना होगा... हम किसी को भी गोद लेने की अनुमति नहीं देंगे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में सिर्फ सरकार की सुनवाई होगी, डॉग लवर या किसी अन्य के आवेदन स्वीकार नहीं किए जाएंगे. कोर्ट ने दिल्ली में शेल्टर होम बनाने और 8 हफ्ते के भीतर बुनियादी ढांचे के निर्माण का भी निर्देश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट का आदेश कितना व्यावहारिक?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट में बताया है एमसीडी ने नसबंदी केंद्र चलाने के लिए जिस एनजीओ से समझौता कर रखा है, उसके लोग भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सकते में हैं. अखबार से बातचीत में नसबंदी केंद्र चलाने वाले एनजीओ एनिमल इंडिया ट्रस्ट के एक अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. नाम गुमनाम रखने की गुजारिश के साथ उस अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि ये कैसे मुमकिन है... एमसीडी अपने फंड की व्यवस्था कहां से करेगी? हम जैसे एनजीओ को हर आवारा कुत्ते के लिए महज 1,000 रुपये ही मिलते रहे हैं, जिसमें आवारा कुत्ते को पकड़ने से लेकर उसकी नसबंदी के बाद उसे छोड़ने तक का खर्च भी शामिल होता है.
पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने भी संसाधनों की कमी के चलते सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अव्यावहारिक माना है. पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी कहती हैं, दिल्ली में तीन लाख कुत्ते हैं... अगर सड़कों से हटाना है, तो 3,000 शेल्टर होम बनाने होंगे, जहां ड्रेनेज, पानी, शेड, किचन और चौकीदार होगा... लागत करीब 15,000 करोड़ रुपये होगी. क्या दिल्ली के पास इतने पैसे हैं?
मेनका गांधी के मुताबिक, पकड़े गए कुत्तों को खिलाने में ही हर हफ्ते करीब 5 करोड़ रुपये खर्च होंगे... डेढ़ लाख लोग इनकी देखरेख के लिए भी चाहिए होंगे. संसाधनों और भारी खर्च की बात और है, लेकिन तीन लाख कुत्तों के लिए डेढ़ लाख लोगों की जरूरत पड़ने का दावा भी बहुत ज्यादा लगता है.
आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला करीब करीब वैसा ही है, जैसा पटाखों पर पाबंदी वाला था या एनसीआर में 10 और 15 साल पुरानी गाड़ियों का मामला है. कहते भी हैं, और बार बार देखने को भी मिला है कि अगर पुलिस और प्रशासन ठान ले तो अपराध रुक जाता है. लेकिन, दिवाली से लेकर अलग अलग मौकों पर आधी रात को भी घर में पटाखों की आवाज गूंजती है, और पुराने वाहनों के खिलाफ दिल्ली सरकार ने अभियान रोककर ये संकेत तो दे ही दिया है कि ऐसे आदेशों पर अमल कितना मुश्किल होता है.
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और राजनीतिक प्रतिक्रिया
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी स्ट्रीट डॉग्स के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर प्रतिक्रिया दी है. सोशल साइट एक्स पर राहुल गांधी ने लिखा है, ये बेजुबान ऐसी भी समस्या नहीं हैं जिन्हें खत्म ही कर दिया जाए. बगैर क्रूर बने भी शेल्टर, नसबंदी, टीकाकरण और सामुदायिक देखभाल से सड़कें सुरक्षित बनाई जा सकती हैं... एक झटके में सामूहिक रूप से कुत्तों को हटाने का कदम क्रूर, दूरदर्शिता की कमी के साथ हमारी दया भावना को भी कमतर बता रहा है. हम लोगों की सुरक्षा और पशु कल्याण का काम साथ साथ भी कर सकते हैं.
अक्टूबर, 2018 में बीजेपी नेता अमित शाह ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ऐसी ही प्रतिक्रिया दी थी. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तब कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को ऐसे ही आदेश देने चाहिए जिस पर अमल न किया जा सके.
मुद्दा अलग जरूर था, लेकिन अमित शाह का आशय भी फैसले के अव्यावहारिक होने पर था. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और बीजेपी नेता मेनका गांधी दोनों भी उसी तरह की बातें कर रहे हैं. मेनका गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को 'अव्यावहारिक', 'आर्थिक रूप से असंभव' और 'पर्यावरण संतुलन के लिए नुकसानदेह' बताया है. पूर्व केंद्रीय मंत्री ने आदेश की वैधता पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि महीने भर पहले ही सुप्रीम कोर्ट की एक अलग बेंच ने इसी मुद्दे पर 'संतुलित फैसला' दिया था.
मेनका गांधी का कहना है, 'अब, एक महीने बाद... दो सदस्यीय बेंच एक और फैसला देती है जो कहता है 'सबको पकड़ो...' कौन सा फैसला वैध है? जाहिर है पहला, क्योंकि वो सेटल्ड जजमेंट है.' कुत्तों को रोडेंट कंट्रोल एनिमल बताते हुए वो याद दिलाती हैं, 'पेरिस में जब कुत्ते और बिल्लियों को सड़कों से हटाया गया था तो शहर चूहों से भर गया था.' और फिर आगाह करती हैं, 48 घंटे में गाजियाबाद... फरीदाबाद से 3 लाख कुत्ते आ जाएंगे... क्योंकि दिल्ली में खाना मिलेगा... और जैसे ही कुत्ते हटेंगे बंदर जमीन पर आ जाएंगे... मैंने अपने घर पर ऐसा होते देखा है.
कुछ निजी अनुभव, कुछ केस स्टडी
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नेताओं और कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया के अपने खास कारण हैं. मेनका गांधी तो पशु प्रेमी हैं ही, उनसे राजनीतिक मतभेदों के बावजूद राहुल गांधी भी पालतू जानवरों से बहुत प्रेम करते हैं. और, इस बात की मिसाल तो असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा भी अपने कांग्रेस के दिनों को याद करते हुए कई बार किस्सा सुना चुके हैं.
पशु प्रेमियों और पशु अधिकार कार्यकर्ताओं की दलील तो सही होती है, लेकिन ज्यादातर एकतरफा होती है. आवारा कुत्तों की बात करते वक्त वे भूल जाते हैं कि आम लोगों के सामने क्या मुश्किलें आती हैं. क्रूरता किसी भी रूप में स्वीकार नहीं की जा सकती, लेकिन आवारा कुत्ते अगर सड़क पर दौड़ा कर पीछे से बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को काट लेते हैं - ये सब उनको क्यों नहीं दिखाई देता?
आवारा कुत्तों के अधिकार की लड़ाई लड़ना अच्छी बात है, लेकिन ऐन उसी वक्त सड़क पर आवारा कुत्तों के शिकार लोगों की पीड़ा भी समझनी ही होगी. कुछ साल पहले आवारा कुत्तों के आतंक को लेकर स्टोरी के सिलसिले में कुछ पीड़ितों और कई कार्यकर्ताओं से मिलना हुआ था, सभी की बातें अपनी जगह सही थीं - लेकिन उसके साइड इफेक्ट की तरफ न तो कोई ध्यान देना चाहता है, न ही उसके बारे में सुनने को तैयार लगता है.
नोएडा में ही एक रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी से भी भेंट हुई थी, जिनको मोहल्ले में सुबह सुबह साइकिल चलाते हुए देखकर सड़क के कुत्तों ने पीछे से काट लिया था. अफसर के घर में भी दो कुत्ते थे, जिनकी वो बच्चों की तरह तारीफ कर रहे थे, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि वो आवारा कुत्तों के आतंक से पीड़ित भी हैं. आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे में जानकर उनको कैसा लगा होगा, किसी के समझ में न भी आए तो भी कोशिश जरूर करनी चाहिए.
मुझे भी पालतू जानवर, विशेष रूप से कुत्ते बेहद पसंद हैं. बचपन से ही पालने का शौक रहा है, और एक बार दवा लगाते वक्त मेरा ही पालतू कुत्ता मुझे काट चुका है. इंजेक्शन भी लेने पड़े थे. फिर भी मुझे घर में कुत्ते की कमी महसूस होती है. क्योंकि, फिलहाल कोई पालतू कुत्ता मेरे पास नहीं है.
कुछ दिन पहले की ही बात है. मेरे गांव से एक बच्चा आया था, और एक दिन पास के बाजार से कुछ सामान लेने जा रहा था. सोसाइटी के बाहर निकला ही था कि पीछे से एक कुत्ते ने आकर अच्छे से काट लिया. मैंने सोचा आस पास कहीं जाकर इंजेक्शन लगवा देते हैं. जब अपने डॉक्टर से बात की तो फोटो भेजने को बोले. फोटो भेजा तो घाव गहरा देखकर बोले, वैक्सीन से काम नहीं चलेगा, सीरम भी लगेगा. और, ये भी बताया कि सीरम बहुत महंगा होता है. बाकी जरूरी काम छोड़कर सफदरजंग अस्पताल पहुंचा. लाइन में लगकर वैक्सीन लगवाई. और कोर्स पूरा होने तक ये सिलसिला चलता रहा.
ये ऐसा प्रेम है जिसमें अपार पीड़ा भी है. प्रेम आवश्यक है, लेकिन पीड़ा वाले पक्ष को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता - अगर आपको ये बात समझ में आ सकती है, तो सुप्रीम कोर्ट के साये में आवारा कुत्तों के प्रति मेरा प्रेम और लोगों को होने वाली पीड़ा भी समझ सकते हैं.
मृगांक शेखर